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पीएम मोदी ने कहा था अगले 6 सालों में किसानों की आमदनी डबल हो जाएगी, उल्टा, बीते 6 सालों आमदनी घटी हैं -कांग्रेस


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: अखिल भारतीय कांग्रेस के चेयरमेन सुखपाल सिंह खैहरा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि दोस्तों आज का विषय किसानों की आमदनी को लेकर है। आप सबको अच्छी तरह से याद होगा कि फरवरी, 2016 में हमारे प्रधानमंत्री, मोदी ने ये बोला था कि हम अगले 6 सालों में फार्मर्स की और गरीब आदमी की, जो उनकी सहायता करते हैं फार्म लेबरर्स की, इनकी आमदनी को, इनकी इनकम को डबल करेंगे और इसके लिए उन्होंने एक कमेटी का भी गठन किया था – Doubling of Farmers Income Committee (DFIC) in 2016. अब 2016 से लेकर 2022 तक पूरे 6 साल का समय हो गया है, in fact more than 6 years now, लेकिन फ़ार्मर्स की आमदनी बढ़ने की बजाए घटी है।

वो डबल तो क्या होनी थी, जो यूपीए की सरकार में ट्रेंड सेट किया था डॉ.मनमोहन सिंह जी की सरकार ने, उसको इन्होंने तोड़ा और फार्मर की इनकम को रिड्यूस किया है और ये मेरे कहने से नहीं फर्क पड़ेगा, ये फिगर्स बताते हैं कि पिछले 6-7 साल में जो एग्रीकल्चर सेक्टर है, उसके क्या हालात हुए और किसानों का और खेत मज़दूरों का कर्जा बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ गया है कि एनसीआरबी की जो अपनी फ़िगर हैं, गवर्मेंट ऑफ इंडिया की, उसके मुताबिक 4 लाख किसानों ने देशभर में आत्महत्या की है।

अब अगर आमदनी बढ़े, तो कोई इतना बेवकूफ तो है नहीं कि अपनी जान गंवाएगा। जान इसलिए गंवा रहे हैं और पंजाब जैसे प्रोग्रेसिव स्टेट, वहाँ पर भी there are a large number of farmers and farm labourers committing suicides, because unfair pricing है crops की, अकेले अनफेयर प्राईसिंग नहीं है, जो उनके इनपुट हैं, उनको इस सरकार ने इतना इन्फ्लेट होने दिया, इतना महंगा होने दिया कि जो आप एमएसपी फ्रिवलस इनक्रीज़ करते हैं, मीगर इनक्रीज़ करते हैं, उनका फार्म इनकम के ऊपर कोई इफेक्ट नहीं पड़ता और इन फ़ैक्ट जो किसानों की इनकम है, वो पिछले सालों में घटी है।

