अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद:फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल की प्लास्टिक सर्जरी टीम ने एब्डॉमिनल एलिफेंटियासिस के दुर्लभ रोग से पीड़ित 63-वर्षीय महिला रोगी का सफल उपचार किया है। एब्डॉमिनल एलिफेंटियासिस कॉफी दुर्लभ कंडीशन है जिसमें पेट के आसपास त्वचा और वसा की बड़ी-बड़ी और ढीली परतें लटकी रहती है और साथ ही अंबलिकल हर्निया (नाभि के पास असामान्य रूप से त्वचा की मोटी परत का उभरना) भी होता है। प्लास्टिक सर्जरी,फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पीटल के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. मनीष नंदा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने मरीज की सर्जरी कर उनके पेट के आसपास इस लटकी हुई त्वचा और वसा की मोटी परतों को हटाने के लिए काफी जटिल टमी टक प्रोसीजर को अंजाम दिया। सर्जरी से वसा और तवचा के अलावा इनके नीचे से मांसपेशियों को हटाने के बाद मरीज का वज़न भी काफी कम हुआ है। टमी टक सर्जरी के बाद मरीज ने करीब 10 किलोग्राम वज़न कम किया है। यह सर्जरी 4 घंटे चली थी और मरीज को छह दिन बाद स्थिर हालत में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
मरीज की कंडीशन पिछले करीब 10 वर्षों से बेहद नाजुक बनी हुई थी और वह अपने पेट के आसपास से लटकी हुई वसा और त्वचा की इन परतों की वजह से काफी दर्द भी सहन कर रही थीं। इसके अलावा, उनकी मोबिलिटी भी इस कारण प्रभावित हुई थी। मरीज को फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में भर्ती करने के बाद, उनकी पूरी जांच की गई जिससे अंबलिकल हर्निया और पेट की मांसपेशियों के कमजोर होने का पता चला। तब डॉक्टरों की टीम ने हर्नियोप्लास्टी (हर्निया रिपेयर सर्जरी) तथा एब्डोमिनोप्लास्टी, जिसे सामान्य रूप से “टमी टक” कहा जाता है, करने का फैसला किया ताकि मरीज के पेट के इर्द-गिर्द लटकने वाली अतिरिक्त त्वचा और वसा की परतों को हटाकर पेट की सतह पर मांसपेशियों को मजबूत बनाया जा सके।
इस मामले की और जानकारी देते हुए, डॉ मनीष नंदा,ने कहा , “इस आयुवर्ग के लोगों में इतनी अधिक त्वचा और वसा की मोटी परतों का होना काफी कम देखा गया है, सच तो यह है कि दुनियाभर की आबादी में ऐसे केवल 0.005% मामले ही सामने आते हैं। इस मामले में मरीज की उम्र, मोटापे और उनके पेट की मांसपेशियों के कमजोर होने की वजह से इस कंडीशन ने इतना गंभीर रूप ले लिया था। मरीज की उम्र और उनके रोग की नाजुक स्थिति के चलते यह मामला काफी चुनौतियों से भरा था। इस सर्जरी में अत्यधिक खून बहने, त्वचा में इंफेक्शन होने और घाव के अधिक फैलने, कई अंगों के बेकार होने तथा मरीज को वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखने जैसे खतरे भी थे।
लेकिन हमने ऑपरेशन की मानक प्रक्रिया का पालन किया जिसके तहत कार्डियाक जांच, ब्लड शूगर पर नज़र रखना, इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना (क्योंकि मरीज मधुमेह/डायबिटीज़ रोगी थी), सही ढंग से एनेस्थीसिया देना, और सर्जरी करते हुए एडवांस वुंड केयर (घाव की काफी सटीकतापूर्वक देखभाल) जैसे सभी पहलुओं पर काफी ध्यान दिया गया था। इन सभी बातों का ध्यान रखने से सर्जरी सफल रही। यदि यह सर्जरी समय पर नहीं की जाती, तो मरीज की लाइफ क्वालिटी और भी बिगड़ सकती तथा उन्हें हृदय संबंधी बीमारियों के अलावा जोड़ों एवं स्पाइन में डिजेनरेटिव परिवर्तनों का खतरा भी रहता, इनके अलावा उनके बढ़ते वज़न की वजह से त्वचा के इंफेक्शन बढ़ने का जोखिम भी बढ़ सकता था।”योगेंद्र नाथ अवधीया, फैसिलिटी डायरेक्टर ने कहा , “यह एक दुर्लभ कंडीशन थी और मरीज के रोग की गंभीरता के चलते सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण थी। लेकिन डॉ मनीष नंदा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस मामले में पूरी सावधानी बरतते हुए पूरी सटीकता और देखभाल के साथ सर्जरी की।
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