अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
गुरुग्राम:ऊर्जा समिति’ द्वारा आज 100 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखने वाले पीपल को रोपित कर ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया। प्रात: ही सेक्टर 31 क्षेत्र में पौधारोपण कर इसकी शुरुआत की गई। प्रकृति के प्रति समर्पण भाव रखते हुए, इसके संरक्षण एवं वायु प्रदूषण को कम करने में योगदान का संकल्प किया गया। यह पौधरोपण अभियान मानसून में भी जारी रहेगा। समिति के महासचिव संजय कुमार चुघ ने बताया कि विश्व पर्यावरण दिवस 2022 की थीम ‘केवल एक पृथ्वी’ के आधार पर ‘प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने’ पर ध्यान केंद्रित कर लोगों को जागरूक किया गया। उन्होंने आह्वान किया कि वर्षा ऋतु में ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण अभियानों में शामिल हों और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में अपना पूरा योगदान दें।
सभी लोग पर्यावरण की रक्षा के लिए न्यूनतम बिजली, तेल, गैस, पेट्रोल व डीजल का इस्तेमाल और जल संरक्षण कर अपने दायित्वों का निर्वाह करें।महासचिव ने कहा कि शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है। पीपल 100 प्रतिशत, बेल 85 प्रतिशत, नीम, वटवृक्ष, इमली, कविट 80 प्रतिशत, आंवला 74 प्रतिशत, आम 70 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करने पड़ेंगे। इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं। अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं। संजय चुघ ने बताया कि आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का पौधारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।
पीपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं साथ ही धरती के तापमान को भी कम करते हैं। घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे। उन्होंने अपील की कि हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने “भारत” को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है। भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।आइए हम पीपल, बड़, बेल , नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं “सुजलां सुफलां पर्यावरण” देने का प्रयत्न करें।
उन्होंने बताया कि इस भीषण गर्मी में केवल सुरक्षित परिसर, प्रांगण व स्थान पर ही पौधा लगायें, जहां पर उनकी नित्यप्रति संभाल हो सके। इस गर्मी में बिना संभाल के पौधे उग नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा कि हमने फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस (नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत 40 वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है। गुलमोहर, निलगिरी जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं। पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हमने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है। भविष्य में कार्बन-डाइऑक्साइड को सोखने वाले पौधे रोपित कर पर्यावरण को बेहतर बनाना होगा।
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