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दिल्ली नई दिल्ली

नई बिल्डिंग में बने 148 कमरों में एक साथ पढ़ सकेंगे 4500 विद्यार्थी, सुबह छात्राओं और शाम को लगेगी छात्रों की कक्षाएं : उप मुख्यमंत्री

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली: उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बुधवार को बवाना के शाहबाद डेरी में नव निर्मित राजकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या विद्यालय की नई बिल्डिंग का उद्धाटन किया। उन्होंने कहा कि आज पूरे देश में सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं। महाराष्ट्र और उत्तराखंड में सैकड़ों सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए। सरकारी स्कूलों को प्राइवेट लोगों को दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि सरकार इन स्कूलों को नहीं चला सकती है। अगर कोई सरकार सरकारी स्कूलों को नहीं चला सकती है, तो उस सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए। उसे सरकार में बने रहने का कोई हक नहीं है। दिल्ली एकमात्र प्रदेश है, जहां नए सरकारी स्कूल खुल रहे हैं और पुराने स्कूलों की शानदार बिल्डिंग भी बन रही है। इस नई बिल्डिंग में शानदार 148 कमरे बने हैं, जहां 4500 विद्यार्थी एक साथ पढ़ाई कर सकेंगे। यहां सुबह की पाली में छात्राएं और शाम की पाली में छात्रों की कक्षाएं संचालित होंगी।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि इस स्कूल में करीब दो साल पहले आया था। स्कूल की हालत देख कर कहा था कि इसे तोड़ कर ही बनवाना पड़ेगा। मैंने बच्चों और उनके अभिभावकों से कहा था कि बिल्डिंग बनने तक कष्ट उठाना पड़ेगा। आप लोगों को करीब दो साल तक कष्ट उठाना पड़ा है। वैसे तो आप लोग यहां जब से पढ़ रहे हो, तभी से कष्ट उठा रहे थे। बच्चों और शिक्षकों को सात से आठ घंटे तक स्कूल में रहना पड़ता है। अगर स्कूल में ठीक से एक वाॅशरूम न हो, तो क्या फायदा। बच्चे कैसे पढ़ाई करेंगे। ऐसी चीजों को देख कर शर्मिंदगी होती है। इसलिए हमने सोचा कि बिल्डिंग शानदार ही बनेगी, ताकि अगले 20 साल तक दोबारा बनाने की जरूरत नहीं पड़े। आज इस बिल्डिंग को समर्पित करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है।

अब सरकारी स्कूल का हर विद्यार्थी कहेगा कि वह देश का भविष्य है: उप- मुख्यमंत्री

मेरी एक इच्छा थी कि बिल्डिंग यहां के प्राइवेट स्कूलों को मात देती हुई बने। बहुत सारे प्राइवेट स्कूलों की इतनी शानदार बिल्डिंग नहीं होगी। इस बिल्डिंग को अब स्कूल बनाना है। बिल्डिंग को स्कूल इंजीनियर और मंत्री नहीं बना सकते हैं। बिल्डिंग को स्कूल बनाने का काम शिक्षक और विद्यार्थियों को मिल करना पड़ेगा। इस शानदार बिल्डिंग में शानदार पढ़ाई नहीं हुई, तो इसे स्कूल नहीं कह सकते हैं। इसलिए सभी शिक्षक और विद्यार्थियों से अनुरोध है कि अब इस स्कूल का नाम इसकी बिल्डिंग से नहीं, बल्कि इसकी पढ़ाई से होनी चाहिए। इस बिल्डिंग में लगी टाइल्स की चमक समय के साथ फीकी पड़ती जाएगी, लेकिन शिक्षा की चमक कभी फीकी नहीं पड़ती है। अगर यहां से अच्छे शिक्षित बच्चे निकलेंगे, तो वे जहां भी रहेंगे। इस स्कूल का नाम चमकाएंगे। स्कूल की अच्छी बिल्डिंग का एकमात्र मकसद है कि हमें भी यह एहसास हो कि जहां हम पढ़ते हैं, उसकी कोई गरिमा है। पांच साल पहले नरेला में मुझसे एक बच्चे ने कहा कि सर, हम तो सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। हम देश का भविष्य नहीं है। देश के भविष्य तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हैं। वह बात मुझे चुभ गई। मुझे लगा कि इस बच्चे की बात में काफी दम है। जब तक इस देश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे गर्व से यह कहने नहीं लगे कि वह देश का भविष्य है। तब तक चैन की नींद नहीं सोना है। आज हमारे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला कोई भी बच्चा नहीं कह सकता है कि हम देश के भविष्य नहीं हैं। पांच साल में स्कूलों में बहुत काम हुआ। पांच साल पहले जब आए थे, तो सोच कर डर लगता था। स्कूल की बिल्डिंग टूटी हुई है। बच्चों व शिक्षकों में विश्वास की कमी है। आज पांच साल बाद मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि ईमानदार राजनीति हो और नीयत साफ हो तो काम हो सकता है। आज यह सब इसलिए हो सका है क्योंकि अब ईमानदार राजनीति है और नीयत साफ है। हमारे इरादे पक्के हैं।



