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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की फौज हीरो, भाजपा की विदेश नीति हुई जीरो – दीपेंद्र हुड्डा

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
चंडीगढ़: ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई विशेष चर्चा के दौरान कांग्रेस पार्टी की तरफ से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने बीजेपी सरकार को उसकी विफल विदेश नीति, रक्षा बजट में कटौती पर जमकर घेरा। दीपेन्द्र हुड्डा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत पहलगाम आतंकी हमले में जान गँवाने 26 पर्यटकों को श्रद्धांजलि देते हुए भारतीय फौज के पराक्रम को नमन करके की। उन्होंने कहा कि देश की फौज दुनिया की सबसे बेहतरीन फौज है और फौज का पराक्रम कोई चर्चा का विषय नहीं है। उन्होंने फौज के पराक्रम को नमन करने के लिए प्रस्ताव रखते हुए कहा कि या तो इस प्रस्ताव पर सरकार साथ दे या सरकार ऐसा प्रस्ताव लाए हम साथ देंगे। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में देश की फौज ने तो अपना काम किया लेकिन चर्चा का विषय ये है कि क्या सत्ता पक्ष ने अपना काम किया। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा हिंदुस्तान की सेना पराक्रमी है, जिसके पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया मानती है। उन्होंने संसद में रक्षा बजट बढ़ाने, फौज को आधुनिक सैन्य संसाधनों, लड़ाकू विमानों  से लैस करने की मांग की।

दीपेन्द्र हुड्डा ने एक-एक करके बीजेपी सरकार की विफल विदेश नीति और रणनीतिक चूक की पोल खोलते हुए कहा कि पूरे देश की भावना थी कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति के एक ट्वीट ने देश की भावनाओं पर विराम लगा दिया। 9 मई के बाद जब सब लोग मान रहे थे कि हमारी सेनाएं पाकिस्तान की गर्दन दबोचने के करीब हैं तो अचानक 10 तारीख को युद्धविराम की घोषणा कर दी गयी। उन्होंने सवाल किया कि अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो सीजफायर का औचित्य था। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने 28 बार कहा कि उन्होंने व्यापार की धौंस दिखाकर युद्धविराम कराया। बात थी आतंकवाद पर वार की लेकिन आ गयी व्यापार पर। अमेरिका के राष्ट्रपति ने 5 हवाई जहाज गिरने और कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण तक की बात कही। अमेरिका के मुखिया ने तो 28 बार युद्धविराम कराने की बात कही लेकिन हमारे देश के मुखिया ने एक बार भी उसका खंडन नहीं किया। दीपेन्द्र हुड्डा ने अमेरिका के रवैये पर बीजेपी सरकार से कड़ा रुख अपनाने की बात कहते हुए कहा कि सरकार या तो डोनाल्ड का मुंह बंद कराए या भारत में मैकडोनाल्ड को बंद कराए। अमेरिका को दो नाव पर सवार होकर चलने का अधिकार नहीं है। अमेरिका को भी चुनना होगा कि उसे हिन्दुस्तान के साथ कैसे संबंध चाहिए।

