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कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने आज पत्रकारों को संबोधित करते हुए क्या कहा, सुने इस वीडियो में

अजीत सिन्हा / नई दिल्ली
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी का स्वागत है। हम सभी अपने आपमें बहुत ही गौरवमयी महसूस कर रहे हैं कि हम आजादी के 75वें साल में हम सब साक्षी बन रहे हैं। आजादी की वो लड़ाई अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में लड़ी गई, तो यही कांग्रेस पार्टी की विचार धारा थी, जिन्होंने अंग्रेजों की लाठी-गोली का सामना किया। उस वक्त ना किसी को सांसद बनना था, ना विधायक बनना था, ना किसी को कुछ पद पाना था और इस देश की आजादी के लिए हर देशवासी भाषा, प्रांत, जाति, मजहब सब भूलकर एक होकर लड़े और ये कहा जाता था कि वो सल्तनत जिसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता है, उस सल्तनत के खिलाफ देशवासी हमारे स्वतंत्रता सेनानी, हमारे पूर्वज लड़े और देश आजाद हुआ।

आज उसके 75 साल पूरे हो रहे हैं, इस मौके पर कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी ने कुछ ऐसे कार्यक्रम कि हम हमारे गौरवशाली इतिहास को याद करें, जनता के बीच जाएं। राजनीति तो चलती रहती है, पर ये जो एक इतिहास है, उसके बात हम रखें और उसी के सिलसिले में 6 अप्रैल को महात्मा गांधी जी का साबरमती के तट पर अहमदाबाद में जो आश्रम आया है, वहाँ से हमारे सेवादल के साथियो ने, हमारे सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में लालजी देसाई भाई के नेतृत्व में पदयात्रा शुरु की। 4 राज्यों में गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। जब पदयात्रा तय हुई थी, तो गांधी आश्रम से निकल कर राजघाट पहुंचे, 1251 किलोमीटर की यात्रा तय हुई थी, लेकिन लोगों का प्यार था। कई लोग गांव के अंदर भी ले जाना चाहते थे उस झंडे को, जिसका सबको नाज, फक्र और गौरव है। इसलिए जो तय हुई थी यात्रा, उससे ज्यादा किलोमीटर यात्रा चली है।

मैं उन सभी साथियो का धन्यवाद करना चाहता हूं। 75 हमारे साथी हर वक्त आगे पूरे सम्मान के साथ झंडे को उठाते हुए पैदल चलते रहे। उन 75 साथियों के साथ-साथ उसी ड्रैस में सजे हुए कहीं 500 से भी ज्यादा साथी और जुड़े। कई गांवों, कई शहर ऐसे आए कि जहाँ आम लोग भी साथ जुड़े, कांग्रेस के कार्यकर्ता भी जुड़े और जन समर्थन, प्यार और आशीर्वाद लोगों का मिला और दो-दो हजार, तीन-तीन हजार लोग साथ चले, कहीं हजारों महिलाएं साथ चली। ऐसी ये यात्रा चलती रही और दिल्ली में कल सुबह 8 बजे राजघाट पर इस यात्रा का समापन समारोह होगा। उसकी विस्तृत बातें हमारे दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष भाई अनिल चौधरी जी और सेवादल के हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष भाई लालजी देसाई जी करेंगे।

मेरी आप सबसे गुजारिश है आपके पास, क्योंकि माहौल ऐसा चल रहा है, सवालों की बहुत लंबी लिस्ट होगी और हमने आजादी के 75 वर्ष के इस मामले में इसको थोड़ा राजनीति से ऊपर रखा है। देशहित में हमने जो कांग्रेस विचारधारा आजादी के लिए जब लड़ी उस वक्त भी हमारा ध्येय था सिर्फ राष्ट्रहित। ये यात्रा भी हमने देश की आजादी के गौरवपूर्ण इतिहास के लिए ही चलाई है। तो उसकी मर्यादा को देखते हुए उसके बाद में भाई अनिल चौधरी जी आपके कुछ सवाल हैं, उनके जवाब देंगे। कुछ होगा तो हमारे कॉर्डिनेटर प्रणव झा जी हैं, वो भी आपके सवालों के जवाब प्रेस वार्ता के बाद अलग से करेंगे, पर इस प्रेस वार्ता में आपके सवाल इसी पर सीमित रखिए। ये मेरा अनुरोध है।

