Athrav – Online News Portal
दिल्ली नई दिल्ली राजनीतिक राष्ट्रीय

सात सालों से महापापी और पाखंडी मोदी सरकार किसानों का दमन कर रही है, उनके अधिकारों का हनन कर रही है- कांग्रेस

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली: सात सालों से महापापी और पाखंडी मोदी सरकार किसानों का दमन कर रही है, उनके अधिकारों का हनन कर रही है। बीते सात माह में मोदी सरकार ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। ये शब्द कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज जारी अपने ब्यान में कहा हैं। उनका कहना हैं कि समूचे विश्व में आज तक किसी निर्दयी और निर्मम सत्ता का ऐसा अत्याचार देखने को नहीं मिला जो मोदी सरकार धरती के भगवान कहे जाने वाले अन्नदाता किसानों के साथ लगातार 7 माह से कर रही है । उनका कहना हैं कि बीते 26 नवंबर 2020 से माँ अन्नपूर्णा के भूमिपुत्र किसानों को सत्ता सता रही है। कभी उन पर लाठी बरसाती है, कभी आँसू गैस के बम मारती है, कभी उनकी राहों में कील और काँटे बिछाती है।  सड़कों पर सोने को मजबूर किसानों को मोदी सरकार कभी आतंकी , कभी खालिस्तानी बताती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरी प्रतिबद्धता और दृढ़ता से देश के किसान भाइयों के साथ खड़ी है। आज होने वाले किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का पार्टी पुरजोर समर्थन करती है । 

मोदी सरकार कैसे किसानों को सात साल से परास्त करने का षडयंत्र कर रही है और सात माह से लगातार प्रताडि़त कर रही है, जानिए: किसानों को परास्त करने के षडयंत्र के सात प्रमाण:

1) 2014 में सरकार बनाते ही पहले अध्यादेश के माध्यम से किसानों की भूमि के ‘उचित मुआवज़ा कानून 2013’ को बदलकर किसानों की ज़मीन हड़पने की कोशिश की।

2)  वादा करने के बावजूद 2015 में सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देकर किसानों को समर्थन मूल्य पर लागत+50 प्रतिशत मुनाफा देने से इन्कार कर दिया ।

3) 2016 में प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के नाम पर प्रायवेट कंपनियों को लूट की खुली छूट दे दी गई। वर्ष 2016 खरीफ से 2019-20 तक इस योजना में लगभग 99,073 करोड़ रु. की प्रीमियम केंद्र, राज्य और किसानों ने अदा की और बीमा कंपनियों ने 26,121 करोड़ रु. का मुनाफ़ा कमाया। 

4) मोदी सरकार ने 2018 में किसान सम्मान निधि के नाम से एक और छलावा किसानों के साथ किया। देश में कुल 14 करोड़ 65 लाख किसान हैं मगर मोदी सरकार किसान सम्मान निधि से लगभग 6 करोड़ किसानों को वंचित किए हुए है। एक तरफ़ मोदी सरकार कह रही है कि किसानों को 6 हज़ार रुपए प्रतिवर्ष सम्मान निधि देकर हम किसानों की सहायता कर रहे हैं मगर दूसरी ओर मोदी सरकार ने बीते छः वर्षों में डीज़ल की कीमत मई, 2014 में 55.49 रु. से बढ़ाकर आज 88.65 रु. कर दी है। अर्थात लगभग 33.16 रु. प्रति लीटर डीज़ल के दामों की वृद्धि की गई है। इसी प्रकार खेती में लगने वाले इनपुट जैसे उर्वरक, कीटनाशक, फेरोमान ट्रैप, ट्रैक्टर, ड्रिप और स्प्रिंकलर एवं अन्य उपकरणों पर 5 से 18 प्रतिशत तक जीएसटी लगने से खेती का लागत मूल्य लगभग 20 हज़ार रु. प्रति हेक्टेयर बढ़ गया है। एक ओर मोदी जी 6 हज़ार रुपए सालाना देने का स्वाँग रचते हैं और दूसरी ओर किसानों की जेब से 20 हज़ार रुपए प्रति हेक्टेयर निकाल लेते हैं। 

