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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह  ने आज अन्नदातों को लेकर आयोजित प्रेस वार्ता में मोदी सरकार पर जमकर बरसे-देखें वीडियो  

अजीत सिन्हा की रिपोर्ट 
नई दिल्ली:  रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि 49 दिन से अधिक से लाखों किसान दिल्ली की सीमा पर न्याय की गुहार मांग रहे हैं। देश का 62 करोड़ अन्नदाता, गरीब खेत मजदूर, अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़े वर्गों के लोग, साधारण किसान पूरे देश में जगह-जगह आंदोलनरत हैं और मोदी सरकार द्वारा बनाए तीन काले क़ानूनों को खत्म करने की गुहार लगा रहा है। 66 से अधिक किसानों ने अभी तक दिल्ली की सीमाओं पर दम तोड़ दिया, अपनी कुर्बानी दे दी, पर देश के प्रधानमंत्री, माननीय नरेन्द्र मोदी जी का दिल नहीं पसीजा। कोई दिन नहीं जाता जब एक से अधिक किसान काल का ग्रास नहीं बन जाता। पर प्रधानमंत्री जी ने आज तक सांत्वना का एक शब्द देश के अन्नदाता किसान के लिए नहीं कहा।

देश का किसान केवल एक मांग कर रहा है और वो मांग है 3 काले कानून खत्म करिए। पहले दिन से ही, जब रात के अंधेरे में अध्यादेश आया था, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मांग स्पष्ट है कि ये तीन काले कानून किसान विरोधी हैं, खेत और खलिहान विरोधी हैं और इन्हें फौरी तौर से खत्म करना चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री राहुल गांधी ने स्पष्ट तौर से कहा कि ये तीन काले कानून हिंदुस्तान के संविधान पर कुठाराघात हैं, प्रांतों के अधिकार पर कुठाराघात हैं और इन्हें फौरी तौर से समाप्त करना चाहिए, इससे कम कोई और सोल्यूशन मंज़ूर नहीं। कारण बड़ा सीधा है, जो कांग्रेस ने बताया, क्योंकि इन तीन काले क़ानूनों के माध्यम से मोदी सरकार सरकारी खरीद, राशन प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली, इन तीनों को खत्म करना चाहती है। आठ दौर की वार्तालाप एक महीने से अधिक में सरकार द्वारा बनाई केन्द्रीय कृषि मंत्री की अध्यक्षता में बनाई कमेटी से हुई। सरकार हर बार अपनी ज़िम्मेदारी को टालती रही है और हद तो तब हो गई, जब 8वें राउंड की वार्तालाप के बाद देश के कृषि मंत्री, श्री नरेन्द्र तोमर जी ने आप सबके सामने कहा कि किसानों, अगर तुम्हें हम पर विश्वास नहीं, तो सुप्रीम कोर्ट चले जाईए। उन्हें सुप्रीम कोर्ट की ओर धकेलने का प्रयास भी किया। पर किसान संगठन जो आंदोलनरत है, उन्होंने बार-बार कहा कि वो किसी हालत में सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएंगे।