मैं लालजी भाई देसाई जी से विनती करता हूं कि वो अपनी बात रखें।

लालजी देसाई ने कहा कि धन्यवाद, वंदे मातरम्, जय हिन्द साथियों। 6 अप्रैल को गुजरात महात्मा गांधी जी की कर्मभूमि से शुरु हुई ये यात्रा लगातार चलते हुए आज दिल्ली की गलियों में घूम रही है। कल हम लोग सुबह में 8 बजे राजघाट पहुंचेंगे और वहाँ पर कार्यक्रम 10 बजे संपन्न होने का लक्ष्य है। पूरे रास्ते में हम गांव-गांव से जल और मिट्टी इकट्ठा करके ये संदेश दे रहे हैं कि भारत की मिट्टी और जल जो है वो जुड़ा हुआ है। इसको कोई बांटने की कोशिश करे, वो झंडे के रंगों में या जाति, धर्म, प्रदेश और भाषा के नाम पर तो ये कतई संभव नहीं है, इसलिए हमारे कई साथियो ने बीच में नारे भी लगाए थे कि हम पहले लड़े थे गोरों से, अब लड़ेंगे इन चोरों से। जब चोर की बात करते हैं, तो ये वैचारिक सोच की चोरी की बात है। वैचारिक सोच की बात ये कि हम गांव में हर जगह पर जब गए तो एक बात हमारे साथी भी कहते थे कि जब भारत की आजादी की जंग लड़ी जा रही थी, तो भारत माता की आठों संतान एक थी, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन और पारसी भाई। हर कोई एक होकर लड़ा था। अब उनको धर्म के नाम पर या जाति के नाम पर बांट कर वो जहर और नफरत जो फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, उसको मिटाने के लिए आजादी के गौरव की गाथा लेकर हम लोग निकले हैं। कई साथियो के पैरों में छाले पड़े, सोशल में बहुत फोटो वायरल हुए हैं। हर किसी ने तय किया था कि छाले पड़े, कुछ भी हों, पर हम चलते रहेंगे और वो जज्बा था और ये मुझे लगता है कि ये पहली ऐसी यात्रा है। इससे पहले 2005 में एक यात्रा थी, गांधी आश्रम से दांड़ी, जो तिरंगे झंडे को प्रोटोकॉल से लेकर पैदल निकली थी। उससे ज्यादा कोई किलोमीटर चलते हुए प्रोटोकॉल से नहीं निकला है, ये 1251 किलोमीटर तक कहीं झंडे के आगे किसी को नहीं होने दिया है, झंडे को किसी को पीठ नहीं दिखाने दिया है। तो इस भारत के राष्ट्र ध्वज का जो सम्मान है, वो कैसे हो और इसलिए हमारे साथी भी कहते हैं कि मेरे देश का झंडा तिरंगा अब नहीं चलेगा दो रंगा। कोई एक रंगा लेकर निकलता है, कोई दो रंगा लेकर निकलता है और इस देश में वैमनस्य पैदा करता है। हम सब ये कहते हुए निकले कि हमारा देश का जो झंडा है, इस तिरंगे झंडे के नीचे पूरा देश जो है, वो सलामत है।हमारे साथियो का जो अनुभव रहा, जब हम राष्ट्र ध्वज लेकर गांधी आश्रम से निकले थे, तो शुरुआत में तो नहीं पता था कि कितने लोग जुड़ेंगे, क्या होगा, पर धीरे-धीरे जब आगे बढ़े, हमने कई जगह पर देखें कि परिवार कार में निकला है तो पूरा परिवार रुक जाता है और पूरे झंडे को देखकर सैल्यूट करके वो वहाँ पर परिवार खड़ा रहता है। हमने कई बुजुर्गों को देखा, उन्हें प्रोटोकॉल से सैल्यूट करना नहीं आता था, तो वो पूरे झंडे को आगे-आगे नमन करते थे। तो इस पूरे झंडे की जो ताकत है, वो हमने गांव में जब गए अलग-अलग, कोई पढ़ा-लिखा था, नहीं था,पर हर किसी के पास हमने उसको देखा है। हमने ये भी देखा