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रूल 134ए के तहत मुफ्त एडमिशन देने के लिए सरकार बना रही दबाव, बन रही टकराव की स्थिति: हरियाणा प्रोग्रेसिव स्कूल्स कांफ्रेंस

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
चंडीगढ़: हरियाणा प्रोग्रेसिव स्कूल्स कांफ्रेंस (एचपीएससी) के उप-प्रधान सुरेश चंद्र ने कहा कि हरियाणा सरकार  हाईकोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज कर प्रदेशभर के निजी स्कूलों पर रूल 134ए के तहत मुफ्त एडमिशन देने का दबाव बना रही है, जबकि  हाईकोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया हुआ है कि यदि स्कूल संचालक रूल के तहत एडमिशन नहीं देते तो किसी भी स्कूल पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग द्वारा लेटर जारी करते हुए अभिभावकों को गुमराह किया जा रहा है और ये ही कारण है कि अभिभावक स्कूलों के बाहर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं और विभागीय अधिकारी प्रदेशभर में अभिभावकों और स्कूल संचालकों के बीच टकराव की स्थितियों बना रहे हैं। सुरेश चंद्र ने कहा कि एचपीएससी की ओर से  हाईकोर्ट में केस दाखिल किया गया था। जिसमें एचपीएससी की ओर से हाईकोर्ट को बताया गया कि सरकार रूल 134ए के तहत हर साल 10 प्रतिशत बच्चों को मुफ्त एडमिशन देने के लिए तो दबाव दिया जाता है, लेकिन सरकार आरटीई के तहत जो रिइंबसमेंट देनी होती है वह नहीं दी जा रही। जिसको लेकर  हाईकोर्ट ने 2014 में सरकार को आदेश पहले ही कर दिए थे। सुरेश चंद्र ने कहा कि  हाईकोर्ट में केस की सुनवाई के लिए अगली तारीख 28 फरवरी 2022 लगी हुई है और बकायदा कोर्ट ने अपने आदेशों में यह भी लिखा है कि यदि स्कूल संचालकों द्वारा रूल के तहत बच्चों को एडमिशन नहीं दी जाती तो स्कूलों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।  हाईकोर्ट ने माना कि रिइंसमेंट समय पर दी जानी चाहिए और आरटीई के तहत दी जानी चाहिए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा कभी अनुरोध शब्द का प्रयोग करते हुए या फिर सख्त कार्रवाई की बात करते हुए लेटर जारी करते हुए स्कूलों पर एडमिशन देने का दबाव बनाया जा रहा है। इन्हीं लेटरों के आधार पर अभिभावकों स्कूलों में आकर हंगामा करते हैं और स्कूल संचालकों व अभिभावकों के बीच टकराव की स्थितियां बन रही है। जिसके कारण सरकार व शिक्षा विभाग जिम्मेदार हैं। इस अवसर पर जनरल सेक्रेटरी दीपिन राव, उपाध्यक्ष प्रशांत मुंजाल, सेक्रेटरी गुरुग्राम राजीव कुमार, एचपीएससी पंचकूला जिवतेश गर्ग, सौरभ कपूर सहित कई सदस्य मौजूद रहे। एचपीएससी के ट्रेजरार सुमित वर्मा ने कहा कि हरियाणा सरकार रूल 134ए के तहत मुफ्त एडमिशन देने वाले निजी स्कूल संचालकों को आरटीई के तहत रिइंबसमेंट नहीं कर रही। आरटीई में स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ है जितना खर्च सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे पर खर्च किया जाता है उतनी निजी स्कूलों को प्रति स्टूडेंट्स के आधार पर रिइंबसमेंट दी जाए। वहीं वर्मा ने कहा कि सरकारी कर्मचारी जिनका वेतन करीब 80 हजार रुपए महीना होता है उसे तो एजुकेशन अलाउंस 1125 रुपए महीना दिया जाता है और गरीबों को मुफ्त पढ़ाने वाले स्कूलोंं को रिइंबसमेंट के तौर पर मात्र 300 रुपए प्राइमरी और 500 मिडल के स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले एवज में दिया जाता है। जबकि हाई व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों को कोई रिइंबसमेंट नहीं दी जा रही है।एचपीएससी के उपाध्यक्ष प्रशांत मुंजाल ने कहा कि हरियाणा शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा लेटर जारी करते हुए कहा गया कि वर्ष 2021-22 में प्रदेशभर में चल रहे सभी निजी व सरकारी स्कूलों में आठवीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चों का बोर्ड एग्जाम लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि हरियाणा शिक्षा बोर्ड भिवानी सीबीएसई व अन्य बोर्ड से अनुबंध रखने वाले स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी हरियाणा बोर्ड द्वारा लिए जाने वाले एग्जाम देने होंगे। उन्होंने कहा कि इस संबंध में  शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने बयान जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया था कि आठवीं बोर्ड बनाने का विचार वापस ले लिया गया है, लेकिन अभी पता चला है कि फिर से यह प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जोकि गलत है। सीबीएसई या फिर अन्य बोर्ड में शिक्षा हासिल करने वाला बच्चा हरियाणा बोर्ड द्वारा किए जाने वाले एग्जाम को कैसे दे सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार ने यदि सीबीएसई व अन्य बोर्ड से अनुबंध रखने वाले स्कूलों पर यह फैसला थापने का प्रयास किया तो माननीय कोर्ट का सहारा लिया जाएगा। एचपीएससी के सेक्रेटरी  राजीव कुमार ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा 10 साल से पुराने स्कूलों को फार्म 02 भरने हुए स्कूलों की मान्यता को रिव्यू करवाने का दबाव बना जा रहा है। उन्होंने कहा कि फार्म भरने के बाद फिर से स्कूलों का निरीक्षण होगा। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं रिव्यू के नाम पर हरियाणा सरकार द्वारा स्कूलों से तीन महीने की सैलरी को प्लजमनी जमा करवाने को कहा गया है। सेक्रेटरी गुरुग्राम राजीव कुमार ने कहा कि एक तो फार्म 02 को ऑनलाइन किया जाए, स्कूलों की तरफ से दी गई सेल्फ डेकलारेशन के आधार पर रिव्यू किया जाए। वहीं स्कूलों से मांगी जा रही तीन महीने की प्लजमनी की पॉलिसी को हटाया जाए। क्योंकि यदि स्कूल प्लजमनी देते हैं तो इसका वित्तीय बोझ भी अभिभावकों पर पड़ेगा। वहीं कोरोना काल में स्कूल व अभिभावक वित्तीय परेशानियों से जूझ रहे हैं।

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