अभी मैं फ़िगर की बात नहीं करता हूं, लेकिन हम डिमांड करते हैं, कांग्रेस पार्टी की तरफ से कि भारत सरकार, मोदी की सरकार एक व्हाइट पेपर जारी करे और इस व्हाइट पेपर में 2004 के वक्त जो प्राइसेस थे क्रॉप्स के और जो फार्मर की इनकम थी, उसको ले लें। 2014 वाले को पैमाना मान कर लें और फिर आप 2022 में बताएं कि इस वक्त किसानों की आमदनी के क्या हालात हैं और ये बात मैं इसलिए कहना चाहता हूं कि आप अगर एमएसपी की बात करें, तो 2004 में जब यूपीए सरकार ने स्टार्ट किया, अपना काम, तो उस वक्त गेहूं के दाम 640 रुपए प्रति क्विंटल थे और डॉ. मनमोहन सिंह के टेन्योर में गेहूं के दाम 1,400 रुपए प्रति क्विंटल हुए। इसी तरह जो पैडी की जो एमएसपी थी, धान की एमएसपी जो थी, वो 560 रुपए प्रति क्विंटल थी। That went up to Rs. 1,400 per quintal in 2013, so UPA की सरकार में जो बढ़ोतरी थी, अगर परसेंटेज वाइज इंक्रीज देखें तो it was literally doubling the prices of crops during the UPA tenure of Dr. Manmohan Singh Ji… doubling… और अगर हम अब की बात करें तो 150% बढ़ोतरी हमने यूपीए की सरकार में दी थी और जो अब काफी अरसे से मोदी जो जुमले छोड़ रहे हैं इधर-उधर के, ये बहुत मीगर बढ़ोतरी हुई है। बहुत कम बढ़ोतरी एमएसपी की क्रॉप्स पर हुई है। सबसे बड़ी बात यहाँ मैं करना चाहता हूं कि इतना बड़ा आंदोलन हुआ देश में। एसकेएम ने और बहुत सारे किसान जत्थेबंदियों ने, ऑर्गेनाइजेशन्स ने लगभग सवा साल यहाँ बैठकर एजिटेट किया। उनकी प्रमुख डिमांड थी कि जो हमारा मिनिमम सपोर्ट प्राइस सिस्टम है, इसको जो आपने प्रॉमिस किया था, बीजेपी के 2019 मैनिफेस्टो में कि हम इसको स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट की रिकमंडेशन के हिसाब से लागू करेंगे देश में and that formula was C2+50% increase, जो भी इनपुट होंगी फसलों की, चाहे वो डीजल है, चाहे पेस्टिसाइड है, चाहे लेबर है, चाहे फर्टिलाइजर है,चाहे एग्रीकल्चर मशीनरी की कॉस्ट है, इन सारी चीजों को कैलकुलेट करने के बाद जो एमएसपी देंगे, वो कम से कम उनको 50 प्रतिशत over and above profitable देंगे, जो भी उनको कॉस्ट होगी। अगर C2+50% फॉर्मूला के साथ स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के साथ कैल्कुलेट किया जाए मोटे तौर के ऊपर तो आज व्हीट और पैडी की जो एमएसपी है लगभग 2,000 रुपए प्रति क्विंटल है। It should be actually Rs 4,000 per quintal, 4,000 रुपए के करीब एमएसपी होनी चाहिए स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से, अगर मोदी साहब की सरकार ने डबलिंग का जो प्रॉमिस किया था, वो कर दे। तो कहाँ 4,000 रुपए प्रति क्विंटल और कहाँ 2,000 रुपए प्रति क्विंटल और आज पहली सरकार हमने देखी है, During 75 years of independence, this is the only government, which has imposed GST on agricultural inputs. फर्टिलाइजर के ऊपर जीएसटी, पेस्टिसाइड के ऊपर जीएसटी, जो एग्रीकल्चर मशीनरी हम यूटिलाइज करते हैं, ट्रैक्टर्स, जो फार्म के इम्लिमेंट्स बनाते हैं, उसके ऊपर सारी जीएसटी और जीएसटी का भी पूरा दाम, जैसे किसी हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को लगाते हैं, कॉर्पोरेट को लगाते हैं, उतने ही दाम जीएसटी के एग्रीकल्चर के इनपुट के ऊपर लगाते हैं। डीजल की बात करें, डीजल एक मेजर इनपुट है एग्रीकल्चर की सारी इकॉनमी.. एग्रेरियन इकॉनमी में। अब आप देखें कि 2014 में जब मोदी साहब ने टेकओवर किया as Prime Minister उस वक्त डीजल की जो प्राइस थी, दिल्ली की बात कर लें, या देश की बात कर लें, it was Rs. 55.48, कांग्रेस की सरकार 55 रुपए 48 पैसे छोड़ कर गई, उस वक्त जब International prices of Crude oil were very high in the world. क्रूड ऑयल की कीमतें ऊपर थी, लेकिन जो डीजल भारत में बिक रहा था खासतौर से ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर में जो यूटिलाइज होता है और एग्रीकल्चर सेक्टर में यूटिलाइज होता है, उसकी कीमत 55 रुपए 48 पैसा प्रति लीटर थी और जो आज कीमत है डीजल की, वो लगभग 90 रुपए है और इसको अगर हम परसेंटेज में कैल्कुलेट करें 61 प्रतिशत बढ़ोतरी है डीजल की कीमत में, भारत में, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार से लेकर मोदी साहब की सरकार में।