कि जब हमारे साथी गांव में जा रहे थे, एक सबसे बड़ा इस यात्रा के जरिए कि हमारे नेता, कार्यकर्ता और जनता के बीच में मिलन के कार्यक्रम के रुप में रहा। एक तरीके से ये सीधे कनेक्ट होने का गांव-गांव में, 45 डिग्री टेंपरेचर में भी डेढ़ बजे धूप में भी लगातार चलते रहे हैं। कभी रात को 12 बजे रात को भी यात्रा पहुंची तो वहाँ पर भी। तो ये यात्रा एक तपस्या के रुप में, यज्ञ रुप में देखा, इसको हमने पॉलिटिकल यात्रा के रुप में नहीं देखा, हमने इसको देशभक्ति के रुप में देखा और इसलिए मेरे कार्यकर्ताओं का वो जज्बा और गांव-गांव का जो समर्थन है, वो ज्यादा हमें मिला। हमने ये देश का झंडा, जहाँ भी गए, हर जगह पर देखा कि हर कोई वो झंडा पकड़ना चाहता है और वो जैसे ही झंडा पकड़ता है, आप लोगों को मैं निमंत्रण करता हूं, कल सुबह जब 6 बजे अंबेडकर भवन से निकलेंगे, आप भी आना। उस झंडे को पकड़ते ही हर कोई व्यक्ति, वो चाहे कोई भी हो,किसी भी उम्र का हो, कभी 8 साल के बच्चे ने भी पकड़ा है और हमारे 84 साल का बुजुर्ग भी 30 दिन लगातार चला है, हर किसी में वो जज्बा आता है। तो हम इस देश के झंडे के बात को जोड़ते हुए इस बात को भी लेकर निकले कि आज देश में फिल्म में नौटंकी करने वाले लोग ये कहते हैं कि देश की आजादी भीख में मिली है। तब हम सवाल उठाते हैं और गांव में जाकर पूछते हैं कि जलियांवाला बाग हो या मानगढ़ का हत्याकांड हो, जहाँ 1200 आदिवासियों को मारा गया था अंग्रेजों द्वारा या चन्द्रशेखर आजाद हो, या हमारे मंगल पांडे, खुदीराम बोस से लेकर, सुखदेव, भगत सिंह और सेवा दल के प्रशिक्षित राज्यगुरु हो, तो ये सभी उनकी कुर्बानी क्या भीख थी? महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार पटेल से लेकर जिन्होंने दशकों तक जेल में निकाला, वो सब क्या भीख थी? तो कई लोगों की कुर्बानी से अब्दुल कलाम से लेकर कई लोगों ने अपने दशक दिए, तब ये देश आजाद हुआ और हम सब चर्चा ये करें कि आजादी के मायने क्या होता है। आजादी का मायना कि हम क्या पहनेंगे, क्या खाएंगे, क्या भाषा बोलेंगे, किस धर्म को हम लोग अपनाएंगे, हम किस प्रकार की भाषा को बोलेंगे, हमारा सामाजिक ढांचा कैसे बना रहेगा, वो सौहार्द कैसे बना रहेगा, वो कोई सरकार या व्यक्ति तय नहीं कर सकता है। ये भारत की संस्कृति है और आजादी का मतलब होता है कि अब व्यक्ति तय करेगा कि हम क्या खाएंगे, क्या गाएंगे, क्या हम लोग बोलेंगे।तो ये पूरी बात को लेकर जनता के बीच में जा रहे हैं और साथ-साथ में ये भी कहते हैं कि किसी-किसी लोगों को आजादी भीख में इसलिए भी लगती है क्योंकि आजादी की जो विरासत है, वो दो अलग-अलग पहलू पर हैं। एक एक्सट्रीम है। हम लोगों के बीच में जो सवाल खड़ा हुआ कि 14 अगस्त को पाकिस्तान जब अपनी आजादी का दिन मनाता है, तो उनके पास देशभक्ति के लिए नाम देने के लिए, शहीद होने वाला एक नाम नहीं है उनके पास, क्योंकि जिन मुसलमानों ने लड़ाई थी, उन्होंने भारत में रुकना पसंद किया था और उन्होंने कहा था कि हमने तो भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी थी, हम उस आजादी के लिए नहीं। उसी तरीके से संघीय मानसिकता के साथ जो आज के शासक बैठे हुए हैं, उनके पास भी एक व्यक्ति नहीं है कि वो कह सकें कि हमारे देश की आजादी की जंग में ये व्यक्ति कुर्बान हुए थे और इसलिए ये शायद 75 वें साल में वो जब इस बात को तय नहीं कर पा रहे थे कि आजादी के गौरव की गाथा को लेकर कैसे निकलें और इसलिए मान्यवर सोनिया जी और राहुल जी ने सोचा कि हमें करना चाहिए और इसलिए हम कांग्रेस के साथी के रुप में निकले।