5) प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना, अर्थात बाज़ार में किसानों को फसलों के दाम कम मिलने पर सरकार या तो बाज़ार भाव और समर्थन मूल्य के अंतर का पैसा सीधे किसानों के खाते में डालेगी या खरीदेगी। इस योजना को नियोजित रूप से बंद किया जा रहा है, जो बजट 2019-20 में 1500 करोड़ रु था उसे 2020-21 में मात्र 400 करोड़ कर दिया गया । 

6) कृषि विरोधी तीन क्रूर काले कानून पूंजीपतियों के फ़ायदे के लिए लेकर आए। 

7) ख़ुद लागत एवं मूल्य आयोग मोदी सरकार पर अपनी रिपोर्ट में ख़ुलासा करता है कि सरकार समर्थन मूल्य पर दाल ख़रीद कर ऐसे समय बाज़ार में उतारती है जब किसानों की फसलें आने वाली होती हैं । अर्थात पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने के लिये बाज़ार के दाम सरकार तोड़ देती है ।

 किसानों को प्रताडि़त करने पर सात सवाल:

1) क्या लागत और मूल्य आयोग ने अपनी ख़रीफ रिपोर्ट 2021-22 में ये आरोप नहीं लगाया कि लागत निकालने के लिए सरकार सेंपल साइज बहुत छोटा रखती है जिससे सही लागत मूल्य नहीं निकल पाता है?

2) क्या यह सही नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में फ़रवरी 2015 के शपथ पत्र में सरकार ने माना कि स्वामीनाथन आयोग की 201 सिफारिशों में से कांग्रेस की सरकार ने जनवरी 2014 तक 175 हूबहू लागू कर दी थीं? मगर मोदी सरकार ने उसके बाद एक भी कदम आगे क्यों नहीं बढ़ाया? 

3) क्या ये सही है कि 10 जनवरी, 2014 को कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज़ (CoS) की मीटिंग हुई थी. इसमें निर्णय लिया गया था कि कोई भी कानून बनाने से पहले हर विभाग को अनिवार्य रूप से कम से कम 30 दिनों के लिए प्रस्तावित कानून को पब्लिक डोमेन में रखना होगा?मगर क्या ये सही है कि सरकार ने सूचना के अधिकार कानून के तहत ये बात मानी है कि जून 2020 में ये कृषि क्रूर काले कानून लाने के पहले इनको पब्लिक डोमेन में विचार के लिए नहीं डाला गया? क्या सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने झूठा शपथपत्र दिया है कि किसानों से चर्चा करके ये तीनों काले कानून लाए गए हैं?जबकि सूचना के अधिकार के तहत दिए जवाब में सरकार ने स्वीकारा कि कानून लाने से पहले किसानों से चर्चा के कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं।

4) क्या जब तीन काले कानून लागू किए गए तब से ही सरकारी अनाज मंडिया लगातार बंद करना जारी नहीं है? 

5) क्या किसान को मंडियों से बाहर देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की आजादी नहीं? अगर यह सही है, तो फिर तीन खेती विरोधी काले कानूनों की क्या जरूरत है? 
6) क्या ज़माखोरी की खुली छूट देने वाले तीन खेती विरोधी काले कानूनों को स्थगित करने से ज़माखोरी पर कुछ हद तक विराम लगा है? तो फिर तीन काले कानून लागू कर मोदी सरकार जमाखोरों को छूट क्यों देना चाहती है?

7) क्या सरकार किसानों के खिलाफ षड्यंत्र कर उन्हें ‘थका दो और भगा दो, प्रताडि़त करो और परास्त करो, बदनाम करो और फूट डालो’ की नीति पर काम नहीं कर रही?–

Related posts

कैलाश गहलोत ने नए विभागों का संभाला प्रभार; सचिवों और आयुक्तों के साथ की प्री-बजट मीटिंग

Ajit Sinha

गौरव बंसल ने खुद अपनी हत्या करने के लिए आरोपितों को पैसे दिए थे, पुलिस ने किया खुलासा।

Ajit Sinha

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 5 राज्यों में चुनाव के बाद की स्थिति का आकलन करने हेतु वरिष्ठ नेताओं को सौपी जिम्मेदारी- पढ़े

Ajit Sinha
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
error: Content is protected !!
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x