आदरणीय मित्रों, अब आज के संदर्भ में बात करें, तो आज का दिन महत्वपूर्ण है, क्योंकि कल और आज, दोनों दिनों में देश के उच्चतम न्यायालय ने भी जो वस्तु स्थिति बार्डर पर बनी है, क्योंकि शांतिप्रिय गाँधीवादी तरीके से अपना विरोध दर्ज करने आ रहे किसानों को सरकार आने नहीं देती दिल्ली में, उन्हें बार्डर पर रोक रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के प्रति कल अपनी निराशा जाहिर की थी और माननीय उच्चतम न्यायालय ने आज फिर अपनी चिंता किसान के प्रति जाहिर की और सरकार को सच्चाई का आईना दिखाने का प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने कल ये भी कहा था कि अगर आप कानून खत्म नहीं करते, तो हम इन्हें स्टे कर देंगे और कानून को लागू करने की प्रणाली को अस्थाई तौर से, टैंपरेरी तौर से सुप्रीम कोर्ट ने रोक भी लगा दी और रोक लगा कर वार्तालाप के लिए एक चार सदस्यीय कमेटी बना दी। मैं उस कमेटी पर आऊं उससे पहले ये कहूँगा, हमारे देश में प्रजातंत्र के तीन स्तम्भ हैं – कानून बनाना और कानून खत्म करना विधायिका यानि संसद और प्रांतों में प्रांतों की ऐसेंबली का काम है। उन कानून, गलत हैं या सही है, संविधान की परिपाटी पर है, ये काम अदालतों का है यानि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का है और प्रशासनिक अमला, जिसे हम एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर कहते हैं, वो प्रशासनिक अंग हैं और ये तीनों अंग इंडिपेंडेड हैं। आज सुप्रीम कोर्ट ने 4 सदस्यीय कमेटी भी बनाई और कहा कि ये किसानों से वार्तालाप करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने जो संज्ञान लिया और चिंता जाहिर की, वो स्वागत योग्य है। सुप्रीम कोर्ट की चिंता से हम भी अपने आपको जोड़ते हैं। पर हम उस 4 सदस्यीय कमेटी जो सुप्रीम कोर्ट ने बनाई, उसका हमने अध्ययन करने का प्रयास किया और वो काफी चौंकाने वाला है, काफी अजीबो-गरीब है, क्योंकि हमने ये पाया कि वो चारों सदस्य जो कमेटी के सदस्य हैं, उन्होंने तो पहले से ही सार्वजनिक तौर से ये निर्णय कर रखा है और बात कही है कि ये तीनों काले कानून सही हैं। किसानों से तीन काले कानून को खत्म करने वाली कमेटी के सदस्यों ने पहले ही ये कह दिया कि ये तीनों काले कानून सही हैं और किसान गलत हैं, किसान भटके हुए हैं, तो ऐसी कमेटी किसानों से कैसे न्याय करेगी। मैं एक-एक करके आपको ये कागज़ात भी भेजूंगा। पहले सदस्य हैं कमेटी के, अशोक गुलाटी जी, उन्होंने बाक़ायदा ये लेख लिखा और कहा कि ये तीनों कानून जो हैं, वो बिल्कुल रास्ता और सही चीज है और ये भी कहा कि अपोजिशन यानि विपक्षी दल, वो भटक गए हैं और किसान भी शायद भटक गए हैं। ये मैं नहीं कह रहा, ये अशोक गुलाटी, उस कमेटी के सदस्य कह रहे हैं। और बड़े अजीबो-गरीब तरीके से उन्होंने ये भी कहा कि मैं पहले से ही कह रहा हूं कि इन क़ानूनों के फायदे किसानों के समझ नहीं आ रहे। ये अशोक गुलाटी जी का कहना है। उसके दूसरे सदस्य हैं – पीके जोशी साहब, जो शायद एक इंस्टिट्यूट के हैड भी रहे हैं। उन्होंने भी एक लेख लिखा और वो तो एक कदम और भी आगे निकल गए। उन्होंने कहा कि ये कानून भी ठीक हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं होना चाहिए। ये भी गलत है। मैं आपको अंग्रेजी में लेख की दो लाइन पढ़ता हूं, उन्होंने कहा, पीके जोशी साहब ने एक ज्योइंट आर्टिकल लिखा और कहा – The farm-agitations’ demand to repeal the three farm laws and legalise minimum support prices (MSPs) baffle us, given the apprehensions over the impact of the laws on the farmers are mostly misplaced.वो कहते हैं मैं इससे बहुत चौंक गया हूं। तो बोलते हैं कि किसान जो हैं, वो भटके हुए हैं, उनकी जो सोच है, वो सही नहीं है और आगे जाकर उन्होंने ये भी कहा कि अगर सरकार को खेती की उपज खरीदनी पड़ेगी, तो सरकार के लिए तो ये संभव ही नहीं, सरकार को खेती की

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