अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: कांग्रेस प्रवक्ता श्रीमती सुप्रिया श्रीनेत ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- कल शाम को आईएमएफ ने भारत की अनुमानित ग्रोथ दर को इस वित्तीय वर्ष के लिए दूसरी बार काटकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है। 7.4 प्रतिशत पहले अनुमानित दर थी, उसको काटकर, कम करके 6.8 प्रतिशत कर दिया है। 0.6 प्रतिशत की कटौती आईएमएफ ने इस साल के लिए दूसरी बार की है। आईएमएफ ने दूसरी बार की है, वर्ल्ड बैंक ने चौथी बार काटा ग्रोथ टार्गेट, आरबीआई ने तीसरी बार काटा, मूडीज ने काटा, फिच ने काटा, एशियन डेवलपमेंट बैंक ने काटा, अंक्टाड ने काटा, तमाम लोगों द्वारा हमारी जो इस वित्तीय वर्ष की ग्रोथ अनुमानित दर है, the estimated GDP growth उसको लगातार काटा जा रहा है। इस लगातार काटने का क्या मतलब है कि बेरोजगारी बढ़ रही है, गरीबी बढ़ रही है, आय कम हो रही है, उस पर से छोंका लगाया हुआ है सरकार ने, कमर तोड़ महंगाई का।
कुछ बातें यहाँ पर जाननी और कहनी जरुरी हैं। बातें जाननी और कहनी इसलिए जरुरी है क्योंकि वित्तमंत्री विदेश के दौरे पर हैं। अब या तो वो अनभिज्ञ हैं, या तो उनको पता नहीं है, या वो जानबूझकर झूठ बोल रही हैं और दोनों ही सूरतों में बड़ी शर्म की बात है। उनके झूठ का पर्दाफाश करूँ, इससे पहले ये बता देती हूं कि सरकार के नुमाइंदे, सरकार की वित्तमंत्री, सरकार के तमाम लोग क्या-क्या बोल रहे हैं।
घटती हुई ग्रोथ रेट पर आरबीआई ने माना कि ये थर्ड स्टॉर्म है। ये तीसरा तूफान है, कोविड, यूक्रेन रूस के वॉर के बाद जिस रिसेशन को हम स्टेअर कर रहे हैं। चीफ इकॉनमिक एडवाइजर, उन्होंने भी माना चैलेंजेस बहुत बड़े हैं, लेकिन वित्तमंत्री कहती हैं, Absolutely no reason to worry, सब कुछ जी बहुत चंगा सी है। बस प्याज, लहसुन मत खाइए, बाकी सब चंगा है।
आगे आपको इसलिए बताना जरुरी है, क्योंकि सरकार के कुछ नुमाइंदे, कुछ मंत्री, कुछ प्रवक्ता, कुछ नेता और कुछ चरण चुंबक पत्रकार इसको फास्टेस्ट ग्रोथ इकॉनमी भी बताने पर आमादा हैं। डूबते को तिनके का सहारा होता है, वैसे आईएमएफ के कल के डेटा में, जहाँ पर ग्रोथ रेट को 7.4 प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत किया गया है। सरकार के नुमाइंदे और चरण चुंबक आपको अभी भी समझाएंगे कि ये फास्टेस्ट रेट ऑफ ग्रोथ है, चीन तो 4.4 प्रतिशत पर कर रहा है। अमेरिका 1 प्रतिशत पर कर रहा है, हम तो 56 इंच की छाती लेकर 6.8 प्रतिशत पर ग्रो कर रहे हैं। अब या तो वो इतने महा मूर्ख हैं कि वो इकॉनमी की ‘ई’ बराबर समझ नहीं रखते हैं, या बेचारों के व्हाट्सएप पर जो आ जाता है, वो खर्रा चलाने लगते हैं।
हमारी इकॉनमी का साइज 5 नहीं, 3 ट्रिलियन डॉलर है। चीन की इकॉनमी का साइज 17.5 से 18 ट्रिलियन डॉलर के बीच में है और यूएस की इकॉनमी का साइज 21 ट्रिलियन डॉलर के बीच में है। तो 21 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी अगर एक प्रतिशत पर बढ़ेगी और 17 से 18 ट्रिलियन डॉलर के बीच की इकॉनमी अगर 4.5 प्रतिशत पर बढ़ेगी, वो हमसे फिर भी ज्यादा बढ़ेगी, क्योंकि हमारा जीडीपी का अनुमानित साइज 3 ट्रिलियन डॉलर है। तो 3 ट्रिलियन डॉलर पर आप उछलते