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दिल्ली राजनीतिक राष्ट्रीय वीडियो

पीएम मोदी को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आग्रह करके सम्मान से बुलाना चाहिए, ये बात भी अच्छी नहीं -लाइव वीडियो सुने।


अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि नमस्‍कार! आज इस मंच से एक ऐसा विषय, जो चर्चा में है और राष्‍ट्र के लिए एक विशेष नई महत्‍व रखता है,हमारी संसदीय प्रणाली के लिए और भारत के संवै‍धानिक प्रजातंत्र के लिए,उस विषय पर भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस की जो सोच है और प्रतिक्रिया वो आपके समक्ष और आपके माध्‍यम से देश के सामने रखना चाहते हैं हम। कुछ साल पहले कोविड महामारी के दौरान भारत सरकार का एक बड़ा फैसला था और लॉकडाउन के दौरान जब देश में त्राहि-त्राहि हो रही थी तो एक भव्‍य इमारत भारत की संसद की बनाने का निर्णय किया गया, जो संपन्‍न हो गया। 962 करोड़, तकरीबन 900 करोड़ रुपए के आसपास जो पैसा है उसमें लगा है, 900 करोड़ उसमें रुपया लगा है भारत का, हिडन कॉस्‍ट होती है जिसको तो सरकार ही जानती है।

