अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद: बेटियां अपने पापा के दिल के बहुत करीब होती हैं। अगर बेटी पर किसी प्रकार का संकट आ जाए तो पिता बड़ी से बड़ी चुनौती से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है। हाल ही में मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में एक ऐसा मामला आया जहाँ भूटान देश की मात्र 18 वर्षीय सोनम (बदला हुआ नाम) ने अपने बीमार पिता को बचाने के लिए लिवर दान कर साबित कर दिया है कि जरूरत पड़ने पर बेटियां भी अपने पिता के लिए जिंदगी तक न्योछावर कर सकती हैं।
प्रोग्राम क्लिनिकल डायरेक्टर एवं एचओडी-लिवर ट्रांसप्लांट एवं एचपीबी,डॉ. पुनीत सिंगला ने बताया कि हमारे पास भूटान देश से लिवर फेलियर की समस्या के साथ रमेश (बदला हुआ नाम) नाम का मरीज आया। लिवर फेलियर के कारण मरीज को पीलिया, पेट में पानी, पैरों में सूजन, कमजोरी और मांसपेशियां कम होना शुरू हो गया था। इस कारण मरीज सामान्य जिंदगी व्यतीत नहीं कर पा रहा था। परेशान होकर मरीज के परिजन ने हमसे लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में सलाह ली। ठीक से काउंसलिंग के बाद, परिजन मरीज का ट्रांसप्लांट कराने के लिए तैयार हो गए। डोनर न मिलने पर पिता की जान बचाने के लिए 18 वर्षीय बेटी लिवर दान करने के लिए आगे आई। ट्रांसप्लांट से जुड़ी सभी मेडिकल एवं लीगल औपचारिकताएं पूरी की गई। फिर बेटी के लिवर का एक छोटा सा हिस्सा लेकर पिता का लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। ट्रांसप्लांट सफल रहा। डोनर को पहले ही डिस्चार्ज कर दिया। पूरी तरह से स्वस्थ होने पर फिर मरीज को भी जल्दी डिस्चार्ज कर दिया गया। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज सामान्य जीवन जी रहा है। ठीक होने पर मरीज को पता चला कि उनकी बेटी ने लिवर देकर उनकी जान बचाई है तो मरीज की आँखों में आंसू आ गए थे। मरीज ने बेटी पर गर्व करने के साथ मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स एवं लिवर ट्रांसप्लांट टीम का तहे दिल से धन्यवाद किया।डॉ. पुनीत सिंगला ने कहा कि लिवर ट्रांसप्लांट करने में लगभग 12-13 घंटे का समय लगा। लिवर ट्रांसप्लांट के बाद मरीज का पीलिया ठीक हो गया, पैरों की सूजन ठीक हो गई और पेट का पानी खत्म हो गया। मरीज ने चलना-फिरना शुरू कर दिया। ठीक से खाना-पीना शुरू कर दिया। लिवर की पुरानी बीमारी से ग्रस्त मरीजों के लिए लिवर ट्रांसप्लांट न केवल एक बेहतरीन इलाज का ऑप्शन है बल्कि उनके लिए वरदान भी है। ऐसे मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट समय रहते करा लेना चाहिए। आजकल लिवर की बीमारियाँ बहुत आम होती जा रही हैं। इनमें सबसे आम कारण हैं- हेपेटाइटिस बी और सी जैसे वायरस जो क्रोनिक लिवर डिजीज कर सकते हैं। लेकिन अच्छे टीकाकरण प्रोग्राम की मदद से हेपेटाइटिस बी कम होता जा रहा है। एडवांस्ड इलाज की मदद से हेपेटाइटिस सी कंट्रोल होता जा रहा है जिसमें एंड स्टेज लिवर फेलियर में जाने के चान्सेस कम होते जा रहे हैं। लेकिन इसके साथ साथ हमारे पास मोटापा और शराब ऐसे कारण हैं जो लिवर लिवर को बढ़ाते जा रहे हैं। आज फैटी लिवर की समस्या बहुत ही आम है। कुछ ऐसे मरीज भी जिनका बीएमआई नार्मल है, इसके बावजूद उन्हें फैटी लिवर है। ऐसे लोग जिन्हें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से फैटी लिवर का पता चला है, उन्हें लिवर के डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और लिवर टेस्ट कराने चाहिए।
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