रहिए, कूदते रहिए, आपसे जो 7.5 गुना ज्यादा बड़ी इकॉनमी है, वो भी बढ़ रही है; जो आपसे 8 गुना ज्यादा इकॉनमी है ,वो भी बढ़ रही है और आप लोगों को भ्रमित करने के लिए ये समझाते रहिए कि हम तो फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी हैं। No, you are not the fastest growing economy, क्योंकि आपकी चीजें, आपकी असलियत में अंतर है। आपकी इकॉनमी का साइज छोटा है। आप यहाँ से छलांग यहाँ तक कि लगाइए, लेकिन जो यहाँ पर है, वो छलांग आपसे और ऊंची लगा रहा है औऱ इस फास्टेस्ट तथाकथित ग्रोथ रेट में हो क्या रहा है- बेरोजगारी बढ़ रही है, रुपया गिर रहा है, महंगाई है, आय घट रही है। तो ये फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी का जो तमगा है, इसको लेकर जाइएगा कहाँ? Where will you wear this badge of honour, because this badge of honour amounts to nothing? It amounts to absolte zero.
आज सरकार एक और बात कहती है। एक बात तो ये कि इन्होंने भ्रमित कर रखा है कि हम फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी है, जिसका हमने पर्दाफाश किया। दूसरी एक और बात कहते हैं कि ऐसा है, सबकुछ वैश्विक है, हम क्या कर सकते हैं? तो अगर हाथ ही बांधकर खड़े होना था, तो आप सरकार में क्यों हैं? आइए, बैठिए विपक्ष में, हम आपको दिखाते हैं करके। क्या ये कोई सरकार कह सकती है, क्या कोई सरकार इस आपदा के वक्त में अपने हाथ खड़े कर सकती है, ये कहकर कि हम क्या कर सकते हैं, ये तो एक्सटर्नल शॉक है? किसी भी सरकार की जिम्मेदारी होती है कि एक्सटर्नल शॉक और आंतरिक समस्याओं का समाधान करके इकॉनमी को सुचारू रूप से चलाए। हमने तो 2013 में टेपर टेंटरम के दौरान नहीं कहा था, ये वैश्विक कारण है। हाँ था वैश्विक कारण, लेकिन आपको चुना इसलिए गया था कि आप समाधान ढूंढ़िए, हमने समाधान ढूंढ़ा। हम रुपए को 54 पर छोड़कर गए, इनके लिए। हमने तो 2008 के ग्लोबल रिसेशन, one of the biggest recessions after the great depression of the 1930s हमने तो पलटकर नहीं कहा कि वैश्विक कारण है। फास्टेस्ट रेट ऑफ ग्रोथ की, लोगों की जेब में पैसा डाला, कंजम्पशन जारी रखा और इकॉनमी को संभाले रखा और इसलिए यूपीए के 10 सालों के दौरान फास्टेस्ट रेट ऑफ ग्रोथ हुई। तो ये कह देना कि वैश्विक कारण है, हम क्या कर सकते हैं, ये जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना, जिम्मेदारी से भागना और हाथ खड़े करना है।अब समस्या ये है कि सरकार के सामने दिक्कतें कितनी हैं? सरकार के सामने मूल रूप से इस समय चार बड़ी दिक्कते हैं, एक्चुअली 5 और मैं जो सबसे बड़ी दिक्कत है, पहले उसी का जिक्र कर देती हूँ। सरकार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत है, आँख पर पट्टी और मुंह में जो दही जमा रखा है, सरकार ने वो है। आप आँख पर पट्टी बांध लीजिए और कहिए कि जगत बना ही नहीं है। आपके आँख पर पट्टी बांधने से ये देश समस्याओं से जूझ रहा है, जो इकॉनमी का बंटाधार हो रहा है, वो होना बंद नहीं हो जाएगा। आपके आँख पर पट्टी बांधने से आपको बताया जाएगा, wake up and smell the coffee, because that is what you are supposed to do. सरकार ये समझ नहीं रही है कि लगातार ग्रोथ गिर रही है और