अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी और स्वस्थ प्रक्रिया से होने वाले चुनावों के लिए निर्धारित एसआईआर की प्रक्रिया के विरुद्ध जिस प्रकार का खतरनाक बयान दिया है, वह प्रकारांतर से सीधे हिंसा भड़काने का संकेत देता है। यह अपने आप में तृणमूल कांग्रेस की नैतिकता और पश्चिम बंगाल सरकार की संवैधानिकता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। यह कैसे संभव है कि कानून-व्यवस्था, जो राज्य का विषय है, उस राज्य की मुख्यमंत्री स्वयं इस प्रकार से चुनावी प्रक्रिया को थ्रेटन करें?भारतीय जनता पार्टी ममता बनर्जी से पूछना चाहती है क्या आप वही ममता बनर्जी नहीं हैं, जिन्होंने घुस पैठियों के मुद्दे पर लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष फाइल फेंक दी थी, केवल इसलिए कि उस पर चर्चा नहीं होने दी जा रही थी?
आज जब निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया के तहत अवांछित वोटरों की पहचान की जा रही है,तो वही ममता उसके खिलाफ खड़ी हैं यह दर्शाता है कि राज नीति में लोग किस प्रकार अपने मूल विचारों से पलट जाते हैं,और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर भी समझौते की राजनीति करते हैं जो देश के लिए अत्यंत घातक है।पूर्व में भी पश्चिम बंगाल की सरकार ने जिस प्रकार से हिंसा को संरक्षण दिया, उस पर न्यायालयों की कठोर टिप्पणियाँ रही हैं। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री स्वयं सर्वोच्च पद से इस प्रकार के बयान दें, तो यह अत्यंत गंभीर और चिंताजनक है संविधान अगर खतरे में है, तो वह इस प्रकार की सोच की वजह से है।और एक पंक्ति में कहूं अगर तृणमूल कांग्रेस सरकार की ऐसी सोच है, तो पश्चिम बंगाल की स्थिति यह है “आगे घोर अंधेरा है, जब पहरेदार लुटेरा है।”
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