हम बच्चों को शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी सीखा रहे हैं:उप-मुख्यमंत्री

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि हम बच्चों को सिर्फ ए,बी,सी,डी ही पढ़ना नहीं सिखा रहे हैं, बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार भी सीखा रहे हैं। हम सीखा रहे हैं कि घर में माता-पिता के साथ सम्मान के साथ कैसे रहा जाता है। हम सीखा रहे हैं कि घर में भाई-बहन के बीच प्यार से कैसे रहा जाता है। बहुत सारे अभिभावक अब कहने लगे हैं कि हैपीनेस कैरिकूलम की वजह से उनके बच्चे उन्हें पहले से ज्यादा सम्मान देने लगे हैं। पढ़-लिख कर बच्चे मा-पिता का सम्मान ही नहीं करेंगे, तो उस पढ़ाई का क्या फायदा। इंटरप्रिन्योरशिप कैरिकूलम की वजह से एक 11वीं की छात्रा अपने पिता को बिजनेस में मदद करने लगती है। यह कोई छोटी बात नहीं है। पहले हमारे स्कूलों का बोर्ड परीक्षा का परिणाम 80 या 85 प्रतिशत आता था। वहीं, आज सरकारी स्कूलों का परिणाम 96 प्रतिशत से अधिक आने लगा है। पिछले तीन साल से दिल्ली के सरकारी स्कूलों का परिणाम प्राइवेट स्कूलों से 6 से 8 प्रतिशत अधिक आ रहा है। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा राजनीति में आना तब सफल होगा, जब चुनाव धर्म, जाति, क्षेत्रवाद से उपर उठ कर शिक्षा के नाम पर होने लगेगा। दिल्ली में देश का पहला ऐसा चुनाव होगा। जहां लोग इसलिए वोट देंगे, क्योंकि सरकार

बच्चों की शिक्षा पर काम कर रही है।—–बच्चों ने अपनी भावनाओं का किया साझा

स्कूल बिल्डिंग के उद्धाटन कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने उपमुख्यमंत्री से अपनी भावनाओं को भी साझा किया। एक आठवीं कक्षा की छात्रा ने बताया कि जब वह इस स्कूल में एडमिशन लेने आई थी, जब वहां के गार्ड ने बताया था कि शाहबाद डेरी स्कूल सबसे बेकार है। उसने एडमिशन लेने से मना किदया था, लेकिन आज इस स्कूल में दूसरे स्कूल से बच्चे आ रहे हैं। 12वीं में पढ़ने वाली छात्रा मंजू ने कहा कि उससे सभी कहते थे कि यह स्कूल सबसे गंदा है। हमारा कुछ नहीं हो सकता। जबकि हमारे मार्क्स अच्छे आते थे। आज हम यह गर्व से कह सकते हैं कि हम डेरी वाले हैं। बाकी एरिया से बहुत ज्यादा अच्छे हैं और हमारे शिक्षक उससे भी अच्छे हैं। एक अन्य छात्रा ने कहा कि वह दूसरे स्कूल में एक मैच खेलने गई थी। वहां उसे शाहबाद डेरी वाले कह कर अपमानित किया गया था। मैच में जब उसे प्रथम स्थान मिला, तो हमे गर्व हुआ कि अब उसे कोई नहीं हरा सकता।

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