अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
चंडीगढ़: प्रदेश में एडीजीपी साइबर की ज़िम्मेदारी संभाल रहे वरिष्ठ अधिकारी ओपी सिंह का कहना है कि बैंकों को ऑनलाइन ठगी के प्रति अपनी बैंकिंग सुरक्षा प्रणाली को तुरंत मजबूत करने की आवश्यकता है। अक्सर देखा गया है कि अधिकतर मामलों में, पीड़ितों ने साइबर अपराध की रिपोर्ट करने में औसतन 14 घंटे लगाए और कभी-कभी तो 38 घंटे तक, जिससे रिकवरी की संभावना कमजोर हो जाती है, क्योंकि ठग जल्दी से जल्दी ठगी गई राशि को फर्जी बैंक खातों में भेज देते हैं। हरियाणा पुलिस की साइबर क्राइम एजेंसी द्वारा किए गए विश्लेषण में पता चला है कि जब लोग साइबर ठगी की रिपोर्ट हेल्पलाइन 1930 पर करते हैं, तब तक ठगी को 14 घंटे से अधिक का समय बीत गया होता है, और बैंकों की धीमी प्रतिक्रिया के कारण ठगी गई राशि को ब्लॉक करने में 5-11 घंटे तक की देरी हो जाती है।
पुलिस द्वारा साझा की गई एक्सक्लूसिव जानकारी से इस बात का पता चलता है कि पुलिस ने 20 दिसंबर 2023 से 20 जनवरी 2024 तक दर्ज साइबर ठगी की सभी शिकायतों का विश्लेषण किया। इस अवधि में, बैंकों को तुरंत कार्रवाई करने के लिए 26.8 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले रिपोर्ट किए गए थे। इसमें से केवल 6.73 करोड़ रुपये को सफलता पूर्वक ब्लॉक किया गया, इसका मतलब है कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट की गई राशि का 75 प्रतिशत बैंकों की देरी के कारण ब्लॉक नहीं किया जा सका। एडीजीपी साइबर ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि डेटा विश्लेषण से यह खुलासा होता है कि पुलिस ने cybercrime.gov.in पोर्टल पर साइबर ठगी की शिकायत दर्ज करने के बाद बैंकों को तुरंत अलर्ट भेजा, लेकिन इसके बाद बैंकों ने कार्रवाई करने में करीब 5-11 घंटे लगाए। जिसका नुकसान ये हुए कि उस समय तक, ठगी गई राशि को ठगों ने फर्जी खातों में भेजकर एटीएम से या तो नकदी के रूप में निकाल लिया गया या शॉपिंग के लिए इस्तेमाल कर लिया गया।वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि “शिकायत के पहले स्तर पर बैंकों ने कार्रवाई करने में पांच घंटे लगाए, वहीं जब ठगों ने धनराशि को अगले बैंक में भेजा तो इसमें बैंकों को प्रतिक्रिया करने में 11 घंटे लगे। डेटा विश्लेषण से साफ-साफ पता चलता है कि जहाँ पुलिस को साइबर ठगी की शिकायत बैंकों तक पहुंचाने में औसतन आठ मिनट लगते हैं वहीं बैंक के नोडल अधिकारी भेजे गए अलर्ट पर कार्रवाई करने में काफी समय लेते हैं। आगे उन्होंने बताया कि अधिकांश शिकायतों में, पीड़ितों ने साइबर अपराध की रिपोर्ट करने में औसतन 14 घंटे लगाए,और कभी-कभी 38 घंटे तक, जिससे रिकवरी की संभावना कमजोर हो गई,क्योंकि साइबर ठग बिना देरी किए फर्जी बैंक खातों में धन को जल्दी से जल्दी स्थानांतरित कर देते हैं। साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग में इस “चिंताजनक परिस्थिति ” का उल्लेख करते हुए, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (साइबर) ओपी सिंह ने बैंकों को ऑनलाइन ठगी के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया पर कार्य करने पर ज़ोर दिया। एडीजीपी ने कहा कि “हमारा डेटा साइबर अपराध की रिपोर्टिंग और बैंकों की प्रतिक्रिया में चिंताजनक स्थिति दर्शाता है। एक तरफ जहां पुलिस बिना किसी देरी के बैंकों को ठगी के मामलों में अलर्ट भेज रही है,वहीं दूसरी ओर ठगी गई राशि को ब्लॉक करने में बैंकों की प्रतिक्रिया में धीमापन चौंकाने वाला है।” हमारी बैंकों से अपील है कि नागरिकों द्वारा साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग और बैंकों के रिस्पांस मैकेनिज्म पर कार्य करें। विदित है कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पंचकूला में स्थित इआरएसएस बिल्डिंग 112 में स्थिति साइबर हेल्पलाइन केंद्र में बैंकों के प्रतिनिधि बैठे है और साइबर ठगी की रिपोर्टिंग की स्थिति में तुरंत शिकायत पर कार्रवाई कर रहे है। आगे उन्होंने बताया कि बैंकों की तरफ से अभी भी कार्रवाई का समय काफी धीमा है। डेटा के अनुसार बैंक एक साइबर ठगी की शिकायत पर कार्रवाई करने में 14 घंटे का समय लेता है वहीं पुलिस एक शिकायत को दर्ज करने और बैंक में भेजने में सिर्फ 8 मिनट का समय लेती है। वहीं आगे बताया कि पुलिस द्वारा साइबर सुरक्षा पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहें हैं जिसमें जनता को किसी भी संदेहजनक ऑनलाइन गतिविधि की तत्काल रिपोर्टिंग के महत्व की शिक्षा दी जा रही है। मीडिया से यह विश्लेषण साझा करने का मकसद यह है कि ठगी गई राशि को ब्लॉक करने की प्रक्रिया का मूल्यांकन किया जाए। यह साइबर पुलिस की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह तत्परता से मामलों की जाँच करें, लेन-देन की पुष्टि करें और फिर ‘होल्ड’ किए गए बैंक खातों को तुरंत बहाल करें। जिला पुलिस में नियुक्त साइबर नोडल अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि रिपोर्ट्स की रोजाना समीक्षा करनी चाहिए और यदि लेन-देन सही है, तो ‘होल्ड’ को शीघ्र हटा देना चाहिए। पुलिस द्वारा बैंकों को निर्धारित समय अवधि में रिपोर्ट भेजने के लिए राजी करना चाहिए। यह बिल्कुल नहीं माना जाना चाहिए की निचले क्रम की सभी ट्रांजेक्शन फर्जी हैं। यह भी पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि कानूनन सही लेन-देन को प्रभावित न करें।
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