अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बिहार के औद्योगिक, बुनियादी ढांचे और सामाजिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कांग्रेस के नेतृत्व में बिहार ने अनेक ऐतिहासिक परियोजनाएँ देखीं। गरहरा में एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड बना, सिंदरी में देश का पहला उर्वरक कारखाना स्थापित हुआ, बरौनी रिफाइनरी और नबीनगर थर्मल पावर प्लांट शुरू हुए, दामोदर घाटी परियोजना लागू हुई और कोसी परियोजना जैसी नदी-घाटी तथा बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ भी साकार हुईं। नबीनगर थर्मल पावर प्लांट की स्थापना बिहार के औद्योगिक विकास में एक मील का पत्थर थी, और राज्य भर में 33 चीनी मिलों ने लाखों बिहारियों को रोजगार प्रदान किया। सामाजिक न्याय और शिक्षा को आगे बढ़ाने में भी कांग्रेस के प्रयास उतने ही क्रांतिकारी थे।
कृष्ण सिन्हा के नेतृत्व में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन बिहार में लोकतंत्र और समानता को आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहे बाबू जगजीवन राम के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इसी तरह,भोला पासवान शास्त्री और श्रीमती सुमित्रा देवी जैसे नेताओं ने भी हाशिए पर खड़े समुदायों के अधिकारों की सशक्त वकालत की। कांग्रेस के विजन ने इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, नालंदा मेडिकल कॉलेज और मगध विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थानों की स्थापना के साथ स्वास्थ्य सेवा और उच्च शिक्षा में एक मजबूत नींव भी रखी। वंचितों को सशक्त बनाने से लेकर उद्योगों के आधुनिकीकरण तक, बिहार के लिए कांग्रेस का योगदान प्रगति, सुधार और समावेशिता की विरासत बना हुआ है। परन्तु, कांग्रेस के नेतृत्व में बिहार ने जो एक समृद्ध, पूर्ण लोकतांत्रिक और समतावादी समाज बनने की जो यात्रा शुरू की थी, वह अभूतपूर्व खतरे में है।
कांग्रेस कार्यसमिति यह घोषणा करती है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की साजिश आज हमारे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है। बिहार में साफ़ दिखता है कि यह प्रक्रिया योजनाबद्ध ढंग से दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों जैसे हाशिए पर खड़े समुदायों को उनके मताधिकार से वंचित करने के लिए रची गई है। मताधिकार पर इस हमले के माध्यम से किया जा रहा यह षड्यंत्र अंततः इन समुदायों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और उनके संवैधानिक आरक्षण के अधिकार से भी विहीन कर देगा। जब जनता का वोट छीना जाता है, तो उसके साथ उनका भविष्य, उनकी गरिमा और उनके संवैधानिक अधिकार भी छीन लिए जाते हैं।लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बिहार में मताधिकार यात्रा निकाली, ताकि इस बहिष्कारी और अलोकतांत्रिक प्रक्रिया का विरोध किया जा सके। यह यात्रा बिहार के हर गाँव और हर गली तक यह साफ़ संदेश लेकर पहुँची कि जब तक प्रत्येक नागरिक का वोट सुरक्षित नहीं होगा, तब तक उनके अधिकार, उनका भविष्य और उसके साथ लोकतंत्र भी सुरक्षित नहीं रह सकता। इस संघर्ष को बिहार की जनता की अभूतपूर्व प्रतिक्रिया और भागीदारी ने और मजबूती दी।नीतीश कुमार के खोखले वादों और विश्वासघात से आक्रोशित होकर आज बिहार की जनता सड़कों पर है। मुख्यमंत्री के रूप में 20 वर्षों के लंबे कार्यकाल के बावजूद उन्होंने जनता को सशक्त बनाने के लिए बेहद कम किया है। कभी 27% रहने वाला चीनी उत्पादन घटकर सिर्फ़ 3% पर सिमट गया है और औद्योगिक विकास लगभग ठप है। राज्य की पूंजीगत आवश्यकताओं का महज़ 33% ही स्वयं राज्य द्वारा पूरा किया जा रहा है, शेष के लिए बिहार को केंद्र, विकास बैंकों और ऋणों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह ऋण-निर्भरता बिहार को और अधिक गरीबी और पिछड़ेपन की ओर धकेल रही है।
ख़ासकर जदयू और भाजपा के अपवित्र गठबंधन के बाद, भ्रष्टाचार और अपराध तथाकथित “डबल इंजन सरकार” के असली इंजन बन कर सामने आए हैं। यह सरकार नोट चोर है, इसका सबसे बड़ा सबूत सीएजी की रिपोर्ट है, जिसमें बिहार के 49,649 लंबित उपयोगिता प्रमाण-पत्र दर्ज हैं और इनकी राशि भयावह ₹70,877 करोड़ तक पहुँचती है। इसे सिर्फ भ्रष्टाचार कहना कम होगा, यह संगठित लूट है, दिन-दहाड़े डकैती है, जिसने जनता का खून चूसकर सत्ता को पाला-पोसा है। और यह तो बस कहानी की शुरुआत है, नीतीश कुमार के सबसे करीबी सहयोगी के इर्द-गिर्द सैकड़ों करोड़ के भ्रष्टाचार घोटाले उजागर हो चुके हैं। उनके अधिकारियों पर हुई छापेमारी में हैरतअंगेज दृश्य सामने आए, जहाँ करोड़ों रुपये पानी की टंकियों में छिपाए गए थे, शौचालय की पाइपों में ठूँसे गए थे और घबराहट में जलाई गई आधी-जली नोटों की गड्डियाँ तक बरामद हुईं।