अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
गुरुग्राम: बुलंद हौसले और ईमानदार कोशिश हो तो सफलता एक ना एक दिन हासिल जरूर होती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कृष्णा यादव ने। कभी सड़क किनारे फुटपाथ पर सब्जी बेच कर घर का गुजारा करने वाली कृष्णा आज गुरुग्राम के बजघेड़ा में अपनी मेहनत और लगन के दम पर चार फैक्ट्री को संभालती है। साथ ही साथ ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने का भी काम कर रही है।43 वाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित किया जा गया है। इस मेले के हरियाणा मंडपम में एक ओर जहाँ हरियाणा की समृद्ध विरासत की झलक देखने को मिल रही है वही हरियाणा के लघु और कुटीर उद्योग व उनसे जुड़े उत्पाद लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे है। मेले में एक स्टॉल श्री कृष्णा पिकल्स के नाम से हरियाणा मंडपम में है। जिनके उत्पादों का घर जैसा स्वाद और इनकी शुद्धता लोगों के बीच काफी पसंद किया जा रहा है।
श्री कृष्णा पिकल्स की मालिक कृष्णा यादव बताती है कि किसी समय फुटपाथ पर सब्जी बेच कर परिवार का गुजारा करने को मजबूर थी। अक्सर सब्जी बच जाती जिस से काफी नुकसान हो जाता था। तब एक तरकीब सूझी और बची हुई सब्जी का अचार बनाना शुरू किया और उसे भी सब्जी के साथ बेचने के लिए रखना शुरू किया। फिर किसी ने बताया कि पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र उजवा नई दिल्ली में अचार बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है तो वहाँ से अचार, मुरब्बे, जूस आदि बनने की ट्रेनिंग ली। शुरू-शुरू में ग्राहक अचार खरीदने में आनाकानी करते थे तो ग्राहक बनाने के लिए अचार के सैंपल फ्री देने शुरू किए। लोगों को अचार पसंद आने लगा। अचार की मांग बढ़ने लगी तो आस पास के दुकानदार भी उनके बनाए अचार को रखने के लिए राजी हो गये। घर के बने अचार का स्वाद सभी को पसंद आ रहा था। अचार की मांग बढ़ने से अब अकेले इतना अचार बनाना मुश्किल होने लगा, तो आस पास की महिलाओं को भी इस काम में शामिल किया।कृष्णा बताती है कि उनके अचार की सबसे बड़ी खूबी उसका घर जैसा स्वाद था जिसे लोग खूब पसंद कर रहे थे। हमारा शुरू से फोकस शुद्धता और हाइजीन पर अधिक रहा। देखते ही देखते हमारे बनाये सामान की मांग इतनी बढ़ गई कि घर छोटा पड़ने लगा। तब गुरुग्राम में एक छोटी फैक्ट्री शुरू की। अचार से शुरू हुई ये कहानी आज 152 तरह के प्रोडक्ट जैसे अचार, मुरब्बे के साथ-साथ जूस, जेली, चटनी और जैम तक जा पहुँची है। मात्र 500 रुपये से अचार के कारोबार की शुरुआत करने वाली कृष्णा आज चार फैक्ट्री की मालकिन है। वह बताती है कि वह पढ़ी लिखी नहीं है लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई हर हाल में जारी रखी। खाली समय में उन्होंने अपने बच्चों से हिसाब किताब करना सीखा। आज फैक्ट्री में प्रोडक्शन का सारा काम कृष्णा ख़ुद संभालती है वही उनके पति ऑफिस का काम और बेटे दुकान, मेले और प्रदर्शनी का काम देखते है।सफलता के इस सफ़र की शुरुआत कृष्णा ने अकेले ही की। समय के साथ महिलाएं जुड़ती गई और कारवां बनता चला गया। आज उनके साथ वर्तमान में 1000 अधिक ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हुई है। जो ना केवल इस व्यवसाय से जुड़ कर इसे अपनी आजीविका का साधन बना चुकी है बल्कि आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूती भी प्रदान कर रही है।समाज में इनके बहुमूल्य योगदान के लिए इन्हें वैल्यू एडिशन (मूल्य संवर्धन) के क्षेत्र में पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री संजीव बाल्यान द्वारा पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है, वही इन्हें एन जी रंगा कृषि सम्मान, पंडित दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय पुरस्कार, नारी शक्ति सम्मान पुरस्कार,महिला किसान चैंपियन अवार्ड, कृषि नवाचार अवार्ड, खेती-किसानी नवाचार अवार्ड जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।समाज के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए कृष्णा ने बीएसएफ के शहीद जवानों की 47 वीरांगनाओं को जहाँ ट्रेनिंग देकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर प्रदान किया है, वहीं शारीरिक रूप से दिव्यांग युवाओं को ट्रेनिंग के माध्यम से प्रशिक्षित कर उनके जीवन में रोशनी लाने का काम किया है। जो काबिले तारीफ है और समाज से प्रति उनकी सोच को दिखाता है। कृष्णा आज ना केवल महिलाओं के लिए बल्कि युवा वर्ग के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
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