विदेश मंत्रालय की विफलताओं को गिनाते हुए दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि विदेश मंत्रालय का काम स्कूल, कॉलेज या सड़क बनाना नहीं होता, बल्कि दुनिया में अपने दोस्त मुल्कों की संख्या बढ़ाना होता है। लेकिन टकराव के समय कितने देश साथ आकर खड़े हुए ये पूरी दुनिया ने देखा। सरकार एक देश का नाम बताए जिसने आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान की निंदा की हो। दूसरी ओर पाकिस्तान का साथ देने वालों की लम्बी लिस्ट है। 11 साल से पूरी दुनिया में घूमने के बाद भी आपको विपक्ष के सांसदों का प्रतिनिधिमंडल भेजना पड़ा। उन्होंने कहा कि एक और बड़ी चूक तब हुई जब विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को फोन करके कहा कि हम सेना के ठिकानों पर हमला नहीं कर रहे बल्कि सिर्फ आतंकी ठिकानों पर हमला कर रहे हैं। ऐसा करके आतंकियों और उनके सरगनाओं को अलग-अलग कर दिया और एक तरह से क्लीन चिट दे दी। जबकि, पूरी दुनिया को पता है कि पाकिस्तानी आर्मी, आतंकी एक हैं। इतना ही नहीं, दुनिया के देशों ने हिन्दुस्तान के साथ पाकिस्तान को एक बराबर तौल दिया जबकि पाकिस्तान आतंकवाद का पोषक है, हिन्दुस्तान आतंकवाद का पीड़ित देश है।दीपेन्द्र हुड्डा ने आगे कहा कि दुनिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि जब ऑपरेशन सिंदूर चल रहा था तब पाकिस्तान को IMF ने 1 बिलियन डॉलर का लोन दिया। फिर महीने भर के भीतर ADB ने 800 मिलियन डॉलर का लोन दिया। वर्ल्ड बैंक ने 40 बिलियन डॉलर का निवेश प्रस्ताव दिया। पाकिस्तान को UNSC की Counter Terrorism Committee में Vice Chairman, Taliban Sanction Committee का चेयरमैन और UNSC का अस्थायी सदस्य बना दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में डकैत को थानेदार बनाया गया, लेकिन सरकार उसे रोक नहीं पाई। यही नहीं, 2011 में यूपीए सरकार ने पाकिस्तान को FTAF की ग्रे-लिस्ट में डलवाया था, अब उसे ग्रे-लिस्ट से बाहर कर दिया गया। इसे भी सरकार रोक नहीं पायी जो इस सरकार की बड़ी चूक है।  दीपेंद्र हुड्डा ने रक्षा मंत्री से कहा कि उनका मंत्रालय लगातार देश का रक्षा बजट घटाता जा रहा है। पिछले 11 वर्षों में रक्षा बजट जीडीपी का 2.5 प्रतिशत से घटाकर 1.9 प्रतिशत पर आ गया है। जो 1962 के बाद सबसे कम है। वो यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि सरकार अग्निपथ जैसी योजना लेकर आ गयी, जो देश की फौज के लिये सही नहीं थी। रक्षा मंत्रालय ने एयर फोर्स मॉर्डनाइजेशन के बजट में भी कटौती की। कैपिटल एक्सपेंडिचर, मॉर्डनाइजेशन बजट में गिरावट चिंताजनक है। एयरफोर्स में 180 जहाजों की कमी है। हवाई जहाज इतने पुराने हो गये हैं कि लड़ाई में कम पायलट शहीद होते हैं लेकिन हादसों में कहीं ज्यादा शहीद हो जाते हैं। आज देश को 60 स्क्वाड्रन की जरुरत है। यूपीए सरकार के समय 41.1 स्क्वाड्रन मंजूर हुए थे लेकिन आज सिर्फ 31 स्क्वाड्रन मौजूद है। इसमें भी 21 स्क्वाड्रन ऐसे हैं जिसमें जगुआर जैसे जहाज हैं। पिछले 6 महीने में 3 जगुआर विमान हादसे में हरियाणा के 2 वायु सैनिक शहीद हो गये। अंत में उन्होंने कहा कि सरकार विपक्ष के सुझाव माने और फौज को आधुनिक संसाधनों से लैस करे।11 साल की रक्षा नीति का रिपोर्ट कार्ड सामने रखते हुए दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ राहुल सिंह ने कहा कि जो सैन्य साजो सामान जनवरी में मिलने थे, वे अभी तक नहीं मिले हैं। हम अभी भी बहुत सी चीज़ों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। अगर ये सारे सामान मिल जाते तो कहानी शायदकुछ और होती। वहीं एयर मार्शल अमर प्रीत सिंह ने कहा कि एक भी प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हुए। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि लगता है सरकार संसद की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं देती। अमेरिकी संबंधों पर करारा हमला करते हुए दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हमने अमेरिका से संबंधों में उतार चढ़ाव देखा है। 1971 बांग्लादेश युद्ध के समय, परमाणु परीक्षण के समय अमेरिका को आंख भी दिखायी और उसके किसी दबाव को नहीं माना। लेकिन जब हाथ मिलाने की बारी आयी तो 26/11 के समय इसी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संसद के संयुक्त सत्र में कहा कि पाकिस्तान के अंदर आतंकियों के सुरक्षित ठिकानों को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति के यहाँ लंच कर रहे थे, उसी समय चीन पाकिस्तान, बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बातचीत चीन में चल रही थी। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सरकार को बार-बार चेताया भी, लेकिन उनकी बात को नजरअंदाज किया गया। सरकार ने चीन के राजदूत तक को तलब करने की कार्रवाई नहीं की। चीन असली दुश्मन है। पाकिस्तान का 81% तो बांग्लादेश को 72% हथियार चीन से मिल रहे हैं। लेकिन उसको कोई संदेश नहीं दिया गया। जबकि ले0ज0 राहुल सिंह ने कहा कि पूरी कार्रवाई के पीछे चीन था, फिर भी विदेश मंत्री चीन जाकर एससीओ में उसकी अध्यक्षता का समर्थन कर आये।

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