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संविधान ने 3 स्तंभ बनाए, चौथा स्तंभ मीडिया जनता ने बनाया है-मल्लिकार्जुन खरगे को लाइव वीडियो में सुने।

अजीत सिन्हा /नई दिल्ली
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि लोकमत संसदीय पुरस्कार के चौथे संस्करण में पधारे हुए सम्मानित, गौरवान्वित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद , विजय दरड़ा और हमारे सीनियर नेता, शरद पवार , प्रो. मुरली मनोहर जोशी, हरिवंश नारायण, विनय कुमार सक्सेना, और राजेन्द्र दरड़ा, सभी ने अपनी-अपनी बात यहाँ पर रखी और बहुत से सुझाव भी यहाँ पर आए। मैं चंद बातें मीडिया पर रखना जरूरी समझता हूँ, क्योंकि आज ये जो मीडिया बहुत ही इंपोर्टेंट एक डेमोक्रेसी का पिलर बना है औऱ इसको मजबूत करने के लिए सबसे पहले मैं विख्यात स्वतंत्रता सेनानी जवाहर लाल दरडा जी को श्रद्धांजलि देता हूं, जिन्होंने लोकमत नाम के जिस पौधे को लगाया वो आज विशाल वृक्ष बन गया है। 2023 का साल दरडा जी का जन्म शताब्दी वर्ष भी है। मैं उस जगह पर जाकर आया हूँ, जिस जगह वो रहते थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई और पत्रकारिता में बड़ी भूमिका निभायी। लंबे समय तक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे और जनसेवा की। कई संस्थाएं बनाईं। यूपीए सरकार में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी हुआ था।

मित्रों, लोकमत का गौरवशाली इतिहास है। इसका नामकरण महान सेनानी, मुझे जो जानकारी मिली है, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने किया था और इसे जवाहरलाल दरड़ा जी ने नया जीवन दिया। आज ये देश के प्रमुख अखबारों में एक है। सामाजिक कामों में इसका बड़ा योगदान है।

संविधान ने 3 स्तंभ बनाए। चौथा स्तंभ मीडिया जनता ने बनाया है। मीडिया हमारी डेमोक्रेसी का बड़ा अहम हिस्सा आज बन चुका है।

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) में हर भारतीय नागरिक को Freedom of Speech and Freedom of Expression के अधिकार की गांरटी दी है। संविधान सभा में इस पर सहमति थी कि मीडिया की स्वतंत्रता को इसी अधिकार का विस्तार माना जाये। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में भी इसी मान्यता पर मोहर लगी है।

भारत में प्रिंट मीडिया का इतिहास 200 सालों से अधिक का है। पहले मीडिया के नाम पर अखबार थे। अब इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का दौर आया है, फिर भी प्रिंट मीडिया की हैसियत बरकरार है। अगर मैं ये कहूं कि अकबर इलाहाबादी ने एक बार लिखा था कि-

खींचों न कमानों को, न तलवार निकालो

जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो।

तो ये अखबार तोप का भी मुकाबला कर सकता है, इसलिए इसकी अहमियत डेमोक्रेसी में बहुत बड़ी है।

मीडिया का एक हिस्सा आज अपनी आजादी की रक्षा के लिए लड़ रहा है, वहीं एक हिस्सा सत्ता के आगे सरेंडर कर चुका है। आज सच लिखने और बोलने की आजादी पर खतरा है। पेड न्यूज, फर्जी खबरें, टीआरपी घोटाला, सनसनी, पक्षपात और भेदभाव भरी खबरों ने उसकी छवि पर थोड़ा असर डाला है। हमारे संसदीय लोकतंत्र में सांसदों और मीडिया को सवाल पूछने का विशेषाधिकार है। लेकिन जब संसद में रखी अहम बातें प्रोसीडिंग से बाहर होने लगें, शायरी तक बाहर होने लगें तो पीड़ा जरूर हमको होती है।मीडिया का एक तबका अंधविश्वास को बढावा दे रहा है। गरीबी, बेरोजगारी, विषमता जैसे सवाल गायब हो रहे हैं। इलेक्टॉनिक मीडिया एजेंडा चला रहा है। हमें याद रखना चाहिए कि भारत में ऐसे तमाम महान पत्रकार हुए, जिन्होंने निडर होकर फिरकापरस्त ताकतों, जातिवाद और संप्रदायिकता का विरोध किया। लेकिन आज वो सभी कमजोर दिख रहे हैं।

