अजीत सिन्हा की रिपोर्ट
चंडीगढ़:भारत के उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव 2025 से इतर आयोजित अखिल भारतीय देवस्थानम सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इस अवसर पर बोलते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह “वेदों की भूमि” कुरुक्षेत्र की पावन धरती पर खड़े होकर अत्यंत सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह पवित्र स्थान हजारों वर्षों से इस स्थान के रूप में पूजनीय है जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का दिव्य ज्ञान प्रदान किया था। उन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र हमेशा याद दिलाता है कि धर्म अंततः अधर्म पर विजय प्राप्त करता है, चाहे अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। उपराष्ट्रपति ने भगवद् गीता को एक धार्मिक ग्रंथ से कहीं अधिक “धार्मिक जीवन, साहसी कार्य और प्रबुद्ध चेतना के लिए एक सार्वभौमिक ग्रंथ” बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धर्म द्वारा निर्देशित अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करने का भगवान कृष्ण का आह्वान, एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की कुंजी है। मजबूत चरित्र निर्माण की महत्ता बताते हुए उन्होंने कहा कि चरित्र, धन या अन्य सांसारिक उपलब्धियों से अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि गीता मानवता को एक सदाचारी और अनुशासित जीवन जीने का मार्गदर्शन करती है और भगवान कृष्ण की तरह हमें याद दिलाती है कि नैतिक शक्ति उद्देश्य की स्पष्टता और धार्मिकता के प्रति समर्पण से उत्पन्न होती है। यह आशा व्यक्त करते हुए कि तेजी से बदलते युग में, गीता व्यक्तियों, समाजों और राष्ट्रों को शांति और सद्भाव की दिशा में मार्गदर्शन करती रहेगी, उपराष्ट्रपति ने इसकी स्थायी प्रासंगिकता के महत्व के बारे में बताया। इस आयोजन के विकास की सराहना करते हुए, उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष मनाई जाने वाली गीता जयंती पिछले नौ वर्षों में एक वैश्विक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव के रूप में विकसित हुई है। उन्होंने महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने और हरियाणा को प्रगति की नई ऊंचाइयों की ओर ले जाने के लिए हरियाणा सरकार और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को बधाई दी। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों, श्रीमद्भगवद्गीता की शिक्षाओं और सनातन धर्म की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सभी उम्र के लोगों के लिए सुलभ तरीके से प्रदर्शित करता है।

उन्होंने महोत्सव की सराहना करते हुए इसे एक ऐसा मंच बताया जो सदियों से भारत को जीवित रखने वाले मूल्यों – धर्म, कर्तव्य, आत्मानुशासन और उत्कृष्टता की खोज को सुदृढ़ करता है। उन्होंने कहा कि ये मूल्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त आत्मनिर्भर भारत और 2047 तक विकसित भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण की नींव हैं। उपराष्ट्रपति ने कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड और गीता ज्ञान संस्थान द्वारा आयोजित सम्मेलन की भी सराहना की, जिसमें पूरे भारत के संत, विद्वान, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, कलाकार और सांस्कृतिक नेता एक साथ आए। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन संवाद को गहरा करते हैं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मजबूत करते हैं और युवा मन को भगवद् गीता को एक दूरस्थ ग्रंथ के रूप में नहीं, बल्कि साहस, विनम्रता और ज्ञान के जीवंत मार्गदर्शक के रूप में देखने के लिए प्रेरित करते हैं। अपने संबोधन को समाप्त करते हुए सी.पी. राधाकृष्णन ने उपस्थित सभी लोगों से भगवद् गीता की शाश्वत शिक्षाओं को आत्मसात करने, धर्मानुसार कार्य करने, ज्ञान प्राप्त करने, शांति को अपनाने और मानवता के कल्याण में योगदान देने का आग्रह किया। इससे पहले उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने कुरुक्षेत्र में मां भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर का दौरा किया और पूजा-अर्चना की।
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