अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
नई दिल्ली:राज्यसभा में विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को खारिज किए जाने को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। इंदिरा भवन स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद मोदी सरकार महीनों तक चुप रही। जब कांग्रेस ने इस मुद्दे पर पहल की, तो सरकार ने पूरी प्रक्रिया को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास किया। विपक्ष के प्रस्ताव को औपचारिक रूप से स्वीकार करने के तुरंत बाद उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दे दिया, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का संवैधानिक प्रक्रिया, न्यायिक जवाबदेही और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से कोई संबंध नहीं है।
डॉ सिंघवी ने बताया कि 21 जुलाई को कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने राज्यसभा में संवैधानिक रूप से प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ अनियमितता के आरोपों की जांच की मांग की गई थी। इस प्रस्ताव पर 63 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर थे। साथ ही लोकसभा में भी एक प्रस्ताव पेश किया गया था, जिस पर 152 लोकसभा सांसदों के हस्ताक्षर थे।कांग्रेस नेता ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभा पति जगदीप धनखड़ द्वारा प्रस्ताव पर दिए वक्तव्य को याद दिलाया। उन्होंने धनखड़ के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि “मुझे यशवंत वर्मा को हटाने के लिए एक वैधानिक समिति गठित करने हेतु प्रस्ताव का नोटिस प्राप्त हुआ है। यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने हेतु संसद सदस्यों के हस्ताक्षर की संख्यात्मक आवश्यकता को पूरा करता है।” कांग्रेस नेता ने बताया कि इसके कुछ ही समय बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने धनखड़ के पूछने पर बताया कि लोकसभा में भी इस विषय में प्रस्ताव पेश हुआ है।
सिंघवी ने केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू के उस बयान पर सवाल उठाया कि राज्यसभा में कोई प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं हुआ है। उन्होंने पूछा कि अगर ऐसा है तो राज्यसभा सभापति को इतना बड़ा वक्तव्य देने की जरूरत क्या थी? जब वह कह रहे थे कि राज्यसभा का प्रस्ताव कानून के तथ्यों को संतुष्ट करता है और कानून मंत्री भी लोकसभा में प्रस्ताव आने की बात मान रहे थे तो फिर प्रस्ताव की स्वीकृति के लिए क्या बचता है?कांग्रेस नेता ने बताया कि यदि दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव आता है, तो दोनों सदन के अध्यक्ष मिलकर एक वैधानिक जांच समिति बनाते हैं और दोनों सदन आपसी समन्वय, सहयोग व सामंजस्य से एक साथ काम करते हैं। लेकिन सरकार ने इस प्रावधान को नजरअंदाज किया। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के प्रस्ताव के कुछ समय बाद ही जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। उस वक्त रिजिजू या मेघवाल ने क्यों नहीं कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव स्वीकृत ही नहीं हुआ। जस्टिस वर्मा को बचाव करने का मौका देने पर मोदी सरकार को घेरते हुए हुए सिंघवी ने कहा कि विरोधाभास पैदा कर वैधानिक जांच समिति की नियुक्ति के विषय में क्या जानबूझकर या अनजाने में जस्टिस वर्मा को अतिरिक्त हथियार नहीं दिया जा रहा? क्या सरकार द्वारा कोई बचाव का रास्ता छोड़ा जा रहा है, ताकि उस जांच समिति को भविष्य में कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि दोनों सदनों में 700-800 सांसद एक साथ प्रस्ताव लाते तो ज्यादा मजबूती मिलती।
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