इसके साथ ही, जब करोड़ों भूखे, बेघर और भूमिहीन आम बिहारी सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं, एनडीए सरकार ने भागलपुर में एक हज़ार एकड़ से ज़्यादा ज़मीन अपने हितैषी अडानी को एक बिजली परियोजना के लिए ₹1 प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से पट्टे पर दे दी है। इस परियोजना को पूरा करते समय, सरकार ने उन किसानों से न तो परामर्श किया और न ही उनकी सहमति ली जिनकी जमीन छीनी जा रही है। यह भी विडंबना है कि जिस बिजली के लिए बिहार की जमीन और पर्यावरणीय विरासत की बलि दी जा रही है, वही बिजली बिहार में गुजरात से भी ज़्यादा महंगी होगी। गी, बल्कि निर्यात-गुणवत्ता वाले लाखों फलदार आम के पेड़ों को भी काटना पड़ेगा। और जब किसानों ने इस विचार का विरोध किया, तो एनडीए सरकार ने उनकी बात सुनने के बजाय उन्हें हिरासत में ले लिया – सिर्फ़ इसलिए ताकि नरेंद्र मोदी की बिहार में चुपके से एंट्री करवाई जा सके और उनके दौरे को निर्विरोध दिखाया जा सके। लेकिन प्रधानमंत्री की बिहार यात्रा के इन पीआर हथकंडों से परे, सच्चाई साफ़ है: एनडीए सिर्फ़ वोट चोर ही नहीं, बल्कि ज़मीन चोर भी है। इस ज़मीन चोर सरकार ने बिहार भूमि सर्वेक्षण 2025 (बीएलएस) के ज़रिए बिहार में ठीक वैसे ही भय और अराजकता फैला दी है, जैसे उसने एसआईआर के जरिए दहशत फैलाई थी। जमीन के रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करने के नाम पर, उसने लोगों को दशकों पुराने मालिकाना हक के कागजात निकालने पर मजबूर किया, और फिर जमीन के हक के कागजात में गड़बड़ी करके और मालिकाना हक में घालमेल करके घोर भ्रम पैदा कर दिया। आज, बिहार का भू-राजस्व विभाग इन रिकॉर्डों को दुरुस्त करने की आड़ में एक बड़ा घोटाला कर रहा है। उन अनुसूचित जाति, जनजाति और गरीब भूमिहीन परिवारों को एक बार फिर सताया और हाशिये पर धकेले जा रहा है, जिन्हें कांग्रेस की सरकारों में आवास के लिए जमीन आवंटित की गई थी। यहाँ तक कि नए जल जीवन हरियाली विभाग को भी समाज के कमजोर वर्गों को बेदखल करने और विस्थापित करने के लिए हथियार बनाया गया है। इस भ्रष्ट कुशासन के सबसे बड़े शिकार बिहार के युवा हैं, जिन्हें सुनियोजित रूप से उनके वाजिब अवसरों से वंचित रखा गया है। बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग (बीपीएसएससी) और केन्द्रीय कांस्टेबल चयन बोर्ड (सीएसबीसी) की परीक्षाओं व भर्ती में पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही की मांग को लेकर पटना में जुटे अभ्यर्थियों से लेकर, एक लाख शिक्षक पदों के वादे से ठगे गए टीआरई-4 उम्मीदवारों तक, हर जगह युवा ग़ुस्से और निराशा में सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं। उनकी शिकायतों का समाधान करने के बजाय एनडीए सरकार ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज करवाया। जब संविदा भूमि सर्वेक्षकों ने नियमितीकरण और वेतन समानता की मांग की, तो 16 को निलंबित कर दिया गया और विरोध करने वालों पर भी लाठियां बरसाई गईं। वही पुलिस बल जो छात्रों पर लाठी उठाने में तत्पर रहता है, नागरिकों की सुरक्षा की बात आते ही नदारद हो जाता है। बिहार भर में दिनदहाड़े होने वाली हत्याएं कानून-व्यवस्था की पूरी तरह ध्वस्त स्थिति को उजागर करती हैं।ये आज बिहार की जीती-जागती सच्चाई है, जहाँ पारदर्शिता, जवाबदेही और अवसर की मांग करने वालों को सुधार नहीं, बल्कि दमन का सामना करना पड़ता है। बिहार के युवा बेहतर शिक्षा और रोजगार की तलाश में अपने घरों से भाग कर देश में अलग अलग जगहों पर विस्थापित होने को मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि वोट चोर सरकार हमेशा रोजगार चोर भी होती है।कांग्रेस कार्यसमिति बिहार के लोगों से अपने वोट की ताकत को पहचानने की सीधी अपील करती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस संसद के अंदर और सड़कों पर इस संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेती है। यह लड़ाई हमारे मौलिक संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, आरक्षण और सामाजिक न्याय के लिए, और बिहार और भारत के प्रत्येक नागरिक को कल्याणकारी लाभों का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए है।चंपारण में नील की खेती करने वालों के खिलाफ महात्मा गांधी के पहले सत्याग्रह के बाद से, बिहार ने देश का मार्गदर्शन किया है। आज, एक बार फिर, यह एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। कांग्रेस कार्यसमिति बिहार के सभी मतदाताओं से इस लोकतांत्रिक लड़ाई को मजबूत करने का आह्वान करती है। जो नारा सबसे पहले बिहार के घर-घर में गूंजा, वही अब पूरे देश में गूंजने वाला है – “वोट चोर, गद्दी छोड़।
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