अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
गुरुग्राम:हरियाणा ने सुधारात्मक न्याय के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाया, जब राज्य की विभिन्न जेलों में “एम्पावरिंग लाइव्स बिहाइंड बार्स”, रियल चेंज : दी न्यू पैराडिग्म ऑफ करेक्शनल जस्टिस परियोजना के अंतर्गत कौशल विकास केंद्रों, पॉलिटेक्निक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों एवं आईटीआई-स्तरीय व्यावसायिक कार्यक्रमों का औपचारिक शुभारंभ किया गया। इन कार्यक्रमों का उद्घाटन भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत द्वारा जिला जेल भोंडसी, गुरुग्राम में किया गया। इसी कार्यक्रम के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने पंजाब, हरियाणा एवं यू.टी. चंडीगढ़ में एक माह चलने वाले राज्यव्यापी नशा-रोधी जागरूकता अभियान का भी शुभारंभ किया। इस अवसर पर कई वरिष्ठ गणमान्य उपस्थित रहे, जिन्होंने इन पहलों की कल्पना, क्रियान्वयन एवं नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानतुल्लाह, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश तथा राज्य प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति लीसा गिल, जो हालसा की कार्यकारी चेयरपर्सन भी हैं, ने नशा-रोधी अभियान को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यदि व्यक्ति जेल से बाहर आने के बाद उपयुक्त मार्गदर्शन, शिक्षा एवं कौशल समर्थन नहीं पाता, तो उसका समाज में पुनर्वास कठिन हो जाता है और कई बार वह दोबारा अपराध चक्र में फंस जाता है। उन्होंने कहा कि यदि जेल—या जैसा वे रहना पसंद करते हैं “सुधार गृह”—में शिक्षा, कौशल, मनोवैज्ञानिक समर्थन और पुनर्वास की संरचित व्यवस्था न हो, तो जेलें अनजाने में वंचनाओं को और गहरा कर सकती हैं। आज की सुधारात्मक न्याय व्यवस्था पुनरावृत्ति रोकने के लिए योजनाबद्ध, सामूहिक और मानव-केन्द्रित रणनीति की मांग करती है।
अपने संबोधन में उन्होंने सुधारात्मक प्रणाली को मजबूत करने हेतु कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि पुनर्वास केवल आशा पर नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध प्रक्रिया पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक जिले में पुनर्वास बोर्ड गठित किए जाएं, जिनमें प्रोबेशन अधिकारी, उद्योग प्रतिनिधि, सामाजिक संस्थाएँ एवं मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हों, ताकि प्रत्येक रिहाई एक ठोस कार्ययोजना के साथ हो।
उन्होंने प्रवासी मजदूरों की विशिष्ट संवेदनशीलताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी चुनौतियां परिस्थितिजन्य हैं, आपराधिक नहीं। उनके लिए सरल जमानत प्रक्रिया, बहुभाषीय कानूनी सहायता और आवश्यक दस्तावेज सहायता उपलब्ध कराई जानी चाहिए।उन्होंने कहा कि मनोवैज्ञानिक पुनर्वास को व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ मजबूत किया जाना चाहिए, क्योंकि कौशल अवसर देता है लेकिन मनोवैज्ञानिक स्थिरता व्यक्ति को आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस संदर्भ में आज आरंभ किया गया “यूथ अगेंस्ट ड्रग्स” अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रशिक्षण भविष्य की अर्थव्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए। डिजिटल कौशल, लॉजिस्टिक सेवाएं और आधुनिक ट्रेड भविष्य का रास्ता हैं। उन्होंने उद्योग जगत से अपील की कि वे जेलों को अपनाने, अप्रेंटिसशिप देने और प्रशिक्षित कैदियों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहयोग करें।
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