तो कैसे हुआ ये प्रो एग्रीकल्चर गवर्मेंट का इनके जो फैसले हैं। बेसिकली ये सारी एंटी फार्मर पॉलिसीज़ बनी हैं, पिछले 8 साल में और जैसे मैंने पहले भी बोला आपको और ये जो डीजल की कीमत पर आना चाहता हूं। अब इंटरनेशनल प्राइस ऑफ क्रूड ऑयल विश्व में कम है compared to what they were in 2014, I can also quote in like barrels, आज जो एवरेज प्राइस है बैरल की, वो 78 डॉलर प्रति बैरल है और उस वक्त 108 डॉलर का था बैरल। 108 डॉलर का बैरल क्रूड ऑयल था, तो प्राइस थी ऑलमोस्ट 56 रुपए प्रति लीटर। अब जब इंटरनेशनल कीमत नीचे आई है 78 डॉलर प्रति बैरल है, which was almost 28% lower in prices. तो अब डीजल की कीमत ऑलमोस्ट 90 रुपए है। तो इसका मतलब हम क्या समझते हैं सारे और जैसा मैंने पहले बोला कि मोदी साहब की सरकार 100 फीसदी प्रो-कॉर्पोरेट है। इन्होंने संसद में एडमिट किया है कि हमने पिछले 5 सालों में कॉर्पोरेट घरानों का, अमीर आदमियों का, पूंजीपतियों का 10 लाख करोड़ रुपया माफ किया है, Rs. 10 lakh crore during the last 5 years. लेकिन जो फार्मर्स हैं, जो 65-70 फीसदी लोग ग्रामीण हैं, रूरल इंडिया में रहते हैं, खेती से जुड़े हुए हैं, उनका कोई कर्जा माफ नहीं हुआ और… ये तो चंद कंपनियों का कर्जा माफ हुआ होगा, अगर 10 लाख करोड़ रुपए है। अगर इसे हम देखें it may be just few dozen or may be a couple of hundred companies, लेकिन जो फार्मर्स का डेट(कर्ज़) फैक्टर हैं, गरीबों का, किसानों का, खेत मजदूरों का, किसी का 2 लाख रुपए कर्जा है, किसी का तीन लाख रुपए कर्जा है, जो मजदूर लोग हैं, वो तो शायद 25-50 हजार रुपए कर्जे के कारण आत्महत्या कर रहे हैं और ये कर्जा करोड़ों फैमिलीज़ का है। जबकि जो माफ कर रही है बीजेपी की सरकार ये कुछ लोगों का अमीरों का, पूंजीपतियों का, कॉर्पोरेट्स का माफ किया। तो यहाँ से पता लगता है कि जो बेसिक इंटेशन है इस सरकार की वो सारी जो इंटेशन है, वो एंटी-फार्मर है और एंटी-फार्म लेबर और एंटी-गरीब वर्ग है। तो हम कांग्रेस की तरफ से ये मांग करते हैं सरकार से कि आपने जो झूठ बोला था, जो आपने बोला कि हम फार्मर्स की इन्कम को आने वाले समय में डबल करेंगे, उस पर आप पार्लियामेंट में एक व्हाइट पेपर जारी करें। सारे देश को बताएं कि आपने क्या एफर्ट्स किए हैं और कितनी कीमतें हैं, 2004 से 2022 तक एक पूरा व्हाइट पेपर जारी करें। देश को पता लगना चाहिए कि फार्मर्स की इन्कम को डबल किसने किया था और क्या उस वक्त इकॉनमी थी उनकी और पिछले लगभग 8 साल में मोदी साहब की सरकार में किसानों के और खेत मजदूरों के आर्थिक हालात क्या हैं। जो इकोनॉमिक सिचुएशन है, उसके ऊपर एक व्हाइट पेपर की हम डिमांड करते हैं और बीजेपी से, मोदी साहब से यही बोलेंगे कि कम से कम गरीबों से, गांव के लोगों से, भोले-भाले लोगों से झूठ मत बोलिए, उनको सच बताएं। झूठे वायदे न करें। अपने मैनिफेस्टो के आप क्लॉज़ पढ़ लें, स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के और डबलिंग ऑफ फॉर्म इन्कम की, उसके ऊपर हमारी आपको चुनौती है कि पार्लियामेंट में आने वाले इसी सेशन में आपको एक व्हाइट पेपर एग्रेरियन इकोनॉमी के ऊपर और particularly keeping in view the inputs of agriculture and the prices fixed over a period of time… the minimum support price of different crops इसका एक व्हाइट पेपर पार्लियामेंट में जारी होना चाहिए और मैं रीएट्रेट करता हूं कि जो किसानों ने आंदोलन किया था, आपने उनको भी धोखा दिया है। 600-700 किसान दिल्ली के बॉर्डर पर मरे हैं, उनकी जान गई है और आपने वायदा किया था कि हम सारे देश में मिनिमम सपोर्ट प्राइस को लीगल गारंटी बनाएंगे, लेकिन आपने आज तक उसको लीगल गारंटी भी नहीं बनाया। जो कमेटी बनाई आपने ब्यूरोक्रेट्स की और जो ऑर्गनाइजेशन्स आपके साथ हैं बीजेपी के किसान ऑर्गेनाइजेशन्स… आपने उनको ले लिया केवल, ये सारी कमेटी भंग होनी चाहिए और जो फार्मर्स के असली नॉमिनी हैं, जिन्होंने स्ट्रगल किया है, एजिटेट किया है, उनको लेकर एक नई कमेटी बने। टाइम-बाउंड फ्रेम स्ट्रक्चर में मिनिमम सपोर्ट प्राइस को एक लीगल गारंटी की शक्ल में बनाया जाए और जो मुकदमे आपने किसान आंदोलन में हजारों की तादाद में किसानों के ऊपर किए, वो सारे मुकदमे वापस लेने चाहिए।

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