अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि वंदे मातरम पर विवाद खड़ा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले राष्ट्रीय नायकों का अपमान किया है, उन्हें देशवासियों से माफी मांगनी चाहिए। राज्यसभा में बोलते हुए खरगे ने बताया कि मोदी सरकार देश के आर्थिक संकट, रुपये के गिरते मूल्य, बेरोजगारी, सामाजिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सदन में वंदे मातरम पर चर्चा करवा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष ने तथ्यों के साथ विस्तार से बताया कि वंदे मातरम ने भारत के सार्वजनिक जीवन में तब प्रवेश किया, जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। कांग्रेस ने ही इसे आजादी के आंदोलन का नारा बनाया और अपने अधिवेशनों में इसके नियमित गायन की परंपरा शुरू की। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब लाखों कांग्रेसी, स्वतंत्रता सेनानी वंदे मातरम का नारा लगाते हुए जेल जा रहे थे, तब उनके (भाजपा) पुरखे अंग्रेजों की नौकरी कर रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी के नेहरू पर मनगढ़ंत आरोपों का जवाब देते हुए खरगे ने भाजपा को अपना इतिहास पढ़ने की सलाह दी और पूछा कि जब उनके पुरखे श्यामा प्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के साथ मिलकर बंगाल में सरकार चला रहे थे, तब उनकी देशभक्ति कहां थी?खरगे ने सदन को याद दिलाया कि हिंदू महासभा-आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया था। इन संगठनों ने मनुस्मृति पर आधारित न होने के कारण संविधान की प्रतियां जला दी थीं और महात्मा गांधी, नेहरू तथा अंबेडकर के पुतले रामलीला मैदान में जलाए थे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आरएसएस-भाजपा ने वंदे मातरम का सच्चा सम्मान कभी नहीं किया। उन्होंने याद दिलाया कि आरएसएस ने 50 वर्षों तक तिरंगे को ठुकराया, भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और हिंसा व नफरत फैलाने के लिए सरदार पटेल ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। उन्होंने तंज किया कि आज वही लोग आजादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस को राष्ट्रभक्ति पर भाषण दे रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस-भाजपा का गीत अलग है, जबकि कांग्रेस का गीत वंदे मातरम है; आरएसएस-भाजपा का झंडा अलग है, कांग्रेस का झंडा तिरंगा है; और आरएसएस-भाजपा की किताब मनुस्मृति है, जबकि कांग्रेस की किताब संविधान है।

खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी के उस आरोप को तथ्यहीन और भ्रामक बताया जिसमें कहा गया था कि 1937 में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने वंदे मातरम गीत के महत्वपूर्ण छंद हटा दिए थे। कांग्रेस अध्यक्ष ने ऐतिहासिक तथ्य पेश करते हुए बताया कि 16 अक्टूबर 1937 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को पत्र लिखकर पूछा था कि कांग्रेस को वंदे मातरम के प्रति क्या रुख अपनाना चाहिए। 25 अक्टूबर को नेहरू जी टैगोर से मिले। इसके अगले दिन, 26 अक्टूबर 1937 को टैगोर ने नेहरू जी को पत्र लिखकर कहा था कि गीत के पहले दो छंद ऐसे हैं जिन पर कोई आपत्ति नहीं उठा सकता और हमें पूरे भारत के लिए राष्ट्रीय गीत के संदर्भ में सोचना चाहिए। खरगे ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति ने 28 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव के इन शब्दों को सर्वसम्मति से पारित किया था। इस निर्णय में महात्मा गांधी, मौलाना आज़ाद, पंडित नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, जेबी कृपलानी सहित सभी प्रमुख नेता शामिल थे। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम पर नया विवाद खड़ा करना इन राष्ट्रीय नायकों का अपमान है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा नेता नेहरू जी की छवि धूमिल करना चाहते हैं, जो नामुमकिन है। खरगे ने सरकार की विदेश नीति को विफल बताते हुए कहा कि नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों पर भारत का प्रभाव घट रहा है, जबकि चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। उन्होंने चीन के अरुणाचल प्रदेश को लेकर दावे पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया और यह भी याद दिलाया कि प्रधानमंत्री ने 2020 में चीन को क्लीन चिट दी थी कि ‘न तो कोई घुसा है, न ही कोई घुस आया है’। उन्होंने 2014 से 2023 के बीच हुई 2287 आतंकवादी घटनाओं का हवाला भी दिया। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने बार-बार दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवाया। अमेरिका ने मनमाना टैरिफ लगाकर भारत के व्यापारियों को बर्बाद कर दिया। अमेरिका के दबाव डालते ही, मोदी सरकार ने रूस से तेल का आयात भी कम कर दिया।खरगे ने अपने भाषण का समापन सरकार से यह अपील करते हुए किया कि वह अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए झूठ फैलाना और राष्ट्रीय नायकों पर कीचड़ उछालना बंद करे। उन्होंने कहा कि जब भी भाजपा के नेता उन महापुरुषों का अपमान करते हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, तब यह और अधिक स्पष्ट हो जाता है कि न तो उनका और न ही उनके वैचारिक पुरखों का भारत की स्वतंत्रता में कोई योगदान था। उन्होंने सरकार को सलाह दी कि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के विवेक पर सवाल उठाकर वह स्वयं को उपहास का पात्र न बनाए।
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