एक और नारा जो हम सबको ताकत देता है, वो ये है, हम कहते हैं, वो डंडे से तोड़ेंगे, तो हम झंडे से जोड़ेंगे। डंडा तोड़ता है, वो चाहे गुंडे का हो या किसी और का है झंडा जोड़ता है। तो यो झंडे के जरिए हम लोग पूरे को जोड़ने का और हम लोग कहते हैं कि नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो, बहुत एनर्जी मिल रही है। किसी ने पूछा कि इतना चलने के बाद थकान होती है। इस भारत की धरती को चूमते हुए जब आगे निकलते हैं तो और एनर्जी मिलती है।

तो मैं आप सबको निमंत्रण करता हूं कि आप लोग भी कल आइएगा।

अनिल चौधरी ने कहा कि बड़े विस्तार से, मुझे लगता है कि शक्ति सिंह जी ने और लालजी भाई ने यात्रा के बारे में विस्तार से आपसे बातचीत की और बताया है। मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूँ कि जिस सोच के साथ ये यात्रा शुरु की गई, ये सोच सोनिया जी और कांग्रेस नेतृत्व के द्वारा की 75 वर्ष हमें आजादी के हो गए हैं, ये जो लंबा सफर 75 साल का रहा है, वहाँ देश कहाँ पहुँचा है और 75 वर्ष की इस यात्रा में, इस देश ने क्या पाया और क्या खोया, जो आज के परिवेश में, खासतौर से लालजी भाई ने बड़े विस्तार से बात की है उस पर मैं चर्चा नहीं करूँगा, तो इसके लिए यदि कांग्रेस पार्टी ने ये कदम उठाया है कि हमें आज आवश्यक है अपने 75 साल के इस गौरव को हम धूमधाम से मनाएं, इसलिए जी समिति का गठन हुआ, मुकुल जी उस समिति के कन्वीनर रहे और उसके तहत पूरे देश में लगातार इस तरह के कार्यक्रम आयोजित होते रहे। अपनी इन 75 वर्ष के गौरवमय इतिहास को अलग-अलग तरीके से कांग्रेस पार्टी सेलिब्रेट कर रही है। अपने कार्यकर्ता हों, या देश के लोग हों, या प्रदेश के लोग हों, उनके बीच में संगोष्ठियाँ हों, इस तरह के आयोजन करके 75 वर्ष को हम मना रहे हैं, लेकिन जो आजादी की गौरव यात्रा का जो उद्देश्य, खासतौर से लालजी ने बताया है, इसका मकसद साफ है, साथियों कि भारत जोड़ने का जो संकल्प कांग्रेस पार्टी ने लिया है और जो उदयपुर नव संकल्प में जो तय हुआ, उसके साथ लालजी भाई अपने साथियों के साथ लगभग 75 साथी निरंतर पुरी यात्रा में चले। साबरमीत के आश्रम से, महात्मा गांधी जी के उस पूजनीय स्थल से वहां से अग्रसर होकर आगे बढ़ते गए और दिल्ली की तरफ कूच करते रहे। अपना अनुभव उन्होंने शेयर किया, लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि जब ये दिल्ली यात्रा का कार्यक्रम, दिल्ली बॉर्डर पर बना तो 29-30-31 तीन दिन का हमें ये सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उस दिल्ली में हम इस यात्रा को लेकर जाएं, इन तीन दिनों में संभव नहीं था कि पूरी दिल्ली में हम कवर कर पाएं, लेकिन हमने ये तय किया कि कुछ ग्रामीण क्षेत्र, खासतौर से जहाँ का इतिहास रहा है, जैसे छतरपुर में, आपको याद है, फतेहपुर एक गांव है, जिस गांव का एक इतिहास रहा है, सन् 1857 की उस क्रांति का भी, बीच में कुतुबमीनार जैसी एक ऐतिहासिक इमारत है, आज हालांकि इस माहौल में जिस तरह से राजनीति चल रही है, वो एक अलग बात है, लेकिन संदेश साफ है, साथियों, दिल्ली के उन क्षेत्रों को हमने टच करने की कोशिश की, लोगों को अवगत कराने की कोशिश की कि 75 वर्ष आजादी के यदि आज कांग्रेस मना रही है, तो ये दायित्व सरकारों का भी बनता है, लेकिन जैसे लालजी भाई ने कहा, अफसोस इस बात का है कि जिन लोगों का आजादी में कोई कंट्रीब्यूशन ही न रहो हो, इस देश में, इस मुल्क में, तरक्की में कंट्रीब्यूशन न रहा हो तो किस तरह से इस पर्व को मनाते। इसलिए कांग्रेस ने दायित्व उठाया।दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर मैं कहना चाहता हूँ कि पहले दिन हमने लगभग 20 किलोमीटर यात्रा तय की और हम छतरपुर एरिया में गए, वहाँ के उस गांव को हमने सामने रखा। अगले दिन कुछ व्यवधान आया, सरकारी तंत्रा का जिस तरह से उपयोग झंडे यात्रा को रोकने का किया गया, ये दुर्भाग्यपूर्ण है, मैं कहना चाहता हूँ। भाजपा अपने 8 साल के सेलिब्रेशन तो मना सकती है, लेकिन कांग्रेस 75 वर्ष के इस देश का जो उन्नति का जो पर्व है, उसको न मना पाए, उसमें व्यवधान डाला जाए, ये बड़ा ही एक चिंता का विषय है, जो शायद इस सरकार को नहीं करना चाहिए था।बहरहाल उससे आगे आज दूसरा दिन और आज आखिरी दिन है, ये यात्रा वाल्मीकि मंदिर, जहाँ महात्मा गांधी जी ने खुद काफी दिन तक इस स्थान पर अपने जीवन के कुछ पल बिताए, अपने जीवन का कुछ समय इस दिल्ली में भी व्यतीत किया। आज उस प्रांगण में भी हमारे साथी गए। बीच-बीच में युवा हों, कांग्रेस के कार्यकर्ता हों, आम जनमानस हो, वो उसका स्वागत करते हैं। ये यात्रा आज दूसरे पहर के बाद राजेन्द्र नगर करोल बाग होते हुए आज अंबेडकर भवन में विश्राम करेगी, रात्री स्थान वहाँ बिताएगी और सुबह ऐतिहासिक शहर, चांदनी चौक से होते हुए राजघाट पर समापन की तरफ जाएगी, लेकिन मैं अपने इस वक्तव्य को खत्म करने से पहले कहना चाहात हूँ, ये शहर वो शहर रहा है, जिसने आजादी के संघर्ष में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी के बाद ये शहर कैपिटल के तौर पर जाना जाता है। तमाम ऐसी शख्सियतों के यहाँ चरण पड़े हैं, जिनको शायद हम आज भी पूजते हैं। लालजी जी ने और आदरणीय शक्ति जी ने बात कही। आज उन नेताओं को मैं बहुत आवश्यक समझता हूँ, आपके समक्ष रखना, जिनका यहाँ योगदान रहा है। खासतौर से मेरी उन महान नेत्रियों का जिसमें अरुणा साफिलि जी हों, वेद कुमारी ब्रजरानी, मेमोबाई आदि ऐसी प्रमुख महिलाएं थी, जिन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में अपना योगदान दिया, बल्कि यहाँ के दिल्ली के कॉलेजों में पढ़ी-लिखीं। तो आज उनको, कुछ मेमोरीज को भी याद करने की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि इनका उद्देश्य जो आज यात्रा मेंहम शामिल कर रहे हैं, वैसे ही तमाम वो राष्ट्रभक्त देश भक्त, राजनेता, चाहे नेहरू जी की बात करूं, चाहे मैं स्वामी श्रद्धानंद जी की बात करूँ, मौलाना आजाद साहब की बात करूं, या एक समय ऐसा भी था, जब हिंदू स्थलों से मुसलमान मेरे भाई नेता लोग, अपना वक्तव्य दिया करते थे, या मुसलमानो के उन पवित्र स्थानों से हमारे हिंदू नेता लोग वक्तव्य दिया करते थे। इतिहास गवाह है, जामा मस्जिद से लेकर इसलिए स्वामी श्रद्धानंद जी का जिक्र किया, लेकिन जब आज के परिवेश मे हम बात करते हैं, तो नफरत के जो बीजजो बोए जा रहे हैं, जो पॉलिटिक्स च्ल रही है, कहीं न कहीं इस आजादी की जो गौरव