ग्रोथ का जो आरबीआई का तीसरी तिमाही और चौथी तिमाही का अनुमान है वो और भी भयावह है। तमाम एजेंसीज के अकॉर्डिंग ग्रोथ की रेट 4.6 से 5 प्रतिशत के बीच में होने वाली है तीसरी और चौथी तिमाही में और ये कोई जुबानी जमा खर्च नहीं है। अगर नॉमिनल रेट ऑफ ग्रोथ 12 प्रतिशत है और इंफ्लेशन आपका 7 प्रतिशत रहा है, तो किस तरह से आपकी ग्रोथ 6.8 प्रतिशत होगी। real rate of growth is ‘nominal minus inflation’. किस तरह से होगी, ये समझा दीजिए आप। पहली समस्या सरकार की अकर्मण्यता झुठलाने की है। दूसरी समस्या ग्रोथ की है, तीसरी समस्या महंगे दामों की है। आज भी कच्चे तेल का दाम 116 डॉलर से गिरकर 91-92 के बीच में चल रहा है, लेकिन हम जी दाम कम नहीं करेंगे और लालच कैसा कि सारा पैसा कमाया जाएगा, सेस के जरिए, जिससे कि राज्यों के साथ साझा न करना पड़े। उससे बड़ी समस्या, रुपए के टूटने की है। रूपया जिस तरह से टूट रहा है, उससे इंफ्लेशन और बढ़ेगा, समस्याएं और बढ़ेंगी। 82 के पास रुपया 83, 83 के बाद 84, शतक लगाने की तैयारी मोदी जी पूरी तरह से कर रहे हैं और करंट अकाउंट डेफिसिट। जानकारों की सुनिए तो करंट अकाउंट डेफिसिट 3.4 प्रतिशत पर है। पहले 6 महीने का आंकड़ा उठाकर देख लीजिए, इंपोर्ट्स में जबरदस्त बढ़ोतरी है, एक्सपोर्ट में जबरदस्त कमी आई है और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि गोल्ड इंपोर्ट्स बेतहाशा बढ़ रहा है, सरकार उसके बारे में क्या कर रही है? अपना वक्तव्य खत्म करने से पहले मैं एक चीज का जिक्र जरुर करना चाहती हूँ। निर्मला सीतारमण जी, हमारी वित्तमंत्री अमेरिका में हैं। थोड़ी देर पहले ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में उन्होंने एक इंटरेक्शन किया और वहाँ पर उन्होंने एक वक्तव्य दिया। निर्मला जी का कहना है कि किसानों का डीएपी, किसानों की खाद के दाम भारत में नहीं बढ़ाए गए हैं। निर्मला जी अनभिज्ञ हैं, या जानबूझकर झूठ बोल रही हैं, ये उनकी अन्तरात्मा बता सकती है। लेकिन डीएपी के दाम इसी साल अप्रैल में 1,200 से 1,300 रुपए किए गए हैं और यूरिया की हर बोरी 50 किलो से घटाकर 45 किलो की कर दी गई है। दाम वही लग रहे हैं, इसका मतलब दाम बढ़े हैं। तो बिना पलक झपकाए झूठ बोलना क्या होता है, ये निर्मला सीतारमण जी अच्छी तरह प्रधानमंत्री मोदी जी से सीख चुकी हैं। प्रधानमंत्री 24 घंटे प्रचार में, 24 घंटे इलेक्शन में, 24 घंटे चैनलों पर अपनी कभी भक्ति दिखाने में, कभी विक्टिम बनने में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन इस देश का क्या हाल हो रहा है, वो आपको एजेंसीज एक के बाद एक बताती जा रही हैं। 3 प्रतिशत ग्रोथ हुई है, पिछले 3 साल में। अगर वास्तविक आंकड़ा देखकर चलिए, तो चाहे आइएमएफ हो, वर्ल्ड बैंक हो, मूडीज हो, फिच हो, एडीबी हो, इनके पीछे आप ईडी लगा दीजिए, इनके पीछे एक सीबीआई केस लगा दीजिए, ये इंटर्नेशनल साजिश बता दीजिए, लेकिन असलियत ये है कि आपके झूठ का बार-बार पर्दाफाश होता है। आप बार-बार खड़े होकर भ्रमित करने की बातें करते हैं, भ्रामक बातें करते हैं। तो या तो आपकी समझदारी में कमी है, या जानबूझकर भ्रमित किया जाता है, इसके असली जज आप हैं।
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