पहली बात तो औचित्‍य की बात है, आवश्‍यकता की बात है कि क्‍या ये न्‍यायोचित था, ये करना भी, कारण ये है कि जब ये फैसला हुआ, जो भव्‍य इमारत, जिसमें भारत की संसद, उससे पहले संविधान सभा बैठी थी, वो केवल 93 साल पुरानी है, इस बात को गौर से सुनें। दुन‍िया के किसी प्रजातंत्र ने इतिहास में सैकड़ों वर्षों में अपनी संसद को नहीं बदला, संसद की इमारतें उसको जहां जरूरत पड़ी उसको उन्‍होंने उसकी मरम्‍मत की, उसको बढ़ाया, उसको एक्‍सपैंड किया, चाहे इंग्‍लैंड ने किया, चाहे अमेरिका ने किया, चाहे फ्रांस ने किया, चाहे जर्मनी ने किया, पर प्रजातंत्र में जब से संसदीय प्रणाली आई है और जिन देशों में राष्‍ट्रपति प्रणाली भी है, वो अमेरिका और फ्रांस हैं, ऐसा काम नहीं हुआ। क्‍या सरकार जवाब दे सकती है?पहले औचित्‍य की बात करता हूं। आपमें से बहुत लोगों को जानकारी है; यूके की पार्लियामेंट वेस्टमिन्स्टर; उसी जगह पर है, जहां 1016 में बनी थी, एक हजार साल पहले और सन 1834 में आग लगने से ध्‍वस्‍त हुई थी, उसको 1840 में दोबारा बनाया, जो मौजूदा इमारत है, पहले लकड़ी की थी, 1876 में संपन्‍न हुई और तब से, वहीं पर यूके की संसद है, अमेरिका में सिविल वॉर के बाद यूएस कांग्रेस की स्‍थापना कैपिटल हिल में की गई थी, वो 1792 में हुई थी, सैंकड़ों वर्ष हो गए, उन देशों के पास भी पैसा है, तकनीक है, उनकी भी ख्‍वाहिश है, पर वो महत्‍व समझते हैं स्‍थान का।फ्रांस, मुझे नहीं मालूम आपमें से कितने लोगों ने ये सब स्‍थान देखे हैं, वहां की जो संसद है, वो पालिस बर्बन में है, 1728 से, सैकड़ों वर्षों से, बहुत मिसालें मेरे पास और हैं, जर्मनी की है हिटलर के समय में राइकस्‍टैग जो बुंडेस्टैग है, जला दिया गया था, उसके बाद जर्मनी का बंटवारा हुआ था द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद उनकी राजधानी बॉन चली गई थी, बर्लिन भी बंटवारे में गई थी, जब जर्मन रि‍यूनिफिकेशन हुआ उसके बाद दोबारा बॉन से राजधानी वापस बर्लिन में आई और पुरानी जो जगह थी उसी पर दोबारा, उसी स्‍थान पर, उन्‍हीं नक्‍शों पर उन्‍होंने दोबारा बनाई ये इमारत और ये दुनिया के दूसरे जो महाद्वीप हैं, जहां प्रजातंत्र का सम्‍मान होता है वहां भी यही है।अब इमारत बन चुकी है, मैं ये भी यहां पर कहना चाहता हूं कि पहले भी जो बनी थीं, हमारी तो इनकी तुलना में बहुत कम आयु की है, वो बड़ी मजबूत इमारत है, जिसको आप सबने देखा, देश का एक संविधान ही नहीं है वहां बनाया गया, इतिहास जुड़ा है भारत की आजादी का, वो केवल एक इमारत नहीं है, भारत के लिए, भारत की जनता के लिए, अब ये कहना आसान है कि अंग्रेजों के वक्‍त की बनी थी, किसका पैसा था – भारत का, कहां के कारीगर थे – हिन्‍दुस्‍तान के, कहां के मजदूर थे – हिन्‍दुस्‍तान के, ये पत्‍थर जो रेड सैंड स्‍टोन है, कहां का था – हिन्‍दुस्‍तान का, दिल्‍ली से 40 किलोमीटर दूर पर जो अरावली के जो पहाड़ हैं वहां से ये पत्‍थर आया था, तो सरकार को ये बातें, जो उठाई जा रही हैं आज उसका जवाब तो देना पड़ेगा। दूसरा संवैधान‍िक प्रश्‍न है। क्‍या है भारत की संसद – भारत के संविधान के आर्टिकल 79 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेखित है, मैंने कल इस पर टिप्‍पणी की थी, आप में से कुछ ने देखा होगा। संसद, भारत की पार्लियामेंट, वो कौन बनाते हैं – राष्‍ट्रपति, काउंसिल ऑफ स्‍टेट्स राज्‍यसभा और लोकसभा, बस तीन – भारत के महामहिम राष्‍ट्रपति, क्‍योंकि हमारा एक जो संविधान है और जो उसका स्‍वरूप है तो उसमें राज्‍यों का अपना एक अधिकार है तो पहला सदन संसद का राज्‍यसभा है, इसमें राज्‍यों के चुने हुए प्रतिनिधि बैठते हैं, भारतीय गणतंत्र के और दूसरा लोकसभा, केवल भारत के राष्‍ट्रपति को ये अधिकार है कि संसद के सत्र को बुलाया जाए, आर्टिकल 85 में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेखित है और आपको मालूम भी होगा पर मैं कहना चाहता हूं। केवल महामहिम राष्‍ट्रपति भारत के सदन बुलाने का संवैधानिक अधिकार रखते हैं और हर सदस्‍य को, चाहे वो लोकसभा का सदस्‍य है, चाहे राज्‍यसभा का उसको लाल रंग का सम्मन मिलता है, सम्मन उदघोषणा नहीं होती, नोटिफिकेशन नहीं होती, हर मेंबर को, हर सदस्‍य को निजी रूप से राष्‍ट्रपति का सम्मन आता है कि इस तारीख से इस तारीख तक सत्र बुलाया गया और केवल राष्‍ट्रपति को अधिकार है, सत्र खत्‍म होने पर उसको प्रोरोग करने का, किसी और को नहीं, न वो लोकसभा के अध्‍यक्ष करते हैं, वो एडजर्न करते हैं, राज्‍यसभा के चेयरमेन एडजर्न करते हैं, प्रोरोग करना, उसकी नोटिफिकेशन होती है, गजट की, राष्‍ट्रपति की, लोकसभा को भंग करना,चुनाव बुलाना, वो अधिकार केवल राष्‍ट्रपति का है।तो ये संवैधानिक रूप में उचित नहीं है कि राष्‍ट्रपति को इतने बड़े फैसले से बाहर रखा जाए, दुर्भाग्‍य की बात है कि पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद को वो सब अवसर नहीं मिला, जो सम्‍मान मिलना चाह‍िए, जब वो नींव पत्‍थर रखा गया उसमें नहीं बुलाए, हालांकि उनको रखना चाहिए था, अब उद्घाटन हो रहा है, उसमें भी नहीं हैं। एक सैद्धांतिक बात है, हमारा मत है कि संविधान का सम्‍मान नहीं हो रहा और ये न्‍यायोचित नहीं है। प्रधानमंत्री को राष्‍ट्रपति को आग्रह करके सम्‍मान से बुलाना चाहिए, ये बात भी अच्‍छी नहीं, संदेश अच्‍छा नहीं कि पहली बार कोविंद थे। कांग्रेस अध्‍यक्ष ने इस पर अपना कुछ बयान दिया है और अब एक हमारी अनुसूचित जनजाति की, ट्राइबल राष्‍ट्रपति है, उनको भी दूर रखा जाए। ये क्‍या संदेश है इसमें।

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