अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
फरीदाबाद:राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मिथिला कलाकार मनीषा झा ने सेक्टर- 33 स्थित राष्ट्रीय विद्युत प्रशिक्षण संस्थान (एनपीटीआई) में इंडक्शन ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के सहायक निदेशकों को मधुबनी चित्रकला की बारीकियाँ सिखाईं। इस विशेष पेंटिंग कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिभागियों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कला से परिचित कराना था। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मिथिला कलाकार मनीषा झा द्वारा दी गई यह पेंटिंग वर्कशॉप पारंपरिक विषयों और आधुनिक संवेदनाओं के समावेश से भरपूर प्रतिभागियों के लिए एक नई रचनात्मक अनुभव यात्रा साबित हुई।
कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों ने स्वयं भी चित्रकारी में भाग लिया और पहली बार हाथों में पेंटिंग ब्रश पकडते हुए अपनी कल्पनाओं को पारंपरिक ढंग से कोरे कागज पर उतारा। यह आयोजन केवल रचनात्मक अभ्यास ही नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक संवाद भी था। जहाँ विद्युत क्षेत्र के युवा अधिकारी भारतीय लोककला की आत्मा से जुड़े।एनपीटीआई की महानिदेशक डॉ. तृप्ता ठाकुर ने मिथिला कलाकार मनीषा झा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाएं प्रशासनिक अधिकारियों के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ उनकी संवेदनशीलता को भी समृद्ध करती हैं।
बात दें कि मनीषा झा पिछले 35 वर्षों से मिथिला चित्रकला में सक्रिय हैं, प्रख्यात मिथिला कलाकार मनीषा झा ने भारतीय लोककला को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मूल रूप से बिहार के मधुबनी ज़िले के सतलखा गाँव से ताल्लुक रखने वाली मनीषा एक स्व-शिक्षित कलाकार हैं, जिन्होंने पारंपरिक मिथिला चित्रकला को आधुनिक विचारों और विषयों के साथ एक नया आयाम दिया है। उन्होंने 1998 से अब तक 200 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भाग लिया है। उनकी कलाकृतियाँ अमेरिका, रूस, फ्रांस, मॉरीशस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और वियना के प्रतिष्ठित संग्रहालयों और मेलों में प्रदर्शित हो चुकी हैं। उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार, बिहार सरकार द्वारा प्रवासी बिहारी सम्मान, बिहार कला सम्मान, दिल्ली सरकार द्वारा राज्य पुरस्कार, और जय प्रकाश नारायण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मनीषा झा ने बताया कि किस प्रकार यह शैली एक घरेलू परंपरा से निकलकर अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की पहचान बन चुकी है।
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