यह चिंता की बात है कि जिस देश में संविधान ने मीडिया को इतनी आजादी दी है, वह दुनिया के 180 देशों में… प्रेस की आज़ादी की रैकिंग 2022 के आंकड़े अगर निकालें तो हमारा स्थान 150 पर है, यानि 180 देशों में जहाँ पर प्रेस की आजादी है, तो वहाँ पर हमारी रैंकिंग 150 पर है। आज हेट स्पीच को मीडिया का एक तबका हवा देता है। सुप्रीम कोर्ट ने 21 सितंबर, 2022 को पूछा था कि सरकार इस पर चुप क्यों है? ये भी कहा कि कुछ राजनीतिक दल घृणा भाषण की पूंजी बनाते हैं और टीवी चैनल एक मंच के तौर पर काम करते हैं। राहुल गांधी ने इन बातों को लेकर ही भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी, लेकिन मीडिया के एक तबके ने इसे नजरंदाज किया। हाल में रायपुर में कांग्रेस का महाधिवेशन हुआ, जिसमें मुझे अध्यक्षता करने का अवसर मिला था, 10 हजार से अधिक नेता कार्यकर्ता वहाँ जुटे थे, उसे संसद टीवी और सरकारी प्रचार माध्यमों में थोड़ी सी भी जगह नहीं मिली।

आज सविधान और लोकतंत्र के सामने बड़ा खतरा है और हम सभी उसकी लड़ाई लड़ रहे हैं। इसमें मीडिया का रोल बहुत मह्त्वपूर्ण है।

डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर ने एक बात कही थी, 18 जनवरी, 1943 में, जब वो पूना में महादेव गोविन्द रानाडे के उस सेमिनार में वो गए थे, उनकी 101वीं जयंती थी, तो उसमें उन्होंने कहा कि भारत में पत्रकारिता कभी व्यवसाय था, आज व्यापार बन गई है। आज उनका मुख्य सिद्धांत है- एक नायक चुनकर उसकी पूजा करना। उसकी छत्रछाया में समाचार पत्रों का स्थान सनसनी और विवेकसम्मत मत के विवेकहीन भावावेश ने ले लिया है। मुझे इस बात की खुशी है कि कुछ सम्मानजनक अपवाद मौजूद हैं, लेकिन उनकी आवाज कभी सुनी नहीं जाती इस देश में। ये मुझे इसलिए कहना पड़ रहा है कि बहुत से पत्रकार अच्छे हैं, लेकिन उनको भी कमजोर बनाया जा रहा है और उनकी आर्म ट्विस्टिंग भी हो रही है। इसलिए ये बात कहना मुझे जरूरी लगा। किसी को इससे अगर ठेस लगी हो, मैं क्षमा चाहता हूँ।

मेरा मानना है कि इस दौर में सभी जन सच्चाई के साथ मजबूती से खड़े होंगे। और मीडिया भी इस बात पर गौर करेगा।

इस मौके पर सभी पुरस्कृत साथी सांसदों को बधाई देते हुए मैं यही कहूँगा कि जो आज हमारे लोकमत के ग्रुप के जो दरड़ा साहब हैं, उन्होंने एक नई परंपरा कायम की और सभी को प्रोत्साहन देने के लिए, सभी को एक इंक्रेजमेंट देने के लिए उन्होंने ये जो काम शुरू किया है, और मैं भी इस कमेटी में एक बार शामिल था और ये चुनने में इतनी दिक्कत होती है, जैसा कि शरद पवार साहब ने कहा कि जब हम वहाँ बैठते हैं, अलग-अलग विचार आते हैं, अलग-अलग विचार के लोग भी होते हैं, अलग-अलग पार्टियाँ भी होती हैं, तो उस वक्त सामने कहना बड़ा मुश्किल होता है, किसी पार्टी का सदस्य बहुत भी अच्छी बात करता है, लेकिन सुनने वाला अगर किसी और विचार का होता है, तब बड़ी मुश्किल होती है, चुनने में, लेकिन ये कमाल का चुनाव शरद पवार जी ने किया, इसलिए नहीं कि मुझे चुना गया, मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आपका अनुभव और आपका काम और सभी लोगों को आपने देखा है और सुना है और उसी तरीके से आपने चुना है, इसलिए मैं आपको भी धन्यवाद देता हूँ, दरड़ा साहब को भी धन्यवाद देता हूँ, और ये सिलसिला आगे रखिए, चलाइए। जैसा हमारे हरिवंश साहब ने एक सलाह दी थी, वो भी अगर आप करेंगे… तो बहुत से ऐसे नेता लोग हैं पहले के, कि वो अच्छे भाषणकार थे, सिर्फ भाषण के अलावा डिबेट में एक अच्छे ढंग से पेश आते थे। तो उनकी याद में भी ये काम करना जरूरी है और इसलिए मैं आपको अपनी बात समाप्त करते हुए फिर एक बार ये दोहराकर मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूँ।

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