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नई दिल्ली: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिवों व प्रभारियों की बैठक में पारित किया गया प्रस्ताव

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली: मोदी सरकार ने तीन काले कानूनों के माध्यम से किसान, खेत-मज़दूर, छोटे दुकानदार, मंडी मज़दूर व कर्मचारियों की आजीविका पर एक क्रूर हमला बोला है। यह किसान, खेत और खलिहान के खिलाफ एक घिनौना षडयंत्र है। केंद्रीय भाजपा सरकार तीन काले कानूनों के माध्यम से देश की ‘हरित क्रांति’ को हराने की साजिश कर रही है। देश के अन्नदाता व भाग्यविधाता किसान तथा खेत मजदूर की मेहनत को चंद पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने का षडयंत्र किया जा रहा है।

आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं,पर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईंदो की आवाज को दबाया जा रहा है और सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है। संघीय ढांचे का उल्लंघन कर,संविधान को रौंदकर, संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर बाहुबली मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा व राय मशवरे के पारित कर लिया है। यहां तक कि राज्यसभा में हर संसदीय प्रणाली व प्रजातंत्र को तार-तार कर ये काले कानून पारित किए गए। कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनैतिक दलों ने मतविभाजन की मांग की,जो हमारा संवैधानिक अधिकार है। 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानूनों को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर,सांसदों के साथ धक्का-मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया। संसद में संविधान का गला घोंटा जा रहा है और खेत खलिहान में किसानों-मजदूरों की आजीविका का। जिन व्यक्तियों और ताकतों ने मोदी के निरंकुश राजतंत्र को स्थापित करने के लिए पूरे प्रजातंत्र को ही निलंबित कर रखा है, उनसे और कोई उम्मीद की भी नहीं जा सकती। संसद में ‘वोट डिवीज़न’ के न्याय की आवाज़ को दबाकर मुट्ठी भर पूंजीपतियों को खेती पर कब्जा करने के ‘वॉईस वोट’ का अनैतिक वरदान दिया गया है। इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री,नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार देश को गुमराह करने और बरगलाने में लगी है। प्रधानमंत्री व भाजपा सरकार को किसानों-खेत मजदूरों-मंडी के आढ़तियों व मंडी मजदूरों- मुनीमों व कर्मचारियों – ट्रांसपोर्टरों व कृषि व्यवसाय से जुड़े करोड़ों लोगों के ऐतराजात का सीधा जवाब देना चाहिएः-

1.अगर अनाजमंडी-सब्जीमंडी व्यवस्था यानि APMC पूरी तरह से खत्म हो जाएंगी, तो ‘कृषि उपज खरीद प्रणाली’ भी पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) कैसे मिलेगा, कहां मिलेगा और कौन देगा। क्या FCI साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेत से एमएसपी पर उनकी फसल की खरीद कर सकती है? अगर बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा किसान की फसल को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी कौन देगा? एमएसपी पर फसल न खरीदने की क्या सजा होगी? मोदी जी इनमें से किसी बात का जवाब नहीं दे रहे। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। साल 2006 में APMC ACT यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है। किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफा कमा MSP पर बेच देते हैं। अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान-खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा मुट्ठीभर पूंजीपतियों को।

2.मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य क्या है? कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।

3.मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।

4.अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत ‘मार्केट फीस’ व ‘ग्रामीण विकास फंड’ के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते हैं। उदाहरण के तौर पर पंजाब ने इस गेहँू सीज़न में 127.45 लाख टन गेहूँ खरीदा। पंजाब को 736 करोड़ रु. मार्केट फीस व इतना ही पैसा ग्रामीण विकास फंड में मिला। आढ़तियों को 613 करोड़ रु. कमीशन मिला। इन सबका भुगतान किसान ने नहीं, बल्कि मंडियों से गेहूँ खरीद करने वाली भारत सरकार की एफसीआई आदि सरकारी एजेंसियों तथा प्राईवेट व्यक्तियों ने किया। मंडी व्यवस्था खत्म होते ही आय का यह स्रोत अपने आप खत्म हो जाएगा।

5.कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े और सालाना 80,000 से 1 लाख करोड़ की बचत हो। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा।

6.अध्यादेश के माध्यम से किसान को ‘ठेका प्रथा’ में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। क्या दो से पाँच एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी बड़ी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का कॉन्ट्रैक्ट बनाने, समझने व साईन करने में सक्षम है? साफ तौर से जवाब नहीं में है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अध्यादेश की सबसे बड़ी खामी तो यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी देना अनिवार्य नहीं। जब मंडी व्यवस्था खत्म होगी तो किसान केवल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर निर्भर हो जाएगा और बड़ी कंपनियां किसान के खेत में उसकी फसल की मनमर्जी की कीमत निर्धारित करेंगी। यह नई जमींदारी प्रथा नहीं तो क्या है? यही नहीं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से विवाद के समय गरीब किसान को बड़ी कंपनियों के साथ अदालत व अफसरशाही के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। ऐसे में ताकतवर बड़ी कंपनियां स्वाभाविक तौर से अफसरशाही पर असर इस्तेमाल कर तथा कानूनी पेचीदगियों में किसान को उलझाकर उसकी रोजी रोटी पर आक्रमण करेंगी तथा मुनाफा कमाएंगी।

7.कृषि उत्पाद, खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियों की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को। बस चीजों की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मुट्ठीभर लोगों को फायदा होगा। वो सस्ते भाव खरीदकर, कानूनन जमाखोरी कर महंगे दामों पर चीजों को बेच पाएंगे। उदाहरण के तौर पर ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ की रबी 2020-21 की रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया कि सरकार किसानों से दाल खरीदकर स्टॉक करती है और दाल की फसल आने वाली हो, तो उसे खुले बाजार में बेच देती है। इससे किसानों को बाजार भाव नहीं मिल पाता। 2015 में हुआ ढाई लाख करोड़ का दाल घोटाला इसका जीता जागता सबूत है, जब 45 रु. किलो में दाल का आयात कर 200 रु. किलो तक बेचा गया था। जब स्टॉक की सीमा ही खत्म हो जाएगी, तो जमाखोरों और कालाबाजारों को उपभोक्ता को लूटने की पूरी आजादी होगी।

8.तीनों अध्यादेश ‘संघीय ढांचे’ पर सीधे-सीधे हमला हैं। ‘खेती’ व ‘मंडियां’ संविधान के सातवें शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं। परंतु मोदी सरकार ने प्रांतों से राय करना तक उचित नहीं समझा। खेती का संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है, परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई। उल्टा खेत खलिहान व गांव की तरक्की के लिए लगाई गई मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फंड को एकतरफा तरीके से खत्म कर दिया गया। यह अपने आप में संविधान की परिपाटी के विरुद्ध है। महामारी की आड़ में ‘किसानों की आपदा’ को मुट्ठीभर ‘पूंजीपतियों के अवसर’ में बदलने की मोदी सरकार की साजिश को देश का अन्नदाता किसान व मजदूर कभी नहीं भूलेगा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के किसान व खेत मजदूर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। कांग्रेस के कार्यकर्ता व नेता पूरे देश में इन कृषि विरोधी काले कानूनों का डटकर विरोध करेंगे तथा इस लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाएंगे। श्रीमती सोनिया गांधी व श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में हम इसके लिए वचनबद्ध हैं।

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