यात्रा है, सका मकसज यही है कि आज जोड़ने की आवश्यकता है। हमें उदाहरण पेश करने की आवश्यकता है कि जो इस शहर ने इस देश के अंदर दिया है, जो अपना उनका योगदान थो, शहर के इन महान बुद्धीजीवी लोगों का, इसमें मैंने कुछ नाम आपके समक्ष रखे हैं। एक समय ऐसा भी था, शहीद भगत सिंह, आज हम जिनको कहा जात है, हमारे शहीद-ए-आजम, जिनके चरण इस दिल्ली में पड़े उस असेंबली बम आर पर्च फेंकने से पहले जिन्होंने यहाँ जीवन व्यतीत किया तो ऐसी कुछ पुरानी यादों को भी हमने इस पम्फ्लेट के द्वारा एक पर्चे के द्वारा सम्मिलत करके उन्हें फिर से अपनी दिल्ली की जो आवाम है, जो जनता है, उनके समक्ष लाने की कोशिश की है औऱ लालजी भाई के जो कार्यकर्ता सेवादल के हमारे जो वीर कार्यकर्ता हैं, वो इस संदेश के साथ गुजरात से बढ़े और धीरे-धीरे अब राजघाट की तरफ जाकर इस संदेश के साथ की नव संकल्प कांग्रेस का जो अधिवेशन हुआ, जो आजादी पर्व हम मना रहे हैं, तो आजादी गौरव यात्रा का वहां समापन होगा। इस सोच के साथ, इस उम्मीद के साथ कि फिर से एक देश को जोड़ा जाए, बहुत-बहुत धन्यवाद। कल आप लोग आमंत्रित हैं, आपका स्वागत है कि दिल्ली के और भी लोग आएंगे, और महात्मा गांधी जी की जन्मस्थली से शुरु करके महात्मा गांधी जी की समाधि पर जाकर एक ही संदेश के साथ यात्रा का समापन होगा, लालजी भाई के नेतृत्व में कि देश को आज एक साथ, एकजुट खड़े होने की आवश्यकता है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में लालजी देसाई ने कहा कि तकरीबन 16 लोगों हैं, जिन्होंने एक मीटर भी कहीं बस के अंदर पैर नहीं रखा है या गाड़ी में नहीं रखा है। हमने सबको ये किया था कि आप 10-10 दिन के रोटेशन पर लोगों को कहा था, तो जिसको जाना है, जा सकता है। हमने कहा कि ये कोई सजा की पदयात्रा नहीं है, ये आजादी के गौरव की पदयात्रा है, ये आनंद की पदयात्रा है। तो हम खुशियां मनाने के लिए निकले हैं। तो सबको फ्री हैंड दिया था कि जिसको जब जाना है। कई यात्री हैं घर जाकर वापस जब पहुंचे, फिर बोले कि मन नहीं लगता है यात्रा छोड़ने का, तो वापस भी आए हैं, तो इस तरह से लगातार चली है। पर 16 यात्री हैं और मैंने कहा कि 8 साल का बच्चा भी हमारे साथ 10 दिन चला था और 84 साल के जो बुजुर्ग हैं, वो भी हमारे साथ 30 दिन चले हैं और 69 साल का सेवादल का महासचिव होस्पिटलाइज होने के बाद रात को बीपी हाई होने के बाद सुबह में झंडा लेकर फिर निकला है। तो ये अलग प्रकार की अनुभूति है और लगातार लोग चले हैं। मैं मानता हूं कि करीबन 100 से अधिक पदयात्री ऐसे हैं जो 30 दिन से ज्यादा लगातार चले हैं और सबका हमनें जैसे कहीं भी इतिहास लिखा जाता है, डेटा मेंटेन कर रहे हैं ताकि पता चले कि आगे की यात्राओं में कैसे हो सकती है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में लालजी देसाई ने कहा कि मुझे लगता है देखिए भूमिका अलग थी, राज्य का हम लोगों ने जब यात्रा डिजाइन की थी, तभी था कि किसी भी राज्य की और सबसे बड़ी खुशी की बात है कि गुजरात में जब यात्रा शुरु हुई तो पूरी गुजरात कांग्रेस का नेतृत्व प्रभारी समेत सब लोग गांधी आश्रम में थे। जब गुजरात से राजस्थान को यात्रा हैंड ऑवर होती है, तो गुजरात के प्रदेश के अध्यक्ष और गुजरात के प्रभारी राजस्थान के पीसीसी अध्यक्ष को और राजस्थान के प्रभारी को झंडा देते हैं और