अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
चंडीगढ़: दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि बीजेपी सरकार ने विदेशी कपास पर 11% आयात शुल्क खत्म करके भारतीय किसानों की पीठ में छुरा मारने जैसा फैसला किया है। कपास की खेती वाले इलाकों में किसान मज़दूरी, मंडी कारोबार और वस्त्र उद्योग से जुड़े लाखों परिवार इस फैसले से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। किसान पहले ही महंगी खाद-बीज-डीजल और लगातार गिरती फसल पैदावार से परेशान हैं। अब सरकार ने उनकी आखिरी उम्मीद भी छीन ली है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50% टैरिफ लगाया है, बजाय जवाबी कार्रवाई करने के बीजेपी सरकार ने 11% आयात शुल्क को ख़त्म करके अमेरिका और विदेशी कंपनियों को खुश करने के लिए भारतीय किसानों के साथ विश्वासघात किया है।
स्वदेशी का नारा लगाने वाली बीजेपी सरकार किसानों की नहीं, बल्कि बड़े पूंजीपतियों और विदेशी कंपनियों की जेब भरने के लिए काम कर रही है। उन्होंने मांग करी कि विदेशी कपास पर 11% इम्पोर्ट ड्यूटी वापस बहाल की जाए। टेक्सटाइल इंडस्ट्री को घरेलू कपास खरीदने के लिए बाध्यकारी नीति बनाई जाए। हरियाणा, पंजाब समेत सभी राज्यों के कपास किसानों को MSP गारंटी मिले, सरकारी खरीद हो। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार कपास किसानों को बर्बाद करके बीजेपी विदेशी कंपनियों और अपने उद्योगपति मित्रों को फायदा पहुँचाना चाहती है। विदेशी कपास के सस्ते होने से भारतीय कपास की कीमतें गिरेंगी, जिससे किसानों को उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पाएगा। दीपेन्द्र हुड्डा ने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के हालिया आंकड़ों के अनुसार, इस साल कपास का रकबा 127.67 लाख हेक्टेयर है जो पिछले साल से 6.62 लाख हेक्टेयर अधिक है। किसान अच्छे दाम मिलने की उम्मीद लिए अपनी उपज लेकर मंडियों में पहुंचा लेकिन इम्पोर्ट ड्यूटी खत्म करने के फैसले से मंडियों में कपास का भाव गिर गया और सरकारी खरीद नहीं होने के चलते किसानों को MSP से करीब ₹2000 कम रेट पर अपनी कपास बेचनी पड़ रही है, बिचौलिए किसानों से मनमानी लूट कर रहे हैं।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हरियाणा का टेक्सटाइल उद्योग 50% से अधिक ‘टैरिफ’ की मार से पहले ही ‘निर्यात बंदी’ के चलते आर्थिक बर्बादी की कगार पर है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा कपास पर आयात टैरिफ खत्म करने का फैसला विदेशी कंपनियों और उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने वाला साबित हो रहा है। यह निर्णय हरियाणा, पंजाब, राजस्थान समेत देशभर के कपास उत्पादक किसानों के लिए विनाशकारी साबित होगा। हरियाणा में लगभग 6.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती होती है और लगभग 20–22 लाख गाठें (bales) सालाना उत्पादन होता है। आयात शुल्क खत्म होने से विदेशी कपास की लागत घरेलू कपास से ₹5,000–7,000 प्रति कैंडी कम होगी। इसका सीधा असर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान के किसानों पर पड़ेगा, जहां पहले से ही फसल का भाव MSP से नीचे गिर गई है। इस बार केंद्र सरकार ने लंबे रेशे वाले कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 8110 प्रति क्विंटल तय किया है। जबकि वास्तविक लागत (C2+50% सूत्र) के हिसाब से यह करीब ₹10,075 प्रति क्विंटल होनी चाहिए। यानी अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य हर किसान को मिल भी जाए तो भी औसतन ₹1,965 प्रति क्विंटल का घाटा उठाना पड़ेगा। अब केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा आयात शुल्क खत्म करने से यह घाटा और गहराएगा।
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