अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने 20 जून को अथॉरिटी की बैठक बुलाई है। एनसीसीएसए के बतौर अध्यक्ष सीएम अरविंद केजरीवाल की यह पहली बैठक होगी। बैठक में अथॉरिटी एक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार कर सकती है। हालांकि, एनसीसीएसए की पहली बैठक बुलाई जाए, इससे पहले ही यह साफ हो गया है कि अथॉरिटी एक दिखावटी निकाय के अलावा और कुछ नहीं है। क्योंकि सर्विसेज से जुड़े कई प्रस्ताव मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री व एनसीसीएसए को दरकिनार कर सीधे एलजी को भेजे जा रहे हैं। दो हफ्ते पहले, मुख्य सचिव और उपराज्यपाल ने सीएम और एनसीसीएसए को दरकिनार कर एक अन्य मामले में एक अधिकारी का निलंबन आदेश जारी करने के लिए सांठगांठ की है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि अथॉरिटी की किसी भी बैठक का परिणाम पहले से ही तय है। अथॉरिटी में अध्यक्ष समेत तीन सदस्य हैं, जिसमें दो सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी हैं। लिहाजा मुख्यमंत्री अल्पमत में हैं। इसलिए एलजी और मुख्य सचिव की मिलीभगत के बाद अथॉरिटी की बैठक अब महज एक दिखावा बनकर रह गई है।पिछले दो हफ्ते से बेहद चौंकाने और चिंता जनक घटनाएं सामने आ रही हैं। एक अधिकारी के निलंबन की फाइल मुख्यमंत्री के सामने रखी गई। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 की धारा 45एच की उप-धारा (2) के अनुसार मामला मुख्यमंत्री के समक्ष रखा गया था। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) के पास अनुशास नात्मक कार्यवाही को देखते हुए विजिलेंस और नॉन-विजिलेंस से संबंधित सभी मामलों और सभी ग्रूप ‘ए’ अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए सिफारिश करने की जिम्मेदारी होगी। जिसमें ऑल इंडिया सर्विसेज और दानिक्स के आधिकारी भी शामिल है, जोकि दिल्ली सरकार में सेवारत हैं। केंद्र के अध्यादेश के अनुसार, मुख्यमंत्री को एनसीसीएसए का पदेन अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जबकि मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) इसके सदस्य होंगे।फाइल मिलने पर सीएम अरविंद केजरीवाल ने उसमें कई कमियां और जानकारियों का अभाव पाया। इसके बाद सीएम ने एनसीसीएसए की बैठक की तिथि तय होने से पहले तक उन कमियों और जानकारियों को ठीक करने का निर्देश देते हुए फाइल मुख्य सचिव को भेज दी थी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023 की धारा 45एफ(1) के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण की बैठक ऐसे समय और स्थान पर होगी, जिसे जरूरत के हिसाब से अथॉरिटी के अध्यक्ष की मंजूरी पर सदस्य सचिव तय कर सकते हैं।मगर मुख्य सचिव ने केंद्र के अध्यादेश की धारा 45एफ (1) और संवैधानिक प्रक्रिया की अवहेलना करते हुए मुख्यमंत्री के निर्देशों को खारिज कर दिया। मुख्य सचिव ने निर्वाचित मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन नहीं किया। इसके बजाय सीएम और एनसीसीएसए को दरकिनार कर अधिकारियों को निलंबित करने की सिफारिश की फाइल सीधे एलजी को भेज दी। यह भी देखा गया है कि इस मामले के अलावा भी सर्विसेज से जुड़े कई मामलों में मुख्य सचिव ने सीएम और एनसीसीएसए को दरकिनार कर फाइलों को सीधे एलजी के पास भेजा गया था। तथ्य यह है कि राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की पहली बैठक संपन्न होने से पहले ही बतौर एनसीसीएसए के अध्यक्ष मुख्यमंत्री के अधिकार को एलजी और मुख्य सचिव ने मिली भगत कर पूरी तरह से खत्म कर दिया है। राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) की पहली बैठक होने से पहले इस तरह के कार्य स्पष्ट रूप से केंद्र की दुर्भावना पूर्ण मंशा को दर्शाता है कि वो किसी भी हालत में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को किसी भी प्रकार की शक्ति का इस्तेमाल नहीं करने देना चाहते हैं। यहां तक कि एनसीसीएसए का गठन ही संदेहजनक है। केंद्र ने इस अथॉरिटी में मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) दो अधिकारियों को शामिल किया है। साथ ही, यह भी आदेश दिया गया है कि समिति के सभी निर्णय सदस्यों के बहुमत के आधार पर तय किए जाएंगे। इस तरह से अथॉरिटी की हर बैठक का निष्कर्ष तो केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त दो सदस्य ही निकालेंगे और दिल्ली के सीएम हमेशा ही अल्पमत में रहेंगे। अब एलजी और मुख्य सचिव की सांठगांठ के चलते अथॉरिटी की बैठक मात्र एक दिखावा बनकर रह गई है। जहां चुनी हुई सरकार के पास कोई भी अधिकार नहीं है।
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