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दिल्ली राजनीतिक राष्ट्रीय हाइलाइट्स

असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) का राष्ट्रीय अधिवेशन, जिसमें 24 राज्यों के 530 प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों ने भाग लिया।

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली: आज असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) का राष्ट्रीय अधिवेशन, इंदिरा भवन, कोटला रोड, नई दिल्ली में हुआ जिसमें 24 राज्यों के 530 प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों ने  भाग लिया। इस राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन दिग्विजय सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश,अजय माकन, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, कांग्रेस,  मुकुल वासनिक – महासचिव, कांग्रेस  एवं डॉ. उदित राज, राष्ट्रीय चेयरमैन, केकेसी ने किया। इस विभाग की स्थापना 2017 में राहुल गांधी  ने किया था। 2014 के बाद निजीकरण और ठेकेदारी प्रथा की रफ्तार बहुत तेज कर दी गई, जिसकी वजह से असंगठित कामगारों की आर्थिक स्थिति सबसे ज्यादा खराब हो गई है। वर्ष -2021-22 के आर्थिक सर्वे के अनुसार 43.99 करोड़ कामगार हैं। असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के राष्ट्रीय चेयरमैन, डॉ. उदित राज  ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि असंगठित कामगार के नियोजन में मौसमी और अनिश्चित रोजगार, अलग-अलग कार्यस्थल, नियोक्ता कर्मचारी संबंध का अभाव, खराब कार्य स्थितियों, अनिश्चित और लंबे कार्य के घंटे और कम पारिश्रमिक जैसी समस्याएं आती हैं। उन्हें अपनी अलिखित स्थिति और संगठनात्मक सहायता के अभाव के कारण अत्यधिक सामाजिक असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम है, बल्कि कई बार तो यह जीवन स्तर के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। इसके अलावा, अक्सर कृषि और निर्माण क्षेत्रों में पूरे वर्ष काम न मिलने की वजह से वार्षिक आय और भी कम हो जाती है। इनके हालात को सुधारने के लिए कांग्रेस पार्टी ने ही कई लाभकारी योजनाएं शुरू की जैसे-  भवन और अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), पथ विक्रेता (जीविका सुरक्षा एवं पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, ठेका श्रम ( विनियमन और उत्सादन) अधिनियम, अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम आदि।  लेकिन मोदी सरकार ने इन्हें लगभग निष्प्रभावी बना दिया। केंद्र सरकार ने मौजूदा 29 श्रम कानूनों के स्थान पर 4 कानून लाने का प्रस्ताव रखा है। इससे कामगारों का शोषण और तेज होगा। देश के बड़े उद्योगपति और धनवान होंगें तथा गरीब और गरीब। अधिवेशन में कई  प्रस्ताव पास किए गए, जिसमें से एक यह भी है कि प्रस्तावित नए श्रमिक कानून को किसी भी हालत में नहीं लागू करने दिया जाएगा, इसके लिए दिल्ली सहित सभी प्रदेशों की राजधानियों और फिर जिला स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।

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