ये पूरा प्रोटोकॉल कि सेवादल का अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष को देगा, प्रदेश अध्यक्ष प्रभारी को देगा और प्रभारी, दूसरे प्रभारी को देगा और फिर उस तरह। तो ये पूरी तरह से लीडरशिप हमारे साथ रही है। सबसे खुशी की बात मैं ये कहूंगा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री 4 बार यात्रा में खुद शामिल हुए हैं। तो हर कोई कैबिनेट, पूरी राजस्थान की कैबिनेट मिनिस्टर, गुजरात का हर लीडरशिप, हरियाणा के पूर्व सीएम से लेकर, हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर, कहीं हमें ऐसा महसूस नहीं हुआ है कि हमारे जो लोकल स्टेट के लीडरशिप है, वो इस यात्रा के और पूरी व्यवस्था, ये पहला मौका था कि सेवादल यात्रा में लगातार एक यज्ञ के रुप में चल रहे थे और हमारे जो परिवार के मुखिया हैं, वो हमारी सेवाओं में लगे हुए थे।
एक तरफ आप तिरंगा यात्रा देशभर में निकाल रहे है हैं, दूसरी तरफ आज ईश्वरप्पा जो बीजेपी के नेता है कर्नाटक के उनका कहना है कि राष्ट्रीय ध्वज का रंग भगवा होना चाहिए तिरंगे की जगह पर, क्या कहेंगे, श्री गोहिल ने कहा कि मैं मानता हूँ कि ये इस देश के गौरवपूर्ण इतिहास का अपमान है। संविधान सभा में जो लोग बैठे थे, वो वो लोग थे, जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए जान की बाजी लगाकर लड़ाई लड़ी थी, वो लोग संविधान सभा में बैठे थे। ये किसी एक इंसान का निर्णय़ नहीं था। उस संविधान सभा में बैठे लोगों ने तिरंगा तय किया हुआ था। इस देश के तिरंग के लिए कुछ विचारधारा अपनी उस हैडक्वार्टर या अपने मुख्यालय में भी तिरंगे का सम्मान नहीं करती थी। जब इसवासियों ने, ये ठानकर बैठे हैं कि देशवासी तिरंगे का पूरा सम्मान करते हैं और पावर की जरुरत पड़ी तब तिरंगा उन्होंने स्वीकारा। आज भी दिल से जो नहीं मानते हैं, ये देश एक ओर अखंडित रहे। इस देश की एकता के लिए हमारे पूर्वजों ने और खासकर के जिन्होंने किसी भी लाभ की नहीं, सिर्फ हानी होनी थी, मौत आए, तो हंसते-हंसते गले लगा लेना था, अंग्रेजों के खिलाफ लड़े और उसके बाद जो हमारे पूर्वज स्वतंत्रता सेनानी से लेकर उस उस समय लड़ने वाले लोगों ने संविधान सभा में यह तय किया कि तिरंगा रहेगा। बाबा साहेब अंबेडकर ने जिस संविधान, कॉन्स्टीट्यूशन कमेटी की अध्यक्षता की और अगर आज कोई कहता है तो मेरा तो प्रधानमंत्री जी से सवाल है- आप क्यों नहीं खुलकर, आपका ट्विटर तो कपालभाती करता है, बहुत सारे मुद्दों पर, तो इस पर आब बोलिए, इसको निष्कासित कीजिए और अगर नहीं करते हो तो फिर ये चुप रहकर मौन में सहमति, कोई गांधी जी को गाली देता है, आप कहते हो माफ नहीं कर सकता हूँ पर आप उसको भाजपा से हटा नहीं सकते हो। कोई कहता है कि महात्मा गांधी जी की हत्या करने वाले का मंदिर बनाऊँगा, आपकी विचारधारा का है, आप उसे कुछ कहते नहीं, निकालते नहीं, करते नहीं, राष्ट्रद्रोह का केस तो यहाँ बनता है, जो तिरंगे का अपमान करता है। करिए, पर वो नहीं करेंगे, क्योंकि कहीं न कहीं दिल में भावना कुछ और है। हम इस देश के हमारे पूर्वज उन हमारे महात्माओं ने संविधान सभा में जो तय किया था, उस तिरंगे की आन-बान और शान के लिए लड़ते रहेंगे। कोई इक्का-दूक्का ऐसा निकलेगा, देश की जनता उसे माफ नहीं करेगी।

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