अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:कांग्रेस ने भारत की विदेश नीति में बदलाव को वैश्विक स्तर पर देश के प्रभाव में स्पष्ट गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी ने गाजा युद्धविराम पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर भारत के अनुपस्थित रहने पर भी कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण, बल्कि दुखद और अस्वीकार्य भी है।इंदिरा भवन स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य आनंद शर्मा ने कहा कि राष्ट्रों के समूह में भारत की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करने के लिए अब विदेश नीति में पुनर्संतुलन, ईमानदार आत्मनिरीक्षण और दिशा सुधार का समय आ गया है।
शर्मा ने कहा कि भारत की विदेश नीति में जैसा बिखराव है, उस वजह से भारत का प्रभाव विश्व में कम हो रहा है। यह सबके लिए दुख की बात है। उन्होंने याद दिलाया कि भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया था। दुनिया के जिन देशों और महाद्वीपों में आजादी के लिए और रंगभेद के खिलाफ बड़े संघर्ष हुए, उन्होंने भारत की अगुवाई को स्वीकार किया और उसकी आवाज को सुना- चाहे वह अफ्रीका हो, लैटिन अमेरिका या एशिया के देश हों। 1950 के दशक में जब कोरिया संकट आया, तब दुनिया ने समाधान के लिए भारत की तरफ देखा था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हर चुनौती के समय विश्व भारतवर्ष की आवाज सुनता था, क्योंकि हमारी सबसे बड़ी शक्ति हमारी नैतिकता और मानवता की आवाज थी, लेकिन आज ये दोनों कमजोर पड़ गई हैं।
शर्मा ने कहा कि जब हम राष्ट्रहित को आगे रखते हैं, तो उसके पीछे देश की आम सहमति रहती है, लेकिन मौजूदा मोदी सरकार में ये नहीं दिखता। राष्ट्रहित में हमारी कूटनीति और विदेश नीति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार द्वारा एकतरफा फैसले लेना बंद होना चाहिए। इस विषय पर सरकार को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। मोदी सरकार वास्तविकता को स्वीकार करें और जो देश के प्रमुख दल हैं, उनके नेताओं के साथ बैठकर भी विचार-विमर्श करे।गाजा में युद्ध विराम को लेकर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर भारत द्वारा मतदान से दूर रहने का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि गांधी की धरती ने शांति के पक्ष में मतदान नहीं किया। उन्होंने कहा कि जिन देशों के इजरायल और अमेरिका के साथ अच्छे संबंध थे, उन्होंने भी युद्धविराम के पक्ष में मतदान किया, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया।
आनंद शर्मा ने कहा कि आगामी संसद सत्र में विदेश नीति और देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर व्यापक चर्चा हो।
शर्मा ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णयों के क्रियान्वयन में विफलता और बार-बार उल्लंघन के कारण बहुपक्षवाद कमजोर होता जा रहा है और संकट का सामना कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को यह सोचने की जरूरत है कि जब विश्व में नियम-आधारित बहुपक्षीय शासन व्यवस्था ध्वस्त हो रही है, तो वह कहाँ खड़ा है। उन्होंने आगे कहा कि यह हमारे सामने एक बुनियादी चुनौती है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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