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नई दिल्ली: भाजपा को केवल ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म से प्यार, हमें कश्मीरी पंडितों से प्यार- मनीष सिसोदिया

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वाली भाजपा ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर तो बहुत चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन जब दिल्ली विधानसभा में कश्मीरी पंडितों के वेलफेयर की बात आई है तो सदन से उठकर भाग गई। भाजपा के इस दोहरे चरित्र का सदन में पर्दाफाश करते हुए उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा केवल ‘कश्मीर फाइल्स’ की बात करती है और हम कश्मीरी पंडितों के दुःख-दर्द व उनके वेलफेयर की। उन्होंने कहा कि केंद्र में बैठी भाजपा सरकार, कश्मीरी पंडितों पर झूठी राजनीति करने के बजाय उनकी बेहतरी के लिए 3 मांगों को पूरा करें। केंद्र सरकर विस्थापितों का पुनर्वास करें, फिल्म से कमाएं 200 करोड़ रुपए कश्मीरी पंडितों के वेलफेयर के लिए खर्च करें और पूरा देश कश्मीरी पंडितों के दुःख-दर्द से वाकिफ हो सके, ‘द कश्मीर फाइल्स’ को इसलिए यू-ट्यूब पर डाले।

डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज भाजपा के ऊपर यह बहुत बड़ा सवाल है कि 32 साल बाद भी कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में विस्थापित होकर क्यों रहना पड़ रहा है? भाजपा हमेशा अपने घोषणा पत्रों में लिखती रही है कि सत्ता में आने के बाद कश्मीरी विस्थापितों की मदद कर उनका पुनर्वास करने का काम करेगी, लेकिन पिछले 8 सालों से केंद्र सरकार में है और कुछ समय से कश्मीर में सरकार में होने के बाद भी भाजपा आज तक यह क्यों नहीं करवा सकी। यह भाजपा की घोर असफलता हैम भाजपा ने 32 सालों से केवल कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति करने का काम किया है और उनकी बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि कश्मीरी पंडित आज अपने ही देश में 32 सालों से विस्थापना का दर्द झेल रहे हैं। आज 32 साल बाद भी कश्मीरी विस्थापितों के मन में केवल एक ही टीस है कि क्या हमारी कश्मीर में जो जमीन है, उसे अपना कह सकते है? क्या कश्मीर के अपने घर में जाकर उसी स्वतंत्रता के साथ रह सकते है, जैसे 1989 से पहले रहते थे। यदि 32 साल बाद भी ऐसा नहीं हो पाया तो केंद्र सरकार की घोर निंदा होनी चाहिए। कश्मीरी पंडितों की यह दशा भाजपा के फेलियर को दिखाती है कि 32 सालों से कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकती आ रही है  8 सालों से केंद्र की सत्ता में बैठी हुई है, फिर भी विस्थापित हुए कश्मीरियों के लिए कुछ नहीं किया और न ही कुछ करने की नीयत है।

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि  कश्मीरी विस्थापित टीचर्स 25 सालों से दिल्ली सरकार के स्कूलों में कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते रहे। इस दौरान दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें रही। एक बार तो अरुण जेटली ने बजट भी पेश किया, लेकिन दोनों सरकारों में किसी की यह हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें परमानेंट कर सकें। कश्मीरी पंडित दफ्तरों के धक्के खाते रहे, लेकिन भाजपा के नेताओं ने उनसे मिलने की जहमत तक नहीं उठाई। सिसोदिया ने एक वाकया बताते हुए कहा कि एक महिला शिक्षक इस बात पर रोने लगी कि उन्होंने अपना घर छोड़ा, जमीन छोड़ी, लेकिन उसके बाद भी अपने ही देश में उनके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है और नौकरी के ऊपर हमेशा खतरा मंडराता रहता है।मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जब कश्मीरी विस्थापित शिक्षकों पर हो रहे इस अन्याय का पता चला तो उन्होंने कहा कि कश्मीरी विस्थापित हमारे भाई-बहन हैं, वो आनन- फानन में आए, इसलिए कोई कागजात नहीं ला पाए। 1989 में उनके साथ जो हुआ, उस पर देश की जिम्मेदारी है कि उनके जख्म को भरे और सीएम अरविंद केजरीवाल जी ने बिना किसी कागजात के तुरंत 233 कश्मीरी विस्थापित शिक्षकों को परमानेंट करने की व्यवस्था करने के आदेश दिए। साथ ही, आज दिल्ली सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के परिवारों के प्रत्येक सदस्यों को प्रतिमाह 3250 रुपये देती है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि एक ओर जहाँ अरविंद केजरीवाल जी ने कश्मीरी पंडित शिक्षकों को नियमित करने का काम किया, वहीँ दूसरी ओर गन्दी राजनीति से प्रेरित भाजपा ने उनकी पेंशन रोक ली। एक रिटायर्ड शिक्षिका पप्पी कॉल को सर्विस डिपार्टमेंट (एलजी के अधीन) द्वारा पेंशन देने से इसलिए मना कर दिया, क्योंकि उनके पास कागजात नहीं थे। यहां भी अरविंद केजरीवाल जी ने संज्ञान लेते हुए कहा कि जिस महिला ने 3 दशक तक देश की सेवा कर हमारे बच्चों को पढ़ाया, उसे पेंशन देने के बजाय उसके दुःख का मजाक न बनाया जाए। वो मुश्किल परिस्थितियों में अपना घर बार छोडकर कश्मीर से आए थे, न कि कागज़ लेकर नौकरी मांगने। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि भाजपा लम्बे समय से कश्मीरी पंडितों के नाम पर झूठी राजनीति करती आई है और पिछले 8 सालों केंद्र में है, लेकिन अब समय है कि कश्मीरी पंडितों को वापस अपने घरों में जाने, उनके पुनर्वास की व्यवस्था करे। 1989 में कश्मीरी पंडितों ने जो दर्द झेला उसे पूरा देश महसूस करें। एक आम हिन्दुस्तानी भी उनके दर्द को समझे, इसलिए द कश्मीर फाइल्स को कमाई का धंधा न बनाकर उसे यू-ट्यूब पर डाला जाए, ताकि देश का हर एक व्यक्ति उस दर्द को देखे व समझे।डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह अच्छी बात है कि कश्मीरी पंडितों के दुःख को दिखाते हुए फिल्म बनाई गई। साथ ही इस फिल्म ने कश्मीरी पंडितों के नाम पर 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई तो, अब समय है कि इस पैसे को उनके वेलफेयर में लगाया जाए, ताकि वर्षों से कश्मीरी पंडितों के जले हुए घर, उजड़े बागानों को ठीक किया जा सके .

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