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दिल्ली राष्ट्रीय

साबरमती के तट पर प्रमुख स्वामी महाराज जी के जीवन को प्रदर्शित कर BAPS ने लोगों को सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा दी है

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज अहमदाबाद, गुजरात में BAPS स्वामिनारायण संस्था द्वारा आयोजित “प्रमुख वर्णी अमृत महोत्सव” को संबोधित किया। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल और उप-मुख्यमंत्री हर्ष संघवी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।इस अवसर पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि पूजनीय प्रमुख स्वामी महाराज जी के समग्र जीवन-कार्य, उनकी दिव्य स्मृतियों और उनके अनंत गुणों का पूर्ण वर्णन करना असंभव है। आज BAPS स्वामिनारायण संस्था द्वारा आयोजित “प्रमुख वर्णी अमृत महोत्सव” साबरमती नदी के तट पर, अत्यंत रमणीय वातावरण में संपन्न हो रहा है, जो आनंददायक अनुभव है। उन्होंने कहा कि साबरमती के तट पर प्रमुख स्वामी महाराज जी के जीवन को प्रदर्शित कर BAPS ने लोगों को सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा दी है। लेकिन प्रमुख स्वामी महाराज के पूरे जीवन और योगदान को समझना हो तो हमें यह देखना होगा कि उन्होंने एक ओर अध्यात्म और वैष्णव दर्शन को व्यापक ही नहीं बनाया, बल्कि उसे व्यवहार में उतारने का अभूतपूर्व कार्य किया।  शाह ने कहा कि भक्ति और सेवा को एक-दूसरे से जोड़कर “नर में नारायण” के हमारे शाश्वत वेद-वाक्य को बिना कुछ कहे अपने चरित्र से चरितार्थ कर दिखाया।अमित शाह ने कहा कि पूजनीय प्रमुख स्वामी महाराज जी ने हर जीव के प्रति करुणा की हमारी हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति को पुनर्जीवित किया। साथ ही, उन्होंने न केवल वैष्णव संप्रदाय, बल्कि विभिन्न संप्रदायों के संत-महंतों में परस्पर सत्व और समन्वय की भावना को बिना कोई उपदेश दिए, केवल अपने आचरण से, संचित कर एक समग्र सनातन धर्म के लिए एक बहुत बड़ा कार्य किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद संत-समाज और संन्यास-व्यवस्था के प्रति समाज में जो श्रद्धा धीरे-धीरे कम हो रही थी, उसे पूजनीय प्रमुख स्वामी महाराज और उनके हजारों संतों ने अपने आचरण की पवित्रता से पुनः जीवंत और सशक्त बनाया।केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि वे पूरे विश्वास के साथ कहना चाहते है कि सनातन धर्म ने अपनी हजारों वर्षों की यात्रा में अनेक संकट देखे, लेकिन स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ा संकट यही था कि संत और संन्यासी के प्रति लोगों की श्रद्धा कम हो रही थी। उस श्रद्धा को पुनः स्थापित करने का श्रेय प्रमुख स्वामी महाराज और BAPSसंस्था को जाता है। श्री शाह ने कहा कि प्रमुख स्वामी महाराज ने कभी किसी संप्रदाय के साथ तनिक भी विवाद किए बिना, केवल अपने आचरण से यह दिखा दिया कि एक संन्यासी, संत, साधु का जीवन कितना निर्मल, पवित्र और आदर्श होना चाहिए। उन्होंने सिद्ध कर दिखाया कि सनातन धर्म के शाश्वत ज्ञान को जीवन का आधार बनाकर उस ज्ञान से प्राप्त अमृत को बिना किसी दिखावे के, पूर्ण सहजता से करोड़ों लोगों तक कैसे पहुँचाया जा सकता है। उनका यह जीवन-पर्यंत साधना-कार्य रहा।अमित शाह ने कहा कि वे सामाजिक जीवन और सनातन धर्म के लंबे उतार-चढ़ाव के विद्यार्थी रहे हैं। उनकी समझ से स्वतंत्र भारत में सनातन धर्म और संत-संन्यासी परंपरा के सामने जो सबसे बड़ा संकट आया, वह था लोगों के मन में श्रद्धा का ह्रास। उस संकट का समाधान प्रमुख स्वामी महाराज ने उपदेश के एक भी शब्द का उच्चारण किए बिना, केवल स्वयं और अपने हजारों संतों के आचरण से कर दिखाया। उन्होंने एक ऐसा सुंदर और सर्वस्वीकार्य मार्ग प्रशस्त किया जो आज समूचे सनातन धर्म के संन्यासियों के लिए मार्गदर्शक बन गया है।केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि साबरमती के पावन तट पर संतों के समर्पण का भव्य इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि ऋषि दधीचि के अस्थि दान से लेकर समाज के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यों तक, साबरमती का तट संतों के समर्पण की भूमि रही है। इसी साबरमती तट से महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के शस्त्र से विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्य-शक्ति को पराजित कर देश को आजादी दिलाई थी। उन्होंने कहा कि यहीं अहमदाबाद में, आंबली वाली पोल के मंदिर में, प्रमुख स्वामी महाराज ने सन् 1950 में BAPS के प्रमुख पद की सेवा स्वीकार की थी। 1950 से 2016 तक उनके द्वारा किए गए कार्य आज न केवल स्वामिनारायण संप्रदाय, बल्कि समूचे देश के सभी संप्रदायों के लिए एक आदर्श और प्रेरणा बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि वे संतों को सुन रहा था, तब बार-बार आंबली वाली पोल और शाहपुर क्षेत्र का उल्लेख हुआ। श्री शाह ने कहा कि उन्हे पूरा विश्वास है कि आज के कार्यक्रम के बाद आंबली वाली पोल केवल गुजरात या भारत तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि समूचे विश्व के लिए एक अविस्मरणीय तीर्थस्थल बन जाएगी।अमित शाह ने विश्वास व्यक्त किया कि जिस स्थान पर शास्त्रीजी महाराज ने योगीजी महाराज जैसे पूर्णतः सिद्ध, संन्यास-जीवन को सफलतापूर्वक जी चुके युवा संत को अपना उत्तराधिकारी चुना, जहाँ गुरु ने शिष्य की परीक्षा ली और शिष्य ने गुरु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, जहां बिना किसी अहंकार के, बिना संप्रदाय की सीमाओं के, केवल धर्म और विश्व-कल्याण के लिए समर्पित प्रमुख स्वामी महाराज को प्रमुख पद सौंपा गया, वह स्थान निश्चित रूप से सनातन धर्म के समस्त अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थ बन जाएगा।केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि स्वामीनारायण संप्रदाय के कार्यक्रम शिक्षा को बढ़ावा और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के आयोजन होते हैं। इस कार्यक्रम की संरचना भी उसी भावना से हुई है – यह हमें सिखाएगा कि संत का जीवन कैसा होना चाहिए और एक संत से हमें क्या सीखना चाहिए।

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