अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:आम आदमी पार्टी की सरकार ने 2024 के ओलंपिक और पैरालंपिक में भारत का मान बढ़ाने वाले दिल्ली के 5 खिलाड़ियों व एक कोच को नकद प्रोत्साहन योजना के तहत एक तय राशि देकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री आतिशी ने खिलाड़ी शरद कुमार को 2 करोड़ रुपए, अमन को 1 करोड़ रुपए, शरद कुमार के कोच सजल कुमार राय, तूलिका मान और विकास सिंह को 10- 10 लाख रुपए और अमोज जैकब को 5 लाख रुपए का चेक देकर सम्मानित किया। सरकार की तरफ से इन खिलाड़ियों में 3 करोड़ 35 लाख रुपए वितरित किए गए।
इस अवसर पर दिल्ली स्पोर्ट्स स्कूल के बच्चे भी मौजूद रहे। पुरस्कृत हुए खिलाड़ियों ने इन बच्चों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेलों में सफलता प्राप्त करने के लिए टिप्स दिए। साथ ही, बच्चों के सवालों के जवाब भी दिए। इस दौरान सीएम आतिशी ने कहा कि पिछले 10 साल में “आप” की सरकार ने दिल्ली के अंदर नए और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने के लिए ज्यादा से ज्यादा मदद करने की कोशिश की है।
दिल्ली की सीएम आतिशी ने कहा कि मुझे कई बार लगता है कि हमारे खिलाड़ी जो दिन-रात मेहनत करते हैं, अपने टारगेट को पाने के लिए लगे रहते हैं, प्रतियोगिताओं में जाते हैं। कई बार उन्हें भी यह अंदाजा नहीं होता होगा कि जब वह ओलंपिक्स या किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के उस लेवल तक पहुंचते हैं, तो इस देश के करोड़ों लोग उन्हें कितनी उम्मीद से देख रहे होते हैं। देश के ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो लगातार हमारे सभी एथलीट्स के गेम से जुड़े रहते हैं। जब भी कोई भारतीय खिलाड़ी मेडल लेकर आता है,
पोडियम पर उसे मेडल पहनाया जाता है और भारत का तिरंगा झंडा ऊपर उठता है, तो वह ऐसा पल होता है जब पूरा देश एक होता है। उस वक्त देश में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होता जिसकी आंखें न भर आई हों। इस देश को साथ लाने और दिल से जोड़ने के लिए जो भूमिका खिलाड़ी निभाते हैं, शायद कोई और नहीं निभा सकता।सीएम आतिशी ने कहा कि जब हम ओलंपिक्स या एशियन गेम्स में अपने खिलाड़ियों को मेडल लाते हुए देखते हैं तो बहुत गर्व होता है। लेकिन वहीं मन में एक टीस भी रह जाती है कि भारत इतना बड़ा देश है। हमारे यहां इतने टैलेंटेड खिलाड़ी और युवा हैं, लेकिन इतना टैलेंट होने के बावजूद ऐसा क्यों है कि कई सारे ऐसे देश जो भारत से बहुत छोटे हैं, फिर भी हमसे बहुत ज्यादा मेडल लेकर जाते हैं। खिलाड़ियों की बातचीत में कई बार ये बात निकलकर सामने आती है कि इसमें गलती खिलाड़ियों की नहीं है, बल्कि कमी हमारी सरकारों की रही है जो हमारे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सपोर्ट नहीं कर पाई है। बच्चों और खिलाड़ियों में प्रतिभा का होना तो बहुत जरूरी है, लेकिन स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग अपने आप में बहुत महंगी चीज भी होती है। चाहे वो खेल का सामान हो, ट्रेनिंग हो या डाइट हो। मुझे लगता है, बहुत कम उम्र में अगर हमारे खिलाड़ियों के परिवार वाले उन्हें सपोर्ट नहीं करते तो बहुत टैलेंट होने के बावजूद भी वह आगे नहीं बढ़ पाते।