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मोदी सरकार बना रही है ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’, कृषि को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का षडयंत्र- सुरजेवाला- वीडियो देखें

अजीत सिन्हा/ नई दिल्ली 
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की इस पत्रकार वार्ता में आप सबका स्वागत है। आज एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गंभीर विषय लेकर हम आपके बीच उपस्थित हैं। मोदी सरकार पहले जमीन हड़पने का अध्यादेश लाई- अब खेती हड़पने के तीन काले कानून लेकर आई है. खेत-खलिहान को पूंजीपतियों के हाथ गिरवी रखने का घिनौना षडयंत्र कर रही है भाजपा। मोदी सरकार बना रही है ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’, कृषि को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का षडयंत्र। ‘हरित क्रांति’ को हराने की भाजपाई साजिश को कांग्रेस कभी कामयाब नहीं होने देगी। मोदी सरकार है ही ‘किसान विरोधी’। साल 2014 में सत्ता में आते ही किसानों के भूमि मुआवज़ा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाई थी। तब भी कांग्रेस व किसान के विरोध से मोदी जी ने मुंह की खाई थी। मोदी सरकार ने खेत-खलिहान-अनाज मंडियों पर तीन अध्यादेशों का क्रूर प्रहार किया है।

ये ‘काले कानून’ देश में करोड़ों खेती व करोड़ों किसान-मज़दूर-आढ़तियों को खत्म करने की साजिश के दस्तावेज हैं। खेती और किसानों को मुट्ठी भर पूंजीपतियों के हाथ गिरवी रखने का यह सोचा-समझा षडयंत्र है। अब यह साफ है कि मोदी सरकार पूंजीपति मित्रों के जरिए ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ बना रही है। अन्नदाता किसान व मजदूर की मेहनत को मुट्ठीभर पूंजीपतियों की जंजीरों में जकड़ना चाहती है। किसान को ‘लागत+50 प्रतिशत मुनाफा’ का सपना दिखा सत्ता में आए प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने तीनों अध्यादेशों के माध्यम से देश में खेती के खात्मे का पूरा उपन्यास ही लिख दिया है। अन्न दाता किसान के वोट से जन्मी मोदी सरकार आज किसानों के लिए भस्मासुर साबित हो रही है। सच्चाई य़े है कि मोदी सरकार है ही किसान विरोधी। साल 2014 में सत्ता में आते ही किसानों के भूमि मुआवजा कानून को खत्म करने का अध्यादेश लाई। तब भी राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस व किसान के विरोध से मोदी जी ने मुँह की खाई थी और अब भी खाएंगे। किसान-खेत मजदूर-आढ़ती-अनाज व सब्जी मंडियों को जड़ से खत्म करने के तीन काले कानूनों की सच्चाई इन दस बिंदुओं से उजागर हो जाती है:-

1. अनाज मंडी-सब्जी मंडी यानि APMC (Agricultural Produce Market Committee) को खत्म करने से ‘कृषि उपज खरीद व्यवस्था’ पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। साल 2006 में APMC Act यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है। किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफा कमा MSP पर बेच देते हैं। अब अंदाजा लगाईए कि अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान-खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा मुट्ठीभर पूंजीपतियों को।

2. किसान को खेत के नज़दीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन तथा मंडी में खरीददारों के परस्पर कॉम्पटिशन के आधार पर मिलता है। मंडी में पूर्व निर्धारित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंचमार्क है। यही एक उपाय है, जिससे किसान की उपज की सामूहिक तौर से ‘प्राईस डिस्कवरी’ यानि मूल्य निर्धारण हो पाता है। अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गारंटी है। अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा।

3.मोदी सरकार का दावा है कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी ले जाकर बेच सकता है, इसके लिए वो अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, ये पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत की किसी मंडी में ले जाकर बेच सकता है। क्योंकि एपीएमसी एक्ट में इस पर कोई पाबंदी नहीं। दूसरी बात जो मोदी जी नहीं बता रहे, कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। 2 से 5 एकड़ की भूमि की मालिक वाला किसान ना हरियाणा से मद्रास अपनी फसल को ले जा सकता, ना असम से बंगाल और पंजाब तक लेकर आ सकता, ना पंजाब का किसान मुंबई तक जा सकता, उसे तो अपनी फसल नजदीक से नजदीक वाली मंडी में बेचनी है और अगर मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी तो किसान स्वाभाविक तौर से अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार भाव पर नहीं बेच पाएगा। इन अध्यादेशों का सीधे-सीधे प्रतिकूल असर किसान पर होगा।

4.मंडियां खत्म होते ही अनाज मंडी-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। इन तीनों काले कानूनों का ये असर भी है।

5.अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत 2 किस्म की फीस मंडियों में लगाते हैं। एक है ‘मार्केट फीस’ व दूसरी ‘ग्रामीण विकास फंड’। इन दोनों फीस व पैसे से प्रांतीय सरकारें ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास भी करती हैं, नई मंडी, मार्केट, यार्ड व सब मार्केट यार्ड का निर्माण भी करती है और खेती-बाड़ी को प्रोत्साहन भी देती हैं। अगर ये पैसा ही नहीं रहा तो फिर ग्रामीण अंचल की तरक्की और विकास का क्या होगा? मैं उदाहरण के तौर पर बताता हूं -पंजाब ने इस गेहूं सीज़न में 127.45 लाख टन गेहूँ खरीदा। पंजाब को 736 करोड़ रु. मार्केट फीस व इतना ही पैसा ग्रामीण विकास फंड में मिला। आढ़तियों को 613 करोड़ रु. कमीशन मिला। ये पैसा किसान नहीं देता, ये पैसा फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और दूसरी खरीद एजेंसियाँ देती हैं या जो प्राईवेट फैक्ट्रीयां या कंपनियां मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए आती हैं, वो इस पैसे का भुगतान करते हैं। अब

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