अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली: 2006 में कांग्रेस ने ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन पर अधिकार सुनिश्चित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम (FRA) लागू किया था। लेकिन केंद्र सरकार की निष्क्रियता के चलते, इस कानून के तहत किए गए लाखों वास्तविक दावे बिना किसी समीक्षा के मनमाने ढंग से खारिज कर दिए गए।2019 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सभी लोगों को उनकी जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया जिनके दावे खारिज हो चुके थे, जिससे देशभर में भारी विरोध हुआ। इसके जवाब में कोर्ट ने बेदखली पर रोक लगाई और खारिज दावों की गहन समीक्षा का निर्देश दिया।
अब कल सुप्रीम कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई है—और एक बार फिर, मोदी सरकार लापता है। 2019 में भी वह इस कानून का बचाव नहीं कर सकी थी और आज भी आदिवासी अधिकारों के पक्ष में खड़ी नहीं दिख रही है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि लाखों लंबित और खारिज दावों की समीक्षा या पुन र्विचार के लिए अब तक कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ है। अगर मोदी सरकार सच में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना चाहती है और लाखों परिवारों को बेदखली से बचाना चाहती है, तो उसे तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और अदालत में वन अधिकार अधिनियम का मजबूती से बचाव करना चाहिए।
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