सीएम आतिशी ने आगे कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि पिछले 10 साल में हमने दिल्ली सरकार में पूरी कोशिश की है कि हम नए खिलाड़ियों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा सपोर्ट करें। दिल्ली में दो साल पहले स्पोर्ट्स स्कूल की शुरुआत हुई है और ओलंपिक के 10 खेलों में हमारे इन बच्चों को ट्रेन किया जा रहा है। सीएम आतिशी ने सभी ओलंपिक खिलाड़ियों को एक बार स्पोर्ट्स स्कूल में आकर देखने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि आपको अगर मौका मिले तो हमारे इस स्कूल में आइएगा। आपको इन बच्चों को प्रशिक्षित होते हुए देखकर बहुत गर्व महसूस होगा कि इतनी कम उम्र से ये बच्चे इतनी शानदार ट्रेनिंग ले रहे हैं। हमारे बच्चे यहां खूब मेहनत कर रहे हैं।सीएम आतिशी ने कहा कि कुछ दिनों पहले मैं यहां आई थी तो बच्चों ने मुझसे कहा था कि हमें दिन में केवल दो ट्रेनिंग सेशन करवाए जाते हैं और हमें उससे ज्यादा सेशन चाहिए क्योंकि हम और ज्यादा मेहनत करना चाहते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि हमारे ये बच्चे कुछ सालों बाद हमारे भारत का तिरंगा ओलंपिक में लहराएंगे। न केवल हमारे स्पोर्ट्स स्कूल के बच्चे बल्कि हमने दिल्ली सरकार और साथ ही दिल्ली के अन्य स्कूलों के बच्चों को भी ट्रेन करने की कोशिश की है। हमारे युवा खिलाड़ियों के लिए हमने प्ले एंड प्रोग्रेस स्कीम की शुरुआत की थी, ताकि 17 साल की उम्र तक के खिलाड़ियों को सपोर्ट किया जाए। मुझे इस बात की खुशी है कि 2018 में जब यह स्कीम शुरू हुई थी तब से लेकर आज तक हमने 1400 से ज्यादा खिलाड़ियों को इस स्कीम के तहत सपोर्ट किया है। इन खिलाड़ियों को 31 करोड़ रुपए से ज्यादा की सहायता दी गई है। जो खिलाड़ी स्कूल से पास आउट हो गए हैं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए एक मिशन एक्सीलेंस की शुरुआत की गई थी, जिसमें हमारे एथलीट्स को 16 लाख रुपए तक की सहायता दी जाती है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इसके तहत 2018 से लेकर आज तक 394 खिलाड़ियों को सपोर्ट किया गया है और इन पर 25 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए हैं।सीएम आतिशी ने कहा कि इन सबके अलावा दिल्ली में एक बहुत बड़े स्तर पर स्पोर्ट्स इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है। कुछ साल पहले जब हमने अपने पहले हॉकी के एस्ट्रोटर्फ का उद्घाटन किया था, तब स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट ने एक बहुत ही मजेदार बात बताई। उन्होंने बताया कि भारत शुरू से हॉकी में बहुत मेडल लेकर आता था, लेकिन यह मेडल इसलिए कम हुए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय हॉकी एस्ट्रोटर्फ पर खेली जाती है और हमारे देश में बहुत कम ऐसे स्टूडेंट्स के लिए ट्रेनिंग की सुविधाएं हैं, जहां एस्ट्रोटर्फ उपलब्ध है। हमारे बच्चे घास पर ट्रेनिंग करते हैं। घास और एस्ट्रोटर्फ की स्पीड में काफी अंतर होता है। एस्ट्रोटर्फ में गेम बहुत तेज स्पीड में चलता है। ऐसे में उस जर्नलिस्ट ने मुझे बताया कि आपको पता नहीं है या अंदाजा नहीं है कि आपने कितनी बड़ी चीज की है। आज आपने घुम्मनहेड़ा में एस्ट्रोटर्फ फील्ड का उद्घाटन किया है, वहां से बहुत सारे हॉकी के ओलंपिक गोल्ड भारत को जरूर मिलेंगे, क्योंकि यहां पर हमारे स्टूडेंट्स को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के टर्फ पर ट्रेनिंग का मौका मिलेगा। इसी तरह से चाहे स्विमिंग, सिंथेटिक ट्रैक या फुटबॉल ग्राउंड हों, हमारी कोशिश रही है कि हर संभव सपोर्ट हमारे युवा खिलाड़ियों को मिलता रहे। सीएम आतिशी ने कहा कि आज हमारे स्पोर्ट्स स्कूल के स्टूडेंट्स को ओलंपियन्स के साथ संवाद करने का मौका मिला है। यह बातचीत बहुत अलग थी। मुझे आशा है कि स्टूडेंट्स को इन सभी ओलंपिक्स से बात करके बहुत प्रेरणा मिली होगी और बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। मैं यह उम्मीद करती हूं कि यहां बैठे स्टूडेंट्स जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करें, तो दिल्ली से इतने सारे ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट हमारे बीच में हों कि स्टेज पर जगह कम पड़ जाए। हमारे दिल्ली स्पोर्ट्स स्कूल के छात्रों से न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश की उम्मीदें टिकी हुई हैं कि आप भारत के मेडल टैली को ट्रिपल डिजिट्स में लेकर जाएंगे।
एथलेटिक्स में सिल्वर मेडल जीतने वाले शरद कुमार ने कहा कि हम सारे एथलीट बहुत मेहनत करके यहां तक पहुंचते हैं। मैं दिल्ली सरकार का बहुत शुक्र गुजार हूं कि वह हमारी मेहनत और परिश्रम को प्रोत्साहन दे रही है। इस प्रक्रिया से केवल एक खिलाड़ी नहीं गुजरता, बल्कि एक पूरी टीम बनती है। मेरा संघर्ष भी स्कूल से ही शुरू हुआ था। जहां अधिकतर बच्चों के माता-पिता होते हैं, मेरे लिए स्कूल के शिक्षक ही मेरे अभिभावक बन गए थे। उन्होंने मुझे खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया और मुझ पर भरोसा जताया। उन्होंने बार-बार मुझे आगे बढ़ने के लिए कहा क्योंकि उन्हें मुझ पर विश्वास था कि मैं कर सकता हूं। दिव्यांगता के साथ जीने वालों को अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लोग बातें बनाते हैं, और घरवाले भी चिंता करते हैं कि बच्चे को चोट न लग जाए। लेकिन हमें उसी खेल में मेहनत करनी चाहिए जो हमें सबसे ज्यादा खुशी दे, क्योंकि यही संघर्ष को आसान बना देता है। कुश्ती में कांस्य पदक लाने वाले खिलाड़ी अमन ने कहा कि यह ओलंपिक मेडल मेरी अकेले की मेहनत का परिणाम नहीं है, यह मेरे कोच के आशीर्वाद और दिल्ली सरकार के सहयोग की बदौलत संभव हुआ है। जब मैं 10 साल का था, तब मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद मैं दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में आ गया। वहां मेरे गुरु ने मेरा सब कुछ संभाला। तब से मैंने ठान लिया था कि मैं ओलंपिक का मेडल जीतकर ही घर लौटूंगा। यह हमारी पूरी टीम की मेहनत का फल है।ओलंपिक में कई मेडल जीत चुके रवि दहिया ने कहा कि मेरे पिताजी को कुश्ती में बहुत दिलचस्पी है। हरियाणा में किसान के पास ज्यादा साधन नहीं होते, इसलिए कुश्ती सबसे किफायती खेल माना जाता है। मैंने गांव में कुछ दिन कुश्ती खेली, फिर 2007 में पिताजी मुझे दिल्ली लेकर आए। मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे दिल्ली में बड़े और अनुभवी खिलाड़ियों के साथ सीखने का मौका मिला। आप सब बच्चे भी बहुत सौभाग्यशाली हैं कि आप दिल्ली में हैं, क्योंकि बाकी राज्यों में ऐसी सुविधाएं नहीं हैं। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं ओलंपिक में मेडल लाऊंगा, लेकिन यह हमेशा मेरा सपना रहा है। जिस तरह से दिल्ली सरकार खिलाड़ियों को समर्थन दे रही है, ऐसा देश के किसी अन्य राज्य में नहीं हो रहा है। दिल्ली सरकार की खिलाड़ियों के लिए योजनाएं, दिल्ली स्पोर्ट्स स्कूल और स्कूल ऑफ एक्सीलेंस जैसी पहलें काबिले तारीफ हैं।दसवीं की छात्रा अविष्का यादव ने शरद कुमार से पूछा कि उन्हें एथलेटिक्स में जाने की प्रेरणा कहां से मिली? इस पर शरद कुमार ने कहा कि मैं जब स्कूल में था तो मेरे कई दोस्त हाई जम्प खेल में थे। जब मैंने उनसे कहा कि मुझे भी हाई जम्प करना है तो उन्होंने मुझसे कहा कि आपसे नहीं होगा। एक बार सभी लोग लंच करने गए हुए थे तब मैंने सोचा कि कोई देख नहीं रहा है। तो मैं भागकर गया और हाई जम्प किया और मैं पहले ही अटेम्प्ट में सफल भी हो गया। मैंने जिस हाइट पर जम्प किया था, वह उस डिवीजन की रिकॉर्ड हाइट थी। उसके बाद मैं इसी में आगे बढ़ता गया और कल तक जो मेरा मजाक उड़ाते थे आज वही मेरा हौसला बढ़ाते हैं। दसवीं की छात्रा लवन्या ने रेसलर अमन से पूछा कि फेलियर से कैसे बाहर निकलें? इस पर अमन ने कहा कि हर खिलाड़ी के सफर में उतार-चढ़ाव आते हैं। जब भी मुसीबत आती थी तो मैं कभी भी मुसीबत की तरफ नहीं देखता था। मेरा हमेशा से एक ही सपना था कि ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप में जाना है। इसलिए मैं मुसीबत में हमेशा अपने लक्ष्य की तरफ देखता था जिससे मुझे हिम्मत मिलती थी। शिवि गोदारा नाम की छात्रा ने ओलंपियन रवि दहिया से पूछा कि वह दिन में कितने घंटे ट्रेनिंग करते थे? इस पर रवि ने कहा कि मेरा मानना है कि आप जो अपनी क्लास में ट्रेनिंग करते हो , वही सबसे सर्वश्रेष्ठ होती है। जो कोच ट्रेनिंग करवाते हैं उसी में अपनी जी जान लगाने की कोशिश करो। हम सुबह 5 बजे से लेकर 8:30 बजे तक और शाम को 4:30 बजे से 7:30 बजे तक ट्रेनिंग करते थे। ट्रेनिंग रोजाना करनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक दिन में 7-8 घंटे ट्रेनिंग कर ली और अगले दिन आराम कर लिया। दसवीं की डिंपी ने शरद कुमार से सवाल किया कि जब किसी खिलाड़ी की परफॉर्मेंस में ग्रोथ नहीं होती है तो उससे कैसे बाहर निकलें? इस पर शरद कुमार ने कहा कि इसमें कोच का बहुत बड़ा योगदान होता है। क्योंकि खिलाड़ी अपनी पूरी ताकत लगा देता है लेकिन कोच खिलाड़ी के हर मूवमेंट में निखार लाने का काम करते हैं। मेरे कोच कहते हैं कि जो कॉम्पिटिशन में फिट होता है, वही आखिर में जीतता है। साथ ही, इसमें धैर्य का भी बहुत बड़ा हाथ होता है इसलिए धैर